"आप कोई अमृत थोड़े ही बेच रहे हैं": गुटखा-पान मसाला मिक्सिंग पर बैन के खिलाफ SC में हुई तीखी बहस

मद्रास हाईकोर्ट ने 23 मई 2018 को खाद्य सुरक्षा आयुक्त द्वारा जारी एक अधिसूचना को रद्द कर दिया था. इसमें गुटखा, पान मसाला और तंबाकू/निकोटीन युक्त अन्य चबाने योग्य खाद्य उत्पादों के निर्माण, भंडारण, परिवहन, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

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नई दिल्ली:

गुटखा-पान मसाला की बिक्री पर पाबंदी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी की है कि आप कोई अमृत थोड़े ही बेच रहे हैं. गुटखा बिक्री पर स्थाई पाबंदी क्यों नहीं लगाते? इस पर तमिलनाडु सरकार के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि पाबंदी नहीं लगा सकते, क्योंकि निर्माता कंपनियां पान-मसाला और तंबाकू अलग-अलग पाउच में बेचती हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल की गई तमिलनाडु सरकार की याचिका पर नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. दरअसल, मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के खाद्य सुरक्षा आयुक्त की 2018 की अधिसूचना को रद्द कर दिया था. इसके जरिए गुटखा और अन्य तंबाकू आधारित उत्पादों की बिक्री, निर्माण और परिवहन पर रोक लगाई गई थी. हाई कोर्ट द्वारा इसे रद्द करने के आदेश के खिलाफ तमिलनाड़ू सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. 

जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने सुनवाई करते हुए सरकार से पूछा कि हर साल ऐसी अधिसूचना जारी करने के बजाय स्थाई रूप से पाबंदी क्यों नहीं लगा देते? ये कोई अमृत थोड़े ही है? इसके जवाब में कपिल सिब्बल ने कहा, 'लोग हर बार अलग-अलग पुड़िया खरीदते हैं और इसे मिलाकर गुटका बना लेते हैं. अब आप ही बताइए तंबाकू और पान मसाले की खरीद फरोख्त पर कैसे पाबंदी लगाई जाए?' 

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राज्य सरकार ने 2013 में ये पाबंदी लगाई थी, लेकिन यह अस्थाई तौर पर थी. हर साल सरकार इसे साल भर के लिए विस्तार करती है. फिर वही कोर्ट कचहरी की कवायद होती है. 

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गुटका निर्माताओं की ओर से सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि सिर्फ स्वास्थ्य आपातकाल में ही इनकी खरीद बिक्री पर अस्थाई पाबंदी लगाई जा सकती है. पूर्ण पाबंदी मौजूदा कानूनी फ्रेमवर्क के तहत नहीं हो सकता. ये अधिसूचना उसके बाहर है. पान-मसाला, गुटका और तंबाकू उत्पाद के एक अन्य निर्माता और पक्षकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि 2006 के उस एक्ट पर आधारित अधिसूचना तो वर्षों पहले ही कब की बेअसर हो चुकी है. अब उसके आधार पर हर साल पाबंदी की अधिसूचना जारी करना स्वीकार्य नहीं है.

इस पर तमिलनाडु सरकार के वकील कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि हर साल यही दलीलें देना भी तो उचित नहीं है, क्योंकि ये उत्पाद साल बीतने के बाद भी जनता की सेहत के लिए उतने ही खतरनाक हैं. क्या साल बीतने के इन उत्पादों के सेवन से कैंसर का खतरा भी खत्म हो जाता या टल जाता है? ये कैसी दलील दी जा रही है. 

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जस्टिस नागरत्ना ने पूछा कि आप सीधे नहीं कर पा रहे तो घुमा फिरा कर पाबंदी लगा रहे हैं! सिब्बल ने कहा कि हाई कोर्ट ने इसे फूड प्रोडक्ट माना है तो हमने एफएसए के तहत इसे नियमित किया है. इस पर वैद्यनाथन ने फिर दलील दी कि हाईकोर्ट ने गुटका को खाद्य उत्पाद माना है, लेकिन तंबाकू नहीं. 

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सिब्बल ने अपील की कि सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार को इस अधिकार और छूट का आदेश पारित कर दे कि राज्य में पान मसाला और तंबाकू अलग-अलग बेचने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है. सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि FSA की धारा 30(2)(a) के मुताबिक ये पाबंदी सिर्फ स्वास्थ्य आपातकाल में ही मान्य है. सामान्य हालात में नहीं. 

सिब्बल ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2016 में राज्य में तंबाकू उत्पाद पर बैन का आदेश जारी कर चुका है. हम नहीं चाहते कि हाईकोर्ट उस आदेश की राह में रोड़े अटकाए. हालांकि, पीठ ने इतने वाद-विवाद और संवाद के बाद भी कोई आदेश पारित नहीं किया. इस मसले पर 18 अप्रैल की सुबह ही पहले मुकदमे के तौर पर सुनवाई जरूर तय कर दी गई. 

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