साल 1986 शाहबानो केस: राजीव का वो फैसला, जो हमेशा के लिए बन गया BJP का 'ब्रह्मास्त्र'

1984 के Lok Sabha Elections में महज 2 सीटों पर चुनाव जीतने वाली बीजेपी ने शाहबानो के मामले को मुद्दा बनाया. जिसका फायदा उसे मिला. 1989 के चुनाव आते-आते बीजेपी देश में एक मजबूत राजनीतिक दल के तौर पर उभर चुकी थी. बीजेपी पिछले लगभग 4 दशक से लगातार इस मुद्दे पर कांग्रेस को घेरती रही है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
नई दिल्ली:

साल 1986 में राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की सरकार द्वारा लिए गए एक फैसले को लेकर पिछले लगभग 38 साल से बीजेपी कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधती रही है. हाल ही में एनडीटीवी के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू (Exclusive Interview) में भी पीएम मोदी (PM Modi) ने राजीव गांधी पर निशाना साधते हुए कहा था कि शाहबानो का सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court)  का जजमेंट उखाड़कर फेंक दिया गया और संविधान को बदल दिया गया. क्‍योंकि वोटबैंक की राजनीति करनी थी. आइए जानते हैं क्या था शाहबानो का मामला.

शाहबानो मामला क्या था? 
शाहबानो मामले को लेकर कांग्रेस पार्टी पर लगातार हमले होते रहे हैं. खासकर जब भी तुष्टीकरण, सुप्रीम कोर्ट के फैसले और संविधान के सम्मान की बात होती है तो बीजेपी की तरफ से इस मुद्दे को उठाया जाता रहा है.  क्या था शाहबानो केस? शाहबानो इंदौर की रहने वाली एक महिला थी. साल 1975 में शाह बानो के पति मोहम्मद अहमद खान ने उसे तलाक दे दिया. शाहबानो और उसके 5 बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया. उस समय शाहबानो की उम्र 59 साल की थी.

शाहबानो ने बच्चों के लिए हर महीने गुजारा भत्ता देने की मांग की. लेकिन उसके पति ने मोहम्मद अहमद खान ने शाह बानो को तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) दे दिया. जिसके बाद उसने किसी भी तरह की मदद करने से इनकार कर दिया. 

संविधान पीठ ने दिया था ऐतिहासिक फैसला 
शाहबानो ने अदालत से न्याय की मांग की . हालांकि उसके पति मोहम्मद अहमद खान ने दलील दी कि तीन तलाक के बाद इद्दत की मुद्दत तक ही तलाकशुदा महिला की देखरेख की जिम्मेदारी उसके पति की होती है. तलाक के बाद गुजारा भत्ता देने का कोई प्रावधान नहीं है. मामला  मुस्लिम पर्सनल लॉ से जुड़ा था. लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची. पांच जजो की संविधान पीठ ने 23 अप्रैल 1985 को मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड के आदेश के खिलाफ जाते हुए शाहबानो के पति को आदेश दिया कि वो अपने बच्चों को गुजारा भत्ता दे.

Advertisement
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हर महीने मोहम्मद अहमद खान को  179.20 रुपये देने थे. इस आदेश में संविधान पीठ ने सरकार से  'समान नागरिक संहिता' की दिशा में आगे बढ़ने की अपील की थी. 

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के दवाब के आगे झुक गए राजीव गांधी
'समान नागरिक संहिता' वाले टिप्पणी और इस फैसले को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड ने जमकर नाराजगी जतायी थी.  मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध के आगे राजीव गांधी सरकार ने घुटने टेक दिए थे. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) कानून 1986 सदन में पेश किया. 

Advertisement

शाहबानो मामले ने पलट दी भारत की राजनीति
शाहबानो मामले में राजीव गांधी की सरकार के द्वारा उठाए गए कदम को लेकर देश भर में सरकार के खिलाफ एक माहौल देखने को मिला. 1984 के लोकसभा चुनाव में महज 2 सीटों पर चुनाव जीतने वाली बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाया. बीजेपी ने सरकार पर तुष्टीकरण का आरोप लगाया. दवाब बढ़ता देखकर राजीव गांधी की सरकार ने एक के बाद एक फैसले लिए. अयोध्या में राम मंदिर का ताला खुलवाया गया. हालांकि सरकार के इस फैसले ने नए राजनीतिक मुद्दों को जन्म दिया. अयोध्या का मामला जो पहले राष्टीय स्तर पर इतना व्यापक नहीं था वो पूरे देश में मुद्दा बन गया. 

Advertisement

पीएम मोदी ने संविधान बदलने के आरोप पर साधा निशाना
पीएम मोदी ने कहा कि संविधान की बात बोलने का उनको हक नहीं है. पहला संशोधन पंडित नेहरू ने अभिव्‍यक्ति की आजादी पर कैंची चलाने का किया. ये संविधान की आत्‍मा पर पहला प्रहार था. फिर संविधान की भावना पर उन्‍होंने प्रहार किया. इन्‍होंने अनुच्‍छेद-356 का दुरुपयोग करके 100 बारे उन्‍होंने देश की सरकारों को तोड़ा. फिर इमरजेंसी लेकर आए. एक तरीके से तो उन्‍होंने संविधान को डस्‍टबीन में डाल दिया. इस हद तक उन्‍होंने संविधान का अपमान किया. फिर उनके बेटे आए... पहले नेहरू जी ने पाप किया, फिर इंदिर गांधी ने किया, फिर राजीव गांधी आए. राजीव गांधी तो मीडिया को कंट्रोल करने के लिए एक कानून ला रहे थे. शाहबानो का सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट उखाड़कर फेंक दिया और संविधान को बदल दिया, क्‍योंकि वोटबैंक की राजनीति करनी थी.

Advertisement

ये भी पढ़ें-: 

Featured Video Of The Day
Madhya Pradesh: चलती बस में लगी आग, यात्रियों ने ऐसी बचाई जान...
Topics mentioned in this article