कई बार अदालत को केस के हालात को देखते हुए कानून से ऊपर उठकर न्याय करना पड़ता है, क्योंकि कानून इंसान की भलाई के लिए बनाए गए हैं. ऐसा ही एक आदेश सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनाया, जिसमें दुष्कर्म के दोषी को आजाद कर दिया गया. इस शख्स ने एक नाबालिग से दुष्कर्म किया था. ऐसे में ये शख्स कानून की निगाह में अपराधी साबित हुआ, लेकिन पीड़िता का कहना था कि वो इस शख्स से प्यार करती है. एक लंबे अदालती संघर्ष के बाद आखिरकार इस लड़की को सही मायनों में 'न्याय' मिल गया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि इस फैसले को नजीर नहीं माना जाएगा.
पहले समझिए क्या है मामला
ये मामला पश्चिम बंगाल कहा है, जहां साल 2018 में 14 वर्षीय लड़की से 25 वर्षीय युवक ने दुष्कर्म किया था. दुष्कर्म के मामले में दोषी करार देते हुए युवक को निचली अदालत ने पोक्सो एक्ट में 20 साल की सजा सुनाई. लेकिन केस ने तब एक नया मोड़ ले लिया, जब लड़की ने कहा कि वह युवक से प्यार करती है. दोनों ने शादी भी की है और वह खुद घर से भागी थी. साथ ही बताया कि उनकी एक छोटी बच्ची भी है. अब लड़की अपने पति को बचाने और छोटे से परिवार को बचाने में जुट गई. आखिरकार, इस लड़की का परिवार टूटने से बच गया. दुष्कर्म के दोषी को कोर्ट ने रिहा कर दिया. ये 'सुप्रीम' फैसला न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और उज्जवल भुइयां की पीठ ने कलकत्ता हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दाखिल अपील को लेकर की जा रही सुनवाई में दिया.
ये है मामला
- 14 साल की युवती से हुआ था साल 2018 में दुष्कर्म
- 20 साल की सजा हुई थी युवक को
- युवती का कहना था कि वह प्रेम करती थी
- कोर्ट को बताया कि दोनों ने शादी कर ली है.
- बच्ची को गोद में लिये पैरवी के लिए भटकती रही युवती
- कोर्ट ने अनुच्छेद-142 का इस्तेमाल करते हुए युवक को रिहा किया
दुष्कर्म के दोषी को रिहाई कैसे?
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में माना कि युवक दुष्कर्म का दोषी है. कलकत्ता हाई कोर्ट का फैसला सही है. लेकिन इसके बावजूद हालात को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद-142 से हासिल विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए युवक को रिहा करने का फैसला सुनाया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह मामला लोगों की आंखे खोलने वाला है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में राइट-टु-प्राइवेसी ऑफ एडोल्सेन्ट के नाम से स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा था. कोर्ट के पास अभियुक्त को सजा देकर जेल भेजने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है, लेकिन इस मामले में पीड़ता के परिवार ने समाज ने और कानूनी तंत्र ने पीड़िता के साथ पहले ही बहुत अन्याय किया है. लड़की और उसकी नन्ही बच्ची ने बहुत तनाव और दुख झेला है, अब उसके पति को जेल भेज कर अदालत उसके साथ और अन्याय नहीं कर सकता. इसलिए अभियुक्त को रहा किया जाता है.
कलकत्ता हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के जुर्म में पोक्सो कानून में निचली अदालत से अभियुक्त को सुनाई गई 20 साल की कैद की सजा रद कर दी थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त 2024 को जो फैसला सुनाया, उसमें हाई कोर्ट का सजा रद करने का आदेश खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत का सजा का आदेश बहाल कर दिया था, लेकिन सजा निलंबित रखी थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय विशेषज्ञ कमेटी बनाई थी और इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी. इस कमेटी ने बताया कि अगर युवक को सजा होती है, जो लड़की का पूरा परिवार बिखर जाएगा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता के पुनर्वास का आदेश देते हुए अभियुक्त की आगे की सजा माफ कर दी.