बगावत के बाद बीजेपी से हाथ मिलाकर सत्ता में आए एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायक केसरिया पगड़ी बांधे महारराष्ट्र विधानसभा पहुंचे. दो दिवसीय सत्र के पहले दिन अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ जिसमें टीम शिंदे की जीत हुई. बीजेपी विधायक राहुल नार्वेकर नए स्पीकर चुने गए. अब कल के इस पूरे घटनाक्रम पर शिवसेना ने निशाना साधा है. पार्टी ने मुखपत्र सामना में ना केवल नए स्पीकर और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर तंज कसा है. बल्कि केसरिया पगड़ी बांधे विधानसभा पहुंचे बागी विधायकों पर भी निशाना साधा है.
'सभी के चेहरे साफ गिरे हुए दिख रहे थे'
सामना में कहा गया, " शिंदे गुट के विधायक आए, भगवा पगड़ी पहनकर बालासाहेब की प्रतिमा को प्रणाम करते हुए निष्ठा का नाटक किया. लेकिन उन सभी के चेहरे साफ गिरे हुए दिख रहे थे. उनका पाप उनके मन को कचोट रहा था, ऐसा उनके चेहरों से साफ प्रतीत हो रहा था. शिवसेना प्रमुख का स्मारक चेतना और ऊर्जा का सूर्य है. ये भगवाधारी विधायक जुगनू भी नहीं थे. शिवसेना में रहने के दौरान क्या वो तेज, क्या वो रुआब, क्या वो हिम्मत, क्या वो सम्मान, क्या वो स्वाभिमान… ऐसा बहुत कुछ था. ‘कौन आया, रे कौन आया, शिवसेना का बाघ आया' ऐसी गर्जना की जाती थी. वैसा कोई दृश्य देखने को नहीं मिला."
अनुमति देने से इनकार कर दिया गया
पार्टी मुखपत्र में कहा गया," कान टोपी की तर्ज पर भगवा पगड़ी पहनने से कोई ‘मावला' बन सकता है क्या? लेकिन भौचक्का हुए ये विधायक केंद्रीय सुरक्षा में आ गए और उन्होंने विधानसभा का अध्यक्ष चुन लिया. यह चुनाव अवैध है, लोकतंत्र और नैतिकता के अनुरूप नहीं है. इस अनैतिक कार्य में हमारे राज्यपाल का शामिल होना, इस पर किसी को हैरान नहीं होना चाहिए. इससे पहले महाविकास अघाड़ी ने विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव के लिए राज्यपाल से अनुमति मांगी थी, लेकिन 15 मार्च को मामला न्यायालय में विचाराधीन होने वगैरह का कारण बताते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया गया. फिर आघाड़ी के लिए जो नियम लगाए, वही इस बार क्यों नहीं लगाए जाने चाहिए?"
सामना में कहा गया, " इस सवाल का जवाब मिलने की संभावना नहीं ही है. उपराष्ट्रपति पहले ही शिंदे सहित अपने समूह के 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने का नोटिस जारी कर चुके हैं. अर्थात मामला विचाराधीन है ही ना? विधानसभा अध्यक्ष के पद के लिए चुनाव ‘हेड काउंट' पद्धति से किया गया, लेकिन महाविकास अघाड़ी सरकार को ऐसा करने की अनुमति नहीं थी. उस समय उन्हें गुप्त मतदान चाहिए था. ऐसे में राज्यपाल के हाथ में मौजूद संविधान की पुस्तक निश्चित तौर पर किसकी है? डॉ. आंबेडकर की या किसी और की? उनके हाथ में न्याय का तराजू सत्य का है या सूरत के बाजार का? यह सवाल महाराष्ट्र की जनता के मन में उठ ही रहा है."
वहीं, नए स्पीकर पर निशाना साधते हुए सामना में कहा गया कि वर्तमान मुख्यमंत्री की तरह विधानसभा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल नार्वेकर एक ऐसे गृहस्थ हैं, जो खुद को पहले शिवसैनिक कहा करते थे. शिवसेना, राष्ट्रवादी और अब बीजेपी इस तरह से सफर करते हुए वे विधानसभा अध्यक्ष के पद तक पहुंच गए. उन्हें पता होता है कि कब और कहां पैर रखना है.
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