सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल की बच्ची को गर्भपात की इजाजत वाला अपना आदेश वापस ले लिया है. बलात्कार पीड़िता के माता-पिता द्वारा अपनी बेटी के स्वास्थ्य की सुरक्षा के संबंध में चिंताएं जताने और बच्चे को जन्म देने की इच्छा व्यक्त करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अपना आदेश पलट दिया.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर बच्चे के माता-पिता से बात करने के बाद सीजेआई ने कहा, 'बच्चे का हित सर्वोपरि'. नाबालिग लड़की के माता-पिता ने अपनी बेटी को घर वापस ले जाने और बच्चे को जन्म देने की इच्छा व्यक्त की.
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने किसी भी मामले में पूर्ण न्याय प्रदान करने के लिए आवश्यक आदेश पारित करने का अधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया था. पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला भी शामिल थे.
न्यायालय ने कहा था, ‘‘स्थिति की तात्कालिकता और नाबालिग के कल्याण को ध्यान में रखते हुए, उसकी सुरक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. हमने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया है.''
न्यायालय ने मुंबई के सायन स्थित लोकमान्य तिलक महानगरपालिका सर्वसाधारण रुग्णालय एवं वैद्यकीय महाविद्यालय (एलटीएमजीएच) के डीन को निर्देश दिया था कि वो नाबालिग के गर्भपात के लिए चिकित्सकों के दल का तत्काल गठन करें.
कोर्ट ने मुंबई के सायन अस्पताल से रिपोर्ट देने को कहा था
शीर्ष अदालत ने मुंबई के सायन स्थित अस्पताल से इस संबंध में रिपोर्ट देने को कहा था कि अगर पीड़िता चिकित्सकीय रूप से गर्भपात कराती है या उसे ऐसा नहीं करने की सलाह दी जाती है, तो इसका उसकी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति पर क्या असर पड़ने की संभावना है.
‘गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम' (एमटीपी) के तहत, विवाहित महिलाओं के साथ-साथ विशेष श्रेणियों की महिलाओं के लिए भी गर्भावस्था को समाप्त करने की ऊपरी सीमा 24 सप्ताह है. इन विशेष श्रेणियों में बलात्कार पीड़िताएं और दिव्यांग एवं नाबालिग शामिल हैं.