NOTA को मिले अधिक वोट तो दोबारा चुनाव की मांग वाली याचिका पर SC ने केंद्र को भेजा नोटिस

इस याचिका में मांग की गई है कि अगर किसी चुनाव में उम्मीदवारों के खिलाफ पड़े वोटों की संख्या से ज्यादा नोटा के पक्ष में पड़े वोटों से कम है, तो उस सीट पर फिर से चुनाव कराए जाएं. इस याचिका में कहा गया है कि 1999 में लॉ कमीशन ने इसका प्रस्ताव दिया था.

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सुप्रीम कोर्ट ने NOTA से जुड़ी एक याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग को भेजा नोटिस.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने आज NOTA (none of the above) को लेकर एक जनहित याचिका पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस भेजा है. इस याचिका में मांग की गई है कि अगर किसी चुनाव में उम्मीदवारों के खिलाफ पड़े वोटों की संख्या से ज्यादा नोटा के पक्ष में पड़े वोटों से कम है, तो उस सीट पर फिर से चुनाव कराए जाएं. इस याचिका में कहा गया है कि 1999 में लॉ कमीशन ने इसका प्रस्ताव दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी 2013 में सभी उम्मीदवारों को नकारने के अधिकार यानी राइट टू रिजेक्ट पर अपनी सहमति जताई थी और कहा था कि इससे राजनीतिक सिस्टम साफ होगा. 

2019 के लोकसभा चुनावों में नोटा के तहत 6.5 लाख वोट पड़े थे, जो कुल वोट शेयर का 1.06 फीसदी था. कुल 36 राजनीतिक पार्टियों में से, जिनके प्रतिनिधि 17वीं लोकसभा के लिए चुने गए थे, उनमें से 15 को नोटा से कम वोट मिले थे. इनमें से कई पार्टियों ने गिनी-चुनी सीटों पर चुनाव लड़ा था.

शुरुआत में इस याचिका पर सुनवाई करने को लेकर चीफ जस्टि एस ए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम बहुत इच्छुक नहीं थे. यह याचिका अश्विनी कुमार उपाध्याय नाम के शख्स ने डाली है. याचिकाकर्ता का कहना है कि राइट टू रिजेक्ट से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी और राजनीतिक पार्टियां मनमाने तरीके से अपने उम्मीदवार नहीं चुन पाएंगी.

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याचिका में कहा गया है कि 'राइट टू रिजेक्ट और नए उम्मीदवार को चुनने का अधिकार मिलने से लोग अपना असंतोष जता पाएंगे. अगर वोटरों को उम्मीदवार के बैकग्राउंड या परफॉर्मेंस से दिक्कत है तो वो नोटा का अधिकार इस्तेमाल कर उन्हें खारिज करेंगे और नए उम्मीदवार को चुनने का विकल्प चुनेंगे.' इसमें यह भी मांग की गई है कि चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि रिजेक्ट हो चुके उम्मीदवारों और राजनीतिक पार्टियों को दोबारा हो रहे चुनावों में लड़ने से रोका जाए.

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चीफ जस्टिस ने कहा, 'यह एक संवैधानिक समस्या है. अगर आपकी दलील स्वीकार की जाती है, अगर सारे उम्मीदवार रिजेक्ट हो जाते हैं, तो कोई भी सांसद नहीं बनेगा और सीट का कोई प्रतिनिधि नहीं बचेगा. अगर ऐसा कई सीटों पर होता है, तो बहुत सी सीटें खाली रह जाएंगी. फिर संसद का गठन कैसे होगा?'

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याचिकाकर्ता ने दलील रखी कि अगर 99 फीसदी लोग नोटा को वोट करते हैं और एक फीसदी कैंडिडेट को तो इसका मतलब है कि वो एक फीसदी चुनाव का नतीजा तय कर रहा है. सीजेआई ने कहा कि अगर किसी राजनीतिक पार्टी का वोटरों पर अधिक प्रभाव है तो वो इसका इस्तेमाल याचिकाकर्ता की मांग के हिसाब से लागू नियम का फायदा उठाकर बहुत सारे कैंडिडेट्स को रिजेक्ट करवा सकता है, फिर सीटें नहीं भरेंगी और संसद का गठन नहीं हो पाएगा. 

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कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या उनका जवाब यह है कि कि 'अगर कोई सीट खाली रह जाती है क्योंकि सभी उम्मीदवारों को नकार दिया गया था, तो वहां दोबार चुनाव होने चाहिए?' याचिकाकर्ता ने कहा कि 'राइट टू रिजेक्ट' से पार्टियों को प्रेरणा मिलेगी. इसके बाद चीफ जस्टिस ने आखिरकार याचिका स्वीकार कर ली और नोटिस जारी कर दिया.

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