बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुभाषिनी अली व दो अन्य की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 9 सितंबर को सुनवाई करेगा. जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ इस इस मामले में सुनवाई करेगी. गौरतलब है कि 25 अगस्त को तीन जजों की पीठ ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया था. कोर्ट ने बिलकिस बानो की इस याचिका में रिहा किए गए सजायाफ्ता 11 दोषियों को भी पक्षकार बनाने का आदेश देते हुए उनको भी याचिका की प्रति देने को कहा था.
बताते चलें कि याचिका में कहा गया है कि सभी दोषियों को तुरंत गिरफ्तार कर जेल भेजा जाए. साथ ही गुजरात सरकार के उस आदेश को पेश करने के आदेश दिए जाएं जिसके तहत दोषियों को रिहाई दी गई है. याचिका में रिहाई की सिफारिश करने वाली कमेटी पर भी सवाल उठाए गए हैं. कहा गया है कि ऐसे तथ्यों पर, जिसमें दोषियों ने जघन्य कांड को अंजाम दिया, किसी भी मौजूदा नीति के तहत कोई भी प्राधिकरण ऐसे लोगों को छूट देने के लिए उपयुक्त नहीं मानेगा. ऐसा लगता है कि सक्षम प्राधिकारी के सदस्यों के गठन में एक राजनीतिक दल के प्रति निष्ठा रखने वाले और मौजूदा विधायक भी शामिल थे.
इस प्रकार, ऐसा प्रतीत होता है कि सक्षम प्राधिकारी एक ऐसा प्राधिकरण नहीं था जो पूरी तरह से स्वतंत्र था और वह स्वतंत्र रूप से अपने विवेक को तथ्यों पर लागू कर सकता था. वहीं TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने भी बिलकिस बानो मामले के सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार द्वारा रिहा किए जाने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि पीड़िता को अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की सुरक्षा को लेकर वैध आशंकाएं हैं. ये रिहाई पूरी तरह से सामाजिक या मानवीय न्याय को मजबूत करने में विफल रही है और राज्य की निर्देशित विवेकाधीन शक्ति का एक वैध अभ्यास नहीं है.
मामले की जांच सीबीआई द्वारा की गई थी और इस प्रकार, गुजरात सरकार को केंद्र सरकार की सहमति के बिना धारा 432 सीआरपीसी के तहत छूट/समय से पहले रिहाई देने की कोई शक्ति नहीं है. इसमें कहा गया है कि सभी 11 दोषियों को एक ही दिन समय से पहले रिहा करने से स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि राज्य सरकार ने योग्यता के आधार पर प्रत्येक व्यक्तिगत मामले पर विचार किए बिना यांत्रिक रूप से "थोक" में रिहाई दे दी है.