"आसमान से बचाया, खजूर पर अटकाया" : सोनम वांगचुक की केंद्र से लद्दाख को लेकर वादा निभाने की अपील

सोनम वांगचुक ने कहा कि इस मामले को लेकर केंद्र संजीदा नहीं लगता है. लद्दाख के मुद्दे दिल्ली या लखनऊ से आए लोग नहीं समझ सकते हैं.

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सोनम वांगचुक ने कहा कि हमारी किसी नेता और दल को हानि पहुंचाने की कोशिश नहीं है. (फाइल)
नई दिल्‍ली:

मैग्‍सेसे पुरस्‍कार विजेता और पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक (Sonam Wangchuk) पिछले 13 दिनों से सत्‍याग्रह पर बैठे हैं. उनका कहना है कि लद्दाख (Ladakh) के लोग नाराज हैं और चाहते हैं कि केंद्र सरकार (Central Government) अपने वादे निभाए जो उसने एक बार नहीं बल्कि दो बार किए हैं. एनडीटीवी के साथ ख़ास इंटरव्‍यू में सोनम वांगचुक ने कहा कि उनके दो मुख्‍य मुद्दे हैं. पहला लद्दाख को पूर्ण राज्‍य का दर्जा दिया जाना और दूसरा संविधान की छठी अनुसूची में शामिल कर राज्‍य का संरक्षण किया जाना चाहिए. 

उन्‍होंने कहा कि जम्‍मू-कश्‍मीर में बहाली हो रही है, लेकिन लद्दाख में नहीं. उन्‍होंने कहा कि आने वाली सरकार से आश्वासन पत्र चाहिए तब तक हम ये आंदोलन बंद नहीं करेंगे. उन्‍होंने कहा कि कांग्रेस ने कह दिया है, लेकिन बीजेपी अभी नहीं बोल रही की वो अपना वादा पूरा करेगी. उन्‍होंने कहा कि यह मुद्दा उनके घोषणा पत्र में भी था. उन्‍होंने वादा किया, लेकिन निभाया नहीं. 

वांगचुक ने कहा कि लद्दाख में रोष है. हमारा आंदोलन चलता रहा है. लद्दाख संवेदनशील सीमा है, लेकिन इस मामले को लेकर केंद्र संजीदा नहीं लगता है. लद्दाख के मुद्दे दिल्ली या लखनऊ से आए लोग नहीं समझ सकते हैं. उन्‍होंने कहा कि केंद्र ने 2019 में लद्दाख के लोगों का दिल जीता था, लेकिन अब लग रहा है कि उन्होंने हमें आसमान से बचाया लेकिन खजूर पर अटका दिया.

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राम के बहाने केंद्र पर निशाना 

उन्‍होंने कहा कि ये ऐसे राम निकले जो सीता को बचा कर लाए, लेकिन घर नहीं ले गए. साथ ही कहा कि उन्‍होंने लद्दाख को खरीद-फरोख्‍त के लिए खुला छोड़ दिया है. उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाया जा रहा है. उन्‍होंने कहा कि यह राम के आदर्श पर चलने वाली सरकार है, उसे याद रखना चाहिए कि प्राण जाए पर वचन न जाए. 

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उन्‍होंने कहा कि हमारी किसी नेता और दल को हानि पहुंचाने की कोशिश नहीं है. 

24 मार्च को देश भर में अनशन 

वांगचुक ने कहा कि यह साफ है कि सरकार को हमारी नहीं, चुनाव की फिक्र है. हम 24 मार्च को पूरे देश में भी अनशन करने जा रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी हमसे जुड़ रही हैं. अब लग रहा है कि केंद्र की सरकार वादा निभाने वाली नहीं है और हम इंतजार करते ही रह गए. चार सालों से अलग अलग बैठकों में कई बार हमारे मुद्दों को लेकर चर्चा हुई, लेकिन चार मार्च को साफ इनकार कर दिया गया. साथ ही उन्‍होंने कहा कि आंदोलन करना हमारा अधिकार है. 

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