"यौन शोषण...? नहीं..." : जर्मनी सरकार के कब्ज़े से 3-वर्षीय बेटी वापस पाने की कोशिश में भारतीय दंपति

मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बच्ची की मां ने कहा, "सितंबर, 2021 में हमारी बच्ची को जर्मन बाल विभाग के लोग ले गए थे... हमें बाद में पता चला कि डॉक्टरों को यौन शौषण का संदेह था..."

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बच्ची के माता-पिता ने गुरुवार को मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया...
मुंबई:

एक 3-वर्षीय भारतीय बच्ची, जो पिछले डेढ़ साल से जर्मनी के बाल अधिकार विभाग के पास है, के माता-पिता गुरुवार को मुंबई पहुंचे, ताकि भारतीय अधिकारियों से मुलाकात कर अपनी बच्ची को जर्मनी की सरकार से अपने पास लाने की प्रक्रिया को गति दे सकें.

मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में गुरुवार को ही बच्ची की मां ने कहा, "सितंबर, 2021 में हमारी बच्ची को जर्मन बाल विभाग के लोग ले गए थे... दरअसल, गलती से मुझसे ही बच्ची के प्राइवेट पार्ट पर चोट लग गई थी, और हम उसे डॉक्टर के पास ल गए थे... डॉक्टरों ने हमें यह कहकर वापस भेज दिया था कि बच्ची ठीक है... फिर हम फॉलो-अप चेकअप के लिए गए... फिर बताया गया कि बच्ची ठीक है, लेकिन इस बार डॉक्टरों ने बाल विभाग के लोगों को बुलाकर मेरी बेटी उन्हें सौंप दी... और हमें बाद में पता चला कि चोट के प्रकार की वजह से उन्हें यौन शौषण का संदेह था..."

महिला ने आगे कहा, "स्पष्टीकरण देने की खातिर हमने अपने DNA सैम्पल भी दिए... DNA टेस्ट, पुलिस तफ़्तीश और मेडिकल रिपोर्टों के बाद यौन शोषण का केस फरवरी, 2022 में बंद कर दिया गया... दिसंबर, 2021 में ही उसी अस्पताल के एक विशेषज्ञ ने यौन शोषण की किसी भी संभावना से इंकार किया था..."

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बच्ची के पिता ने कहा, "इसके बाद, हमने सोचा था कि बच्ची हमारे पास लौट आएगी... लेकिन जर्मनी के बाल विभाग ने हमारे खिलाफ बच्ची को रखने का अधिकार खत्म कर देने के लिए केस दायर कर दिया... हम उसके लिए अदालत गए... कोर्ट ने हमें माता-पिता योग्यता रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया... हमने एक साल में 150-पृष्ठ की माता-पिता योग्यता रिपोर्ट हासिल की, जिसके दौरान मनोचिकित्सक ने हमसे सिर्फ 12 घंटे बात की..."

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उन्होंने बताया, "रिपोर्ट के मिलने के बाद हमें अगली सुनवाई की तारीख दी गई... रिपोर्ट में कहा गया था कि बच्ची और माता-पिता के बीच रिश्ता बेहद मज़बूत है और बच्ची को उन्हें लौटा दिया जाना चाहिए, लेकिन माता-पिता बच्ची का पालन-पोषण करना नहीं जानते... उसके लिए हमें एक पारिवारिक घर में तब तक रहना होगा, ज तक बच्ची 3 से 6 साल की नहीं हो जाती... उस उम्र की बच्ची यह तय करने योग्य हो जाती है कि वह माता-पिता के पास रहना चाहती है या फोस्टर केयर में..."

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बच्ची के पिता ने कहा, "उन्होंने तर्क दिया कि हम बच्ची को उसकी मर्ज़ी से खाने-पीने देते हैं... उसकी मर्ज़ी से खेलने देते हैं... और उसे पर्याप्त अनुशासन में नहीं रखते... उन्होंने यह भी कहा कि बच्ची को लगाव न होने का रोग है... उन्होंने आरोप लगाया कि बच्ची को लगाव नहीं होने का रोग इस वजह से है, क्योंकि वह अपनी मर्ज़ी से हर काम करना चाहती है..."

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बच्ची के पिता ने कहा, "हमने उन्हें कहा कि बच्ची को भारत आने दिया जाए, क्योंकि कोर्ट में चल रहा केस तो बहुत लम्बा चलेगा... उन्होंने कहा कि वे बच्ची को भारत नहीं भेज सकते, क्योंकि बच्ची कोई भारतीय भाषा नहीं जानती, जिससे उसे तकलीफ हो सकती है... हम उनसे कहते आ रहे हैं कि हमें बच्ची को कम से कम एक भारतीय भाषा सिखाने दें... एक शिक्षक, एक वॉलंटियर या मेन्टॉर की भी ज़रूरत नहीं होगी... हमारे दोस्त और परिवार ही आसानी से उसे सिखा सकते हैं... जर्मनी में बहुत-से भारतीय हैं, जो बच्ची को हिन्दी या गुजराती सिखाने के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया..."

बच्ची के पिता ने यह भी बताया, "बहुत-से अन्य लोगों की तरह मुझे भी IT कंपनी की नौकरी से निकाल दिया गया था... मुझे नहीं पता, हम कैसे काम चलाएंगे... हम पर 30-40 लाख रुपये का कर्ज़ तो हो भी चुका है..."

बच्ची की मां ने बताया, "हमें बच्ची से हर महीने सिर्फ एक घंटे की मुलाकात करने की अनुमति है, और वह भी सामाजिक कार्यकर्ता की निगरानी में... उस कार्यकर्ता ने भी बच्ची से हमारे लगाव के बारे में सकारात्मक रिपोर्ट दी है... हमने ज़्यादा मुलाकात की मांग की, लेकिन उन्होंने यह कहकर नकार दिया कि इससे बच्ची को थकान हो सकती है... लेकिन सितंबर, 2022 में हमें बच्ची से दो बार मुलाकात करने की अनुमति दे दी गई... लेकिन जर्मनी बाल विभाग कोर्ट के आदेश का भी पूरी तरह पालन नहीं कर रहा है... जब दिसंबर, 2022 में भारत सरकार ने हस्तक्षेप किया, तब उन्होंने कोर्ट के आदेश का पालन करना शुरू किया..."

बच्ची की मां के मुताबिक, "हम कहते आ रहे हैं कि वह भारतीय बच्ची है, और उसे एक भारतीय भाषा सीखनी होगी और सांस्कृतिक ज्ञान पाना होगा... हमने बच्ची तक कॉन्स्यूलर एक्सेस की भी मांग की... अपराधियों को भी कॉन्स्यूलर एक्सेस मिल जाया करती है, लेकिन हमारी बेटी के साथ अपराधियों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है..."

बच्ची की मां ने कहा, "हम उसे भारत लाना चाहते हैं, क्योंकि हमारी निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई है... हमारे बीच सांस्कृतिक अंतर हैं, जिन्हें जर्मन अधिकारियों को समझाना मुश्किल है... हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हमारी बच्ची को वापस लाने का आग्रह करते हैं... हम विदेशमंत्री एस. जयशंकर से भी इस समस्या पर ध्यान देने और बच्ची को वापस लाने में हमारी मदद करने का आग्रह करते हैं... अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले को अपने हाथ में ले लेंगे, तो यह हल हो जाएगा..."

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