"समाज को बदलना होगा": दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों में सुधार की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज

Supreme Court On Dowry: याचिकाकर्ता ने कहा, दहेज निषेध अधिनियम और आईपीसी की धारा 498 ए का मकसद विवाहित महिलाओं को दहेज की मांग और उत्पीड़न से बचाना था, लेकिन हमारे देश में ये कानून गैरजरूरी और अवैध मांगों को निपटाने और पति-पत्नी के बीच किसी अन्य तरह का विवाद होने पर पति के परिवार को दबाने का हथियार बन गए हैं.

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दहेज और घरेलू हिंसा के मौजूदा कानूनों की समीक्षा पर सुप्रीम कोर्ट.
दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार (Supreme Court) कर दिया, जिसमें दहेज और घरेलू हिंसा के मौजूदा कानूनों (Domestic Violence Laws) की समीक्षा और सुधार के लिए एक विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति की मांग की गई थी, ताकि उनके  दुरुपयोग रोका जा सके. इस याचिका पर सुनवाई जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने की. उन्होंने कहा कि समाज को बदलना होगा और इस पर कुछ और नहीं किया जा सकता. जस्टिस नागरत्ना ने याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा, "समाज को बदलना होगा, हम कुछ नहीं कर सकते. संसदीय कानून हैं."

घरेलू हिंसा कानूनों में सुधार वाली याचिका खारिज

इस याचिका को अधिवक्ता विशाल तिवारी ने दायर किया था. इस याचिका में हाल ही में बेंगलुरु के एक इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या को देखते हुए घरेलू हिंसा कानूनों में सुधार और उनके दुरुपयोग को रोकने की मांग की गई थी. याचिकाकर्ता ने  ऐसे कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की थी. याचिका में सरकार को यह निर्देश देने की भी मांग की गई थी कि वह विवाह के दौरान दिए गए सामान/गिफ्ट/पैसे की लिस्ट बनाए और हलफनामे के साथ उसका रिकॉर्ड बनाए रखे और इसे शादी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट के साथ अटैच करे. 

'ये कानून पति के परिवार को दबाने का हथियार बने'

याचिकाकर्ता ने कहा, दहेज निषेध अधिनियम और आईपीसी की धारा 498 ए का मकसद विवाहित महिलाओं को दहेज की मांग और उत्पीड़न से बचाना था, लेकिन हमारे देश में ये कानून गैरजरूरी और अवैध मांगों को निपटाने और पति-पत्नी के बीच किसी अन्य तरह का विवाद होने पर पति के परिवार को दबाने का हथियार बन गए हैं. इन कानूनों के तहत शादीशुदा पुरुषों को गलत तरीके से फंसाए जाने की वजह से महिलाओं के खिलाफ वास्तविक और सच्ची घटनाओं को शक की नजर से देखा जाता है.

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'न्याय और आपराधिक जांच प्रणाली पर उठे सवाल'

याचिकाकर्ता ने कहा कि दहेज के मामलों में पुरुषों को गलत तरीके से फंसाए जाने की कई घटनाएं और मामले सामने आए हैं.  जिसकी वजह से बहुत दुखद अंत हुआ है और हमारी न्याय और आपराधिक जांच प्रणाली पर भी सवाल उठे हैं. याचिका में आगे उन्होंने कहा कि यह सिर्फ अतुल सुभाष की ही बात नहीं है, बल्कि ऐसे कई पुरुष हैं, जिन्होंने अपनी पत्नियों द्वारा उन पर लगाए गए कई मामलों की वजह से आत्महत्या की है. उन्होंने कहा, "दहेज कानूनों के घोर दुरुपयोग ने इन कानूनों के उस मकसद को विफल कर दिया है, जिसके लिए इन्हें बनाया गया था."

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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