सुप्रीम कोर्ट ने बोधगया मंदिर को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई से किया इनकार

याचिका महाराष्ट्र की पूर्व राज्य मंत्री व वकील सुलेखा कुंभारे ने दाखिल की है, जिसमें बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को रद्द करने और महाविहार का प्रबंधन बौद्धों को सौंपने की अपील की है

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  • बोधगया मंदिर को लेकर दाखिल याचिका पर आया अपडेट
  • सुप्रीम कोर्ट ने बोधगया मंदिर को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई से किया इनकार
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बिहार के बोधगया में महाबोधि महाविहार मंदिर मामले में अपडेट आया है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने बोधगया मंदिर को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है. ये सुनवाई 1949 के कानून को रद्द करने और प्रबंधन बौद्धों को सौंपने की याचिका पर है. कोर्ट ने कहा कि वो जनहित याचिका पर सुनवाई नहीं करेगा, हालांकि याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने की छूट दी है. ये याचिका महाराष्ट्र की पूर्व राज्य मंत्री व वकील सुलेखा कुंभारे ने दाखिल की है.

'बौद्धों की आस्था और धार्मिक अधिकारों का होना चाहिए सम्मान'

जिसमें बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को रद्द करने और महाविहार का प्रबंधन बौद्धों को सौंपने की अपील की है. याचिका में कहा गया था कि बौद्धों की आस्था और धार्मिक अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए.

महाबोधि मंदिर की बात करें तो ये एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और बौद्ध धर्म का सबसे पवित्र तीर्थस्थल है. 1949 के बोधगया मंदिर अधिनियम के तहत बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति (BTMC) की स्थापना की, जिसमें चार बौद्ध और चार हिंदू सदस्य शामिल हैं और गया जिला मजिस्ट्रेट इसके पदेन अध्यक्ष हैं. इसके प्रशासन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है. अधिनियम में ये प्रावधान था कि अध्यक्ष हिंदू होना चाहिए, जिसे 2013 में संशोधित कर गैर-हिंदू जिला मजिस्ट्रेट को भी अध्यक्ष बनने की अनुमति दी गई.

हालांकि, अखिल भारतीय बौद्ध फोरम (AIBF) जैसे बौद्ध समूहों का तर्क है कि ये अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 29 और 30 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक मामलों को बिना किसी बाधा के प्रबंधन करने का अधिकार सुनिश्चित करते हैं. साल 2012 में, बौद्ध भिक्षु भंते आर्य नागार्जुन शूराई ससाई और गजेंद्र महानंद पंतावने ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की, जिसमें अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी गई और मंदिर का विशेष रूप से बौद्ध प्रबंधन मांगा गया.

18 मई 2025 को सुप्रीम  कोर्ट ने बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को रद्द करने से संबंधित  लंबित रिट याचिका की अंतिम सुनवाई 29 जुलाई 2025 के लिए निर्धारित की है. जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले ने 12 साल की देरी के लिए सरकारी वकीलों को फटकार लगाई और स्पष्ट किया कि अब मामले को और नहीं टाला जाएगा. कोर्ट ने सभी पक्षों को इस बीच अपने-अपने हलफनामे और जवाबी हलफनामे दाखिल करने का निर्देश दिया था

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