अजीम प्रेमजी की याचिका पर जल्द सुनवाई के लिए तैयार हुआ सुप्रीम कोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, अमानत में खयानत के मामले में बेंगलुरू की अदालत ने समन जारी किए थे

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विप्रो के संस्थापक अजीम प्रेमजी (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) विप्रो (Wipro) के संस्थापक अजीम प्रेमजी (Azim Premji) और उनकी पत्नी की याचिका पर जल्द सुनवाई के लिए तैयार है. सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई करेंगे. कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. अमानत में खयानत के मामले में बेंगलुरू की अदालत ने समन जारी किए थे. अदालत के समन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.  

इससे पहले जून में कर्नाटक हाइकोर्ट ने विप्रो लिमिटेड के संस्थापक अजीम प्रेमजी, उनकी पत्नी और तीन अन्य लोगों की ओर से दायर उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें एक आपराधिक मामले में 27 जनवरी को बेंगलुरू की एक अदालत द्वारा उनके खिलाफ जारी समन रद्द करने की मांग की गई थी. यह मामला कथित तौर पर गैर-कानूनी ढंग से तीन कंपनियों से 45 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति को एक निजी ट्रस्ट और एक नवगठित कंपनी में स्थानांतरित करने से संबंधित है.

चेन्नई आधारित एक कंपनी अदालत इंडिया अवेक फॉर ट्रांसपैरेंसी ने संपत्तियों के स्थानांतरण की वैधता को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट के जज जस्टिस जॉन माइकल कुन्हा ने इस मामले में सुनवाई करते हुए अजीम प्रेमजी, यास्मीन प्रेमजी और पी श्रीनिवासन द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि इस आदेश में हस्तक्षेप करने के लिए उन्हें कोई उचित आधार नहीं मिला. समन शहर के 23 वें अतिरिक्त सिटी सिविल एवं सेशन जज ने जारी किया है.

शिकायतकर्ता इंडिया अवेक फॉर ट्रांसपेरेंसी ने आरोप लगाया था कि अजीम प्रेमजी, यास्मीन अजीम प्रेमजी और पी श्रीनिवासन को तीन कंपनियों विद्या इन्वेस्टमेंट एंड ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड, रीगल इन्वेस्टमेंट एंड ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड और नेपियन इन्वेस्टमेंट एंड ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड का निदेशक बनाया गया था.

आरोप है कि इन तीन व्यक्तियों को तीन कंपनियों की सम्पत्ति अमानत के तौर पर संभालने को दी गई थी. कथित तौर पर वे इन तीनों कंपनियों में कुल 31 हजार 343 करोड़ रुपये का स्वामित्व रखते थे. इन तीन कंपनियों की कुल संपत्ति 51 हजार 549.47 करोड़ रुपये है.

वर्ष 2010-2012 के दौरान इन लोगों ने उपहार के माध्यम से उपरोक्तों तीनों कंपनियों की 13 हजार 602 करोड़ रुपये की संपत्ति एक निजी ट्रस्ट को हस्तांतरित कर दी. शेष संपत्ति 31,342 रुपये के संबंध में इन लोगों ने आपस में साजिश रची और तीनों कंपनियों को चौथी आरोपी कंपनी अर्थात हशम इन्वेस्टमेंट एंड ट्रेडिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड में विलय कर दिया. इससे उन्हें 31 हजार 342 करोड़ रुपये की संपूर्ण संपत्ति पर नियंत्रण प्राप्त हुआ.

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