सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की निचली अदालत के दो जजों को दिल्ली न्यायिक अकादमी में सात दिन की स्पेशल ट्रेनिंग लेने के आदेश जारी किए हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला इन जजों के जमानत आदेशों में गंभीर खामियां बताते हुए सुनाया है. निचली अदालत के जजों में अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (ACMM) और एक सेशन जज शामिल हैं. दोनों न्यायिक अफसरों ने 1.9 करोड़ रुपये की कथित धोखाधड़ी के आरोपी दंपति को जमानत दी थी.
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि इन न्यायिक अधिकारियों का ये फैसला आजादी के सिद्धांतों को कमजोर करने वाला नहीं है, बल्कि आरोपी दंपती का आचरण ऐसा था कि उन्हें जमानत नहीं मिलनी चाहिए थी. मामला एक कंपनी के साथ कथित ठगी से जुड़ा है. कंपनी ने आरोप लगाया था कि आरोपी दंपति ने जमीन ट्रांसफर करने के नाम पर पैसे लिए, जबकि वह जमीन पहले से ही गिरवी रखी गई थी और बाद में तीसरे पक्ष को बेच दी गई.
इसकी शिकायत 2017 में दर्ज कराई गई थी. इसके आधार पर 2018 में प्रीत विहार थाने में FIR दर्ज हुई. साल 2018 में दंपति ने दिल्ली हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत हासिल की थी. जमानत के वक्त उन्होंने पैसे लौटाने का वादा किया था. इसके आधार पर उन्हें लगभग पांच साल तक जमानत मिली. हालांकि उन्होंने अपना वादा तोड़ दिया और रकम वापस नहीं की.
इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने 2023 में उनकी जमानत रद्द कर दी. इसके बावजूद, चार्जशीट दाखिल होने के बाद दंपती ने निचली अदालत से नियमित जमानत हासिल कर ली, जिसे सेशन कोर्ट और बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर भी आपत्ति जताई क्योंकि उसने पहले दंपति के खिलाफ सख्त टिप्पणियां की थीं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ACMM ने हाईकोर्ट के 1 फरवरी 2023 के आदेश को नजरअंदाज करते हुए साधारण सी दलील दे दी कि चूंकि चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और जांच अधिकारी ने हिरासत की जरूरत नहीं बताई, इसलिए आरोपियों को हिरासत में लेने का कोई उद्देश्य नहीं है.
पीठ ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि ये फैसला दंपति के आचरण और हाईकोर्ट के समक्ष किए गए उनके वादों को नजरअंदाज करता है. सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के इस रवैये को गंभीरता से लेते हुए कहा कि वह इन आदेशों की अनदेखी नहीं कर सकते. पीठ ने निर्देश दिया कि दोनों न्यायिक अधिकारियों को कम से कम सात दिनों का विशेष प्रशिक्षण लेना होगा.
दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से कहा है कि वे दिल्ली ज्यूडिशियल अकादमी में इस ट्रेनिंग की व्यवस्था करें. प्रशिक्षण का जोर इस बात पर होगा कि उच्च अदालतों के फैसलों को कितना महत्व देना चाहिए और न्यायिक कार्यवाही कैसे संचालित करनी चाहिए. बेंच ने स्पष्ट किया कि यह कदम न केवल न्यायिक प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए भी है कि भविष्य में इस तरह की चूक न हो, खासकर जब ऊपरी अदालतों के आदेशों का मामला हो.