मुआवजे में देरी, तो जमीन का मौजूदा मार्केट रेट वाला पैसा... जानें किसानों के लिए क्यों गुड न्यूज है सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2003 की भूमि दर का उपयोग करके भुगतान करना न्याय का मखौल उड़ाना होगा. जज गवई ने कहा कि भूमि मालिकों को लगभग 22 वर्षों से उनके वैध बकाये से वंचित रखा गया है और यदि भूमि के बाज़ार मूल्य की गणना 2003 के अनुसार की जाती है, तो उन्हें काफी नुकसान होगा.

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लंबे समय से अपनी जमीन के मुआवजे का इंतजार कर रहे लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए ऐसी व्यवस्था कर दी कि यदि सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि के लिए मुआवजे के भुगतान में देरी होती है तो इसके एवज में जमीन के मालिक मौजूदा बाजार मूल्य को पाने के हकदार होंगे. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश देश भर के कई किसानों और अन्य लोगों को राहत तो देगा ही साथ ही पर्याप्त मुआवजा दिलाने में भी मदद करेगा.

किस मामले की सुनवाई में आया फैसला

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड के खिलाफ एक याचिका पर आया था. मामला ये था कि साल 2003 में बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर परियोजना के निर्माण के लिए हजारों एकड़ भूमि के अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की थी. जिसमें भूमि के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया गया, लेकिन मालिकों को मुआवजे के लिए कोई आदेश पारित नहीं किया गया. भूमि अधिग्रहण अधिकारी द्वारा 2019 में मुआवज़ा देने के लिए कोर्ट की अवमानना ​​कार्यवाही की आवश्यकता पड़ी. हालांकि, उन्होंने मुआवज़ा 2003 की दरों के आधार पर दिया.

जमीन के मुआवजे पर क्या बोले जज

जज बी आर गवई और के वी विश्वनाथन ने यह निर्णय देते हुए कि भूमि के मूल्य की गणना 2019 के अनुसार की जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2003 की भूमि दर का उपयोग करके भुगतान करना न्याय का मखौल उड़ाना होगा. जज गवई ने कहा कि भूमि मालिकों को लगभग 22 वर्षों से उनके वैध बकाये से वंचित रखा गया है और यदि भूमि के बाज़ार मूल्य की गणना 2003 के अनुसार की जाती है, तो उन्हें काफी नुकसान होगा.

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किसानों ने किया था मुआवजे का विरोध

साल 2019 में, जब तत्कालीन भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने 2003 की दरों के आधार पर मुआवज़ा दिया, तो जमीन मालिकों ने विरोध किया, लेकिन कर्नाटक HC से उन्हें निराश लौटना पड़ा. इसके बाद उन्होंने ऊपरी अदालत का रुख किया. SC की पीठ ने कहा, "हमें लगता है कि यह एक उपयुक्त मामला है जिसमें इस अदालत को अपीलकर्ताओं की भूमि के बाजार मूल्य के निर्धारण की तारीख को बदलने का निर्देश देना चाहिए."  जज गवई ने कहा, "यदि 2003 के बाजार मूल्य पर मुआवज़ा दिए जाने की अनुमति दी जाती है, तो यह न्याय का उपहास करने और अनुच्छेद 300A के तहत संवैधानिक प्रावधानों का मज़ाक उड़ाने के समान होगा." न्याय के हित में, पीठ ने भूमि अधिग्रहण अधिकारी को 22 अप्रैल, 2019 तक अधिग्रहित भूमि के बाजार मूल्य की गणना करने का आदेश दिया. 

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