सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पिता ही है बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक, दूसरी शादी से कम नहीं होता अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि बच्चे का पिता ही उसका स्वभाविक और प्राकृतिक अभिभावक है. अदालत का कहना है कि पिता की दूसरी शादी की वजह से उसका बच्चे पर कानूनी अधिकार खत्म नहीं हो जाता है.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद एक व्यक्ति अपने बच्चे को उसके नाना-नानी से वापस पाने में सफल हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीवनसाथी की मौत के बाद दूसरी शादी, पहली पत्नी या पति से हुए बच्चे की कस्टडी का दावा करने में बाधा नहीं बन सकता है. देश की शीर्ष अदालत के इस फैसले से एक पिता को अपने नाबालिग बेटे की कस्टडी मिल गई, जो उसकी पहली पत्नी की मौत के अपने नाना-नानी के साथ रह रहा था. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन के पीठ ने अपने फैसले में कहा कि बच्चे पर नाना-नानी से अधिक अधिकार उसके पिता का है. अदालत ने कहा कि पिता ही बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक है.

हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका

सुप्रीम कोर्ट में अपील करने वाले पिता ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी. लेकिन हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए बच्चे की कस्टडी पिता को देने से इनकार कर दिया था. यह बच्चा 2021 तक अपने मां-बाप  के साथ ही रह रहा था.लेकिन 2021 में मां की मौत के बाद से वह अपने नाना-नानी के साथ रह रहा है. मां की मौत के समय बच्चे की आयु 10 साल थी.हाई कोर्ट ने नाना-नानी के साथ बच्चे के तारतम्य और पिता की दूसरी शादी को देखते हुए बच्चे की कस्टडी पिता को देने से मना कर दिया था.

हाई कोर्ट के फैसले को बच्चे के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रन ने कहा,''हम यह पाते हैं कि विद्वान जज ने अपने पिता के प्रति बच्चे का रवैया जानने का प्रयास नहीं किया. सच यह है कि बच्चा, अपने जन्म के बाद, अपनी मां की मृत्यु तक करीब 10 साल तक अपने माता-पिता के साथ था. वह 2021 में पिता से अलग हो गया था. इसके बाद से वह अपने नाना-नानी के साथ रह रहा है, जिनके पास पिता से बेहतर दावा नहीं हो सकता, जो बच्चे के प्राकृतिक अभिभावक हैं. बच्चे की मां के जीवित रहते किसी वैवाहिक विवाद का कोई आरोप नहीं है और न ही पत्नी या बेटे के खिलाफ दुर्व्यवहार की कोई शिकायत है.''

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पिता को बताया बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक

जस्टिस चंद्रन ने कहा कि पिता ही प्राकृतिक अभिभावक है, वो पढ़े-लिखे हैं और अच्छी नौकरी करते हैं, उसके कानूनी अधिकारों के खिलाफ कुछ भी नहीं है. एक प्राकृतिक अभिभावक के रूप में अपने बच्चे की कस्टडी पाने की उनकी इच्छा वैध है. हमारी राय है कि इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए बच्चे का सबसे अच्छा कल्याण तब होगा,जब बच्चा अपने पिता से साथ रहे.  

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अदालत ने यह भी कहा कि बच्चे के नाना-नानी ने बच्चे के पिता से देखभाल के लिए हर महीने 20 हजार रुपये की मांग की है. वो बच्चे की देखरेख उसके मामा या मौसी की मदद से कर रहे हैं. इससे पता चलता है कि वो बच्चे की देखभाल करने में आर्थिक रूप से भी सक्षम नहीं हैं. अदालत ने कहा कि हमें यह भी बताया गया है कि बच्चे के दादा-दादी ने उसके नाम से जमीन कर रखी है. उन्होंने उसके नाम से 10 लाख रुपये भी बैंक में जमा करा रखे हैं और 25 लाख रुपये का जीवन बीमा करा रखा है.वहीं बच्चे के पिता राज्य प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं. वो एक जिम्मेदार व्यक्ति हैं, ऐसे में दुबारा शादी कर लेने से उनका बच्चे की कस्टडी का दावा कमजोर नहीं हो जाता है. 

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नाना-नानी के मिलने की व्यवस्था की

अदालत ने कहा है कि बच्चा अभी कक्षा सात का छात्र है. उसकी परीक्षाएं होनी हैं. इसलिए पढ़ाई पूरी होने तक वह इस साल 30 अप्रैल तक अपने नाना-नानी के साथ रह सकता है. पिता को बच्चे की कस्टडी मिलने तक वह दूसरे हफ्ते के शुक्रवार की शाम या शनिवार की सुबह अपने पिता के पास आ सकता है. उसे रविवार शाम तक अपने नाना-नानी के पास लौटना होगा. अदालत ने कहा है कि इस साल एक मई को बच्चे को स्थानीय थाना अध्यक्ष की मौजूदगी में बच्चे को उसके पिता को सौंप दिया जाए. दालत ने बच्चे की उसके नाना-नानी के साथ मुलाकात की व्यवस्था भी दी है. अदालत ने कहा है कि एक मई के बाद बच्चा सप्ताह के अंतिम दिनों में अपने नाना-नानी के साथ रह सकता है. ऐसा एक साल तक चलेगा. उसके बाद बच्चे पर निर्भर करेगा कि वह उनके पास जाना चाहता है या नहीं.  

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