- सुप्रीम कोर्ट ने हरिद्वार के मां चंडी देवी मंदिर विवाद में HC को याचिका पर शीघ्र निर्णय का निर्देश दिया.
- कोर्ट ने जिलाधिकारी को मंदिर प्रशासन में कुप्रबंधन की स्थिति पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने और जांच का आदेश दिया.
- हाई कोर्ट ने मंदिर समिति को रिसीवर नियुक्त करने का आदेश दिया था, जिसे सेवायत द्वारा चुनौती दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तराखंड हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि वह हरिद्वार (Haridwar Temple) के मां चंडी देवी मंदिर के ‘सेवायत' की उस याचिका पर फैसला करे, जिसमें उसके एक आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है. इस आदेश के तहत बदरी केदार मंदिर समिति को मंदिर प्रबंधन की देखरेख के लिए एक ‘रिसीवर' नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था. ‘सेवायत' एक पुजारी होता है, जो मंदिर के दैनिक अनुष्ठानों और प्रबंधन में सक्रिय रूप से शामिल होता है.
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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस का निर्देश
जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला और जस्टिस एस वी एन भट्टी की बेंच ने हरिद्वार के जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि वह इस बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करें कि क्या मंदिर प्रशासन में कोई कुप्रबंधन है. शीर्ष अदालत ने अधिकारी को समग्र स्थिति पर विचार करने और वास्तविक जमीनी स्थिति के संबंध में व्यापक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए अगर जरूरी हो तो अपनी जांच में अन्य पक्षों को भी शामिल करने का निर्देश दिया.
बेंच ने कहा कि उन्हें यह सुझाव देने की भी स्वतंत्रता है कि उच्च न्यायालय द्वारा मामले का अंतिम निर्णय होने तक, मठ के मामलों के प्रबंधन के संबंध में क्या अंतरिम व्यवस्था होनी चाहिए. उन्हें मठ और उसके भक्तों के सर्वोत्तम हित पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से कहा कि वह इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर ले और अंततः इस मुद्दे पर निर्णय करे कि तदर्थ व्यवस्था के स्थान पर स्थायी या नियमित व्यवस्था लागू की जाए.
हाई कोर्ट में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश
याचिका का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जिलाधिकारी को हाई कोर्ट में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा और मामले की सुनवाई छह हफ्ते के लिए स्थगित कर दी. अधिवक्ता अश्विनी दुबे के माध्यम से शीर्ष अदालत में दायर महंत भवानी नंदन गिरि की याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट ने बिना किसी सबूत और शिकायत के मंदिर का नियंत्रण समिति को सौंप दिया. याचिका में तर्क दिया गया कि यह निर्देश 2012 में गठित एक पैनल (जिसमें हरिद्वार के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शामिल थे) के होने के बावजूद दिया गया.
याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि ‘रिसीवर' नियुक्त करने का निर्देश एक आपराधिक मामले में एक आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान दिया गया था.
कभी कुप्रबंधन या गबन का मुद्दा नहीं उठाया
बता दें कि मां चंडी देवी मंदिर की स्थापना आठवीं शताब्दी में जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य ने की थी और तब से याचिकाकर्ता के पूर्वज ‘सेवायत' के रूप में इसका प्रबंधन और देखभाल करते आ रहे हैं. याचिका में दावा किया गया है कि न तो कोई शिकायत थी और न ही जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक वाली समिति ने कभी कुप्रबंधन या गबन का मुद्दा उठाया.
याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट ने कोई विशिष्ट राहत दिये बगैर मनमाने और अवैध निर्देश दिए, जो तर्क से परे हैं. इसमें कहा गया है कि अदालत के आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं, क्योंकि याचिकाकर्ता (सेवायत/मुख्य ट्रस्टी) का पक्ष नहीं सुना गया. याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट पर नोटिस और निर्देश नहीं जारी करने का भी आरोप लगाया.
रोहित गिरि की पत्नी ने दर्ज कराई थी FIR
हाई कोर्ट ने यह आदेश रीना बिष्ट नामक एक महिला द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था, जिसने मंदिर के मुख्य पुजारी रोहित गिरि की ‘सहजीवन साथी' (लिव-इन पार्टनर) होने का दावा किया था.रोहित गिरि की पत्नी गीतांजलि ने 21 मई को अपने पति, रीना बिष्ट और सात अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी. गीतांजलि ने आरोप लगाया था कि 14 मई को रीना बिष्ट ने उनके बेटे को गाड़ी से कुचलने की कोशिश की थी.
उसी दिन रोहित गिरि को पंजाब पुलिस ने छेड़खानी के एक अलग मामले में गिरफ्तार किया था और फिलहाल वह न्यायिक हिरासत में है. उच्च न्यायालय ने कहा था कि बिष्ट के साथ रोहित गिरि तब से रह रहे थे, जब उनकी तलाक की कार्यवाही लंबित थी और बिष्ट ने जनवरी में उनके बच्चे को जन्म दिया. अदालत ने कहा था कि मंदिर के ‘ट्रस्टी' एक अप्रिय स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं. और ट्रस्ट में पूरी तरह से कुप्रबंधन है. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि दान में हेराफेरी हो सकती है.
इनपुट-भाषा के साथ