सुप्रीम कोर्ट ने आज अंबानी परिवार को केंद्रीय सुरक्षा कवर देने के खिलाफ एक याचिका पर त्रिपुरा उच्च न्यायालय द्वारा गृह मंत्रालय के अधिकारियों को भेजे गए समन पर रोक लगा दी है. एक कार्यकर्ता द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया है कि एक परिवार की सुरक्षा जनहित का मुद्दा नहीं हो सकता. उच्च न्यायालय ने अधिकारियों को कल के लिए तलब किया था लेकिन मामले की सुनवाई नहीं हो सकी क्योंकि न्यायाधीश अनुपलब्ध थे. केंद्र ने आज उच्चतम न्यायालय को सूचित किया.
केंद्र सरकार ने पहले उच्च न्यायालय को बताया था कि मुकेश अंबानी के पास Z+ सुरक्षा है और उनकी पत्नी नीता अंबानी के पास Y+ है, जिसके लिए वे भुगतान करते हैं. लेकिन उनके तीन बच्चों के पास केंद्र सरकार की ओर से ऐसा कोई कवर नहीं है. हालांकि, उच्च न्यायालय ने बिकाश साहा नाम के एक व्यक्ति द्वारा एक जनहित याचिका पर केंद्र को अंबानी, उनकी पत्नी और बच्चों को खतरे की आशंका व आकलन के संबंध में गृह मंत्रालय के पास रखी वह मूल फाइल पेश करने का निर्देश दिया था, जिसके आधार पर उन्हें सुरक्षा प्रदान की गई थी.
केंद्र सरकार तब सुप्रीम कोर्ट गई और कहा कि याचिकाकर्ता "बिना वजह ऐसे मामलों में दखल दे रहा है” और उसकी याचिका "गलत, तुच्छ और प्रेरित" है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट को जनहित याचिका पर सुनवाई करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि महाराष्ट्र सरकार की सिफारिश पर केंद्र द्वारा अंबानी परिवार को सुरक्षा मुहैया कराए जाने से त्रिपुरा सरकार का कोई लेना देना नहीं है.
केन्द्र ने अपनी दलील में कहा,"मुकेश अंबानी, उनकी पत्नी और बच्चे, निश्चित रूप से मुंबई के निवासी हैं. और वह स्थान जहां उन्हें सुरक्षा प्रदान करने या न करने का निर्णय लिया गया था, वह नई दिल्ली है. इसलिए, विषय वस्तु से त्रिपुरा राज्य का कोई बी लेना – देना नहीं है.”