बात एक ऐसे ग्रामीण की जो दिव्यांग और ज्यादा पढ़े-लिखे न होने के बावजूद अरावली के पहाड़ और मांगर के जंगलों को बचाने में जुटे हैं. अवैध खनन और कब्जे का शिकार रही इन पहाड़ियों और जंगल पर वो रिसर्च कर चुके हैं और अब दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद समेत देशभर के लोगों को अरावली वॉक कराकर इसके महत्व को बता रहे हैं. उनके इस काम को समझने के लिए हम सुबह साढ़े बजे फरीदाबाद-दिल्ली-गुरुग्राम बॉर्डर के मांगर गांव पहुंचे. साधारण से घर में रहने वाले 30 साल के सुनील हर्षाना एक साधारण किसान परिवार से हैं और कभी इन्हीं अरावली के पहाड़ों में अपने जानवर चराते थे लेकिन अब इस पहाड़ और जंगल को अवैध खनन और कब्जे से बचाने की मुहिम चला रहे हैं.
सुनील हर्षाना ने हमें बताया कि "ये एरिया पानी का रिचार्ज जोन है. उस पानी को गुड़गावां, फरीदाबाद और दिल्ली के लोग भी ले रहे हैं लेकिन उनको यह पता होना चाहिए कि उन्हें क्या बचा कर रखना है, हमारी धरोहर क्या है, इस बात को लेकर हम 2015 में आगे बढ़े कि एक साइड में पैसेवाले हैं दूसरी साइड में. अगर हम पब्लिक को कनेक्ट करें तो आने वाले वक्त में वो खड़े होकर बोलेंगे तो कि बस अब रुको. विकास के नाम पर हमने इन पहाड़ और जंगल को कितना बर्बाद किया. अब शहर के लोगों को यहां लाते हैं गांव के भी कुछ युवाओं को हमने जागरूक किया है. अरावली के पहाड़ और जंगलों में शहर के लोगों के आने से बहुत सारे लोगों का ध्यान गया है, चीजें पॉजिटिव हुई हैं."
सुनील हर्षाना सप्ताह में तीन से चार दिन अरावली और मांगर बनी जंगल को जानने के लिए वॉक करवाते हैं. आज भी गुड़गांव के एक निजी स्कूल के बहुत सारे शिक्षक और बच्चे अरावली को जानने समझने आए थे. अरावली के पहाड़ और जंगल की जैव विविधता को समझने के लिए रोजाना तमाम लोग सुनील हर्षाना के पास आते हैं.
हेरिटेज स्कूल की शिक्षिका राजेश्वरी बताती हैं कि वो लोग अक्सर सुनील से बात करते रहते हैं, "इसलिए अपने स्कूल के बच्चों के साथ अरावली आए कि वो सिर्फ इसके बारे में पढ़े नहीं बल्कि यहां आकर महसूस करें . ये जो वॉक है हमारे लिए शिक्षक के तौर पर बहुत महत्वपूर्ण है. जब हम महसूस करते हैं अरावली रेंज को, वॉटर रिचार्ज जोन को, इससे भी बढ़कर पर्यावरण और पेड़ों के महत्व को समझते हैं तब हम इसे संरक्षित करने की तैयारी ज्यादा बेहतर तरीके से करते हैं."
तीन घंटे के इस वॉक में सुनील पर्यायवरण से जुड़ी तमाम बातें लोगों को बताते हैं. अरावली की पहाड़ियों को बचाने के इस अभियान में कई बार सुनील हर्षाना का टकराव बड़े भूमाफियाओं से भी हुआ लेकिन इसके बावजूद उनका अरावली और मांगर बनी को बचाने का अभियान रुका नहीं.