सुप्रीम कोर्ट की 7 गाइडलाइन : महिलाओं के खिलाफ अपराध में शादी या मेल-मिलाप का सुझाव न दें अदालतें

अदालतों को अपने न्यायक्षेत्र या अधिकारों की मर्यादा पता होनी चाहिए. लक्ष्मण रेखा से बाहर न जाएं. संवेदनशीलता हर कदम पर दिखनी चाहिए.एक आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत देने के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा.

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Crime Against Women : अदालतों को रुढ़िवादी धारणा से बचने की सलाह भी दी
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न (Crime Against Women) के एक आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत देने के मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले को पलट दिया है. कोर्ट ने ऐसे मामलों में गाइडलाइन (Supreme Court Guidelines) भी जारी की है. शीर्ष अदालत ने यौन अपराधों से जुड़े मामलों में महिलाओं के खिलाफ रुढ़िवादी रुख से बचने की सलाह दी है. अदालत ने कहा कि कोर्ट अपनी ओर से पीड़िता व आरोपी के बीच शादी, मेलमिलाप या समझौता करने की शर्त,सुझाव न दें.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गाइडलाइन में कहा कि जमानत शर्तों को आरोपी और पीड़ित के बीच संपर्क को अनिवार्य या अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. जमानत शर्तों में शिकायतकर्ता को आरोपी द्वारा किसी भी उत्पीड़न से बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि जहां आवश्यक समझा जाए शिकायतकर्ता / अभियोजन पक्ष की सुनवाई की जा सकती है-क्या कोई अजीब परिस्थिति है जिसके कारण उसकी सुरक्षा के लिए अतिरिक्त शर्तों की आवश्यकता हो सकती है.

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अदालत ने कहा कि जहां भी जमानत दी जाती है, शिकायतकर्ता को तुरंत सूचित किया जा जाए कि आरोपी को जमानत दे दी गई है. जमानत शर्तों में महिलाओं और समाज में उनके स्थान को लेकर रुढ़िवाद या पितृसत्तात्मक धारणाओं से परे हटकर निर्देश होने चाहिए. सीआरपीसी की आवश्यकताओं के अनुसार कड़ाई होनी चाहिए.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालयों को किसी मामले की सुनवाई करते समय, अभियोजन पक्ष और अभियुक्तों के बीच शादी करने के लिए किसी भी धारणा (या किसी भी कदम को प्रोत्साहित) का सुझाव या सुनवाई नहीं देना चाहिए, क्योंकि यह उनकी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र से परे है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट अपनी तरफ से मेल मिलाप या समझौता करने की शर्त, सुझाव न दें.

अदालतों को अपने न्यायक्षेत्र या अधिकारों की मर्यादा पता होनी चाहिए. उस लक्ष्मण रेखा से बाहर ना जाएं. संवेदनशीलता हर कदम पर दिखनी चाहिए.सुप्रीम कोर्ट ने हिदायत दी कि जिरह, बहस, आदेश और फैसले में हर जगह पीड़ा का अहसास कोर्ट को भी रहना चाहिए.खास कर जज अपनी बात रखते समय ज्यादा सावधान, संवेदनशील रहें ताकि पीड़ित का आत्मविश्वास न डगमगाए और न ही कोर्ट की निष्पक्षता पर कोई असर पड़े.

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