सुप्रीम कोर्ट ने बायजूस और बीसीसीआई के बीच समझौते को मंजूरी देने वाले NCLAT के फैसले को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि NCLAT ने अपने फैसले में पर्याप्त कारण नहीं बताए. बायजूस की मूल कंपनी थिंक एंड लर्न के खिलाफ शुरू की गई दिवालियेपन की कार्यवाही को रोकने का NCLAT का 2 अगस्त का फैसला रद्द किया है. इस मामले को फिर से NCLAT भेजा गया. SC ने 158 करोड़ रुपये एस्क्रो अकाउंट में रखने के आदेश दिए. 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बायजू को लेकर अमेरिका की वित्तीय लेनदार कंपनी ग्लास ट्रस्ट द्वारा दायर अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
दिवालियेपन की कार्यवाही को रोकने को चुनौती
इसमें नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT ) द्वारा बायजूस की मूल कंपनी थिंक एंड लर्न के खिलाफ शुरू की गई दिवालियेपन की कार्यवाही को रोकने के फैसले को चुनौती दी गई थी. अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए अंतरिम आदेश के तौर पर समाधान पेशेवर (RP ) को निर्देश दिया कि वह संकटग्रस्त बायजूस के खिलाफ शुरू की गई कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) पर तब तक कोई मीटिंग न करें या आगे न बढ़ें. जब तक कि अदालत कंपनी और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के बीच भुगतान समझौते की वैधता पर फैसला नहीं कर लेती.
सुप्रीम कोर्ट को किस बात पर संदेह
भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने निर्देश दिया कि जब तक फैसला नहीं सुनाया जाता, अंतरिम समाधान पेशेवर यथास्थिति बनाए रखेगा और लेनदारों की समिति की कोई बैठक नहीं करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर संदेह जताया था कि क्या NCLAT ने बायजूस के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही बंद करने का फैसला करते समय अपना विवेक लगाया था. कोर्ट ने संकेत दिया था कि वह इस मामले को नए सिरे से निर्णय लेने के लिए NCLAT को वापस भेजने के लिए इच्छुक है.
बायजूस पर बीसीसीआई का 158 करोड़ बकाया
इस बात पर चिंता व्यक्त की कि क्या भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के अलावा बायजूस के लेनदारों को दिवालियापन की प्रक्रिया रोक दिए जाने पर परेशानी होगी. BCCI की याचिका पर जून में बेंगलुरु में NCLT द्वारा बायजूस के खिलाफ दिवालिया समाधान की कार्यवाही शुरू की गई थी. BCCI ने दावा किया था कि क्रिकेट जर्सी प्रायोजन सौदों के हिस्से के रूप में बायजूस पर उसका 158 करोड़ रुपए बकाया है. हालांकि, बाद में BCCI ने कहा कि उसने बायजूस के साथ समझौता कर लिया , जिसके तहत बायजू के संस्थापक बायजू रवींद्रन के भाई रिजू रवींद्रन अपने निजी फंड से इन बकाया राशि का भुगतान करेंगे.
ग्लास ट्रस्ट ने किस बात का किया विरोध
इस समझौते को दर्ज करते हुए चेन्नई स्थित NCLAT ने बायजू के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही बंद कर दी थी, इसका ग्लास ट्रस्ट ने विरोध किया था. ग्लास ट्रस्ट ने चिंता जताई थी कि वित्तीय लेनदारों को देय राशि का उपयोग बायजूस BCCI को चुकाने के लिए कर सकता है. 14 अगस्त को शीर्ष अदालत ने NCLAT के फैसले पर रोक लगा दी और बायजू के खिलाफ दिवालियेपन की प्रक्रिया को फिर से शुरू कर दिया. 22 अगस्त को, कोर्ट ने कॉरपोरेट दिवालियेपन समाधान प्रक्रिया की देखरेख के लिए गठित लेनदारों की समिति (CoC) के संचालन को स्थगित करने या उस पर कोई रोक लगाने से इनकार कर दिया था.