अदालत के पास शक्ति नहीं... सुप्रीम कोर्ट ने जुर्माना बढ़ाने की याचिका पर सुनवाई से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि यह विषय विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है और अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती. अदालत ने याचिकाकर्ता को संसद का रुख करने की सलाह दी.

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  • सुप्रीम कोर्ट ने BNS में जुर्माने की राशि बढ़ाने की जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार किया
  • याचिका में कहा गया कि वर्तमान जुर्माने अपराधियों को रोकने और पीड़ितों को मुआवज़ा देने में असफल
  • याचिकाकर्ता ने निचली अदालतों को अपराध की गंभीरता अनुसार जुर्माना तय करने के दिशा-निर्देश देने का आग्रह किया था
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता में अपराधों पर लगने वाले जुर्माने की राशि बढ़ाने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है. मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में सुनवाई कर रहे CJI बी. आर. गवई ने याचिकाकर्ता से साफ कहा कि इस मामले को लेकर संसद जाइए, अदालत के पास इसमें कोई शक्ति नहीं है. यह याचिका डॉ. संजय कुलश्रेष्ठ द्वारा दायर की गई थी, जिसमें दलील दी गई थी कि भारतीय कानूनों में कई अपराधों पर लगने वाले जुर्माने इतने कम हैं कि न तो वे अपराधियों को रोक पा रहे हैं और न ही पीड़ितों को पर्याप्त मुआवज़ा दिला पा रहे हैं.

याचिका में क्या कहा गया था?

कोर्ट याचिका में अदालत से आग्रह किया गया था कि वह निचली अदालतों को ऐसे दिशा-निर्देश जारी करे, जिससे जुर्माना अपराध की गंभीरता और परिस्थितियों के अनुसार तय किया जा सके. याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे दंडात्मक, निवारक, सुधारात्मक और प्रतिकरात्मक उद्देश्यों की पूर्ति हो सकेगी. याचिका में यह भी बताया गया कि कई धाराओं में जुर्माना केवल ₹100, ₹200 या ₹500 है, जो अपराधियों के लिए कोई डर पैदा नहीं करता. रेप जैसे गंभीर अपराधों में भी कई बार केवल ₹5,000 का जुर्माना पीड़िता को मुआवज़े के रूप में दिया गया, जो बेहद अपर्याप्त है.

अपराधी मामूली जुर्माना देकर जेल की सज़ा से बच जाते हैं, जिससे दंड की गंभीरता खत्म हो जाती है. राज्य के न्यायिक और जेल तंत्र पर होने वाले खर्च की भरपाई के लिहाज से भी ये जुर्माने निरर्थक हैं.

मोटर व्हीकल एक्ट का उदाहरण

इस याचिका में मोटर व्हीकल एक्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि हाल ही के सालों में इसमें जुर्माने कई गुना बढ़ाए गए हैं. जैसे कि शराब पीकर गाड़ी चलाने या प्रदूषण प्रमाणपत्र न होने पर ₹10,000 से ₹50,000 तक का जुर्माना लगाया जाता है. इससे अपराधियों पर वास्तविक निवारक असर पड़ा है. याचिका में यह भी सुझाव दिया गया कि अगर अदालतें मामूली जुर्माना ही लगाना चाहें, तो अपराधियों से सामुदायिक सेवा कराई जाए. जैसे कि पेड़ लगाना, ट्रैफिक मैनेजमेंट में सहयोग देना या वृद्धाश्रम में सेवा करना.

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