अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार किसका? इस पर दिल्ली सरकार बनाम केंद्र सरकार के मामले पर सुप्रीम कोर्ट 11 अक्टूबर से सुनवाई करने की तैयारी में हैं. सुनवाई के दौरान बहस में किस पक्ष को कितना समय दिया जाएगा, यह सुप्रीम कोर्ट 27 सितंबर को तय करेगा. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई पेपरलेस होगी. संविधान पीठ के सामने पहली बार पेपरलेस तरीके से सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ पारंपरिक भारी दस्तावेजों के बिना सुनवाई करेगी. संविधान पीठ याचिकाओं और दस्तावेजों की सॉफ्ट कॉपी का उपयोग करके मामले की सुनवाई होगी. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई ग्रीन बेंच की तरह होगी. कोई भी फाइलें या पेपर ना लाएं. इस संबंध में वकीलों को रजिस्ट्री दो दिन की ट्रेनिंग भी देगी.
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है.पीठ में जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने 6 मई को इस मामले को पांच जजों की पीठ को भेजा था. केंद्र सरकार की ओर से संविधान पीठ को मामला भेजने जाने की मांग की गई थी, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया था.
दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच दूसरी बार संविधान पीठ में सुनवाई हो रही है. 28 अप्रैल को अदालत ने अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग यानी सेवा मामला संविधान पीठ को भेजने पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. केंद्र की दलील थी कि 2018 में संविधान पीठ ने सेवा मामले को छुआ नहीं था, इसलिए मामले को पांच जजों के पीठ को भेजा जाए. दिल्ली सरकार ने इसका विरोध किया था.
दिल्ली सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि केंद्र के सुझाव के अनुसार मामले को बड़ी पीठ को भेजने की जरूरत नहीं है. पिछली दो-तीन सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार इस मामले को संविधान पीठ को भेजने की दलील दे रही है. बालकृष्णन समिति की रिपोर्ट पर चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसे खारिज कर दिया गया था.
दिल्ली सरकार ने ये उस वक्त कहा जब CJI ने पूछा था कि विधानसभा की शक्तियों पर पहले की पीठ ने क्या कहा था और केंद्र के सुझाव पर दिल्ली सरकार के विचार मांगे थे. इस दौरान को केंद्र ने अफसरों के ट्रांसफर पोस्टिंग पर अपने अधिकार की वकालत की थी.