राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश में ज़मीनी स्तर पर चुनावी कामकाज कर कांग्रेस की जीत में बड़ी भूमिका निभाने का श्रेय रखने वाले पार्टी नेता सचिन पायलट अब राजस्थान में चुनावी वर्ष की शुरुआत व्यापक जनसंपर्क कार्यक्रम के साथ करेंगे, और इस कार्यक्रम में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत संभवतः शिरकत नहीं करेंगे. मुख्यमंत्री तो चुनाव से पहले आखिरी बजट में व्यस्त हैं, सो, सचिन पायलट ने समूचे सूबे में पांच अहम 'किसान सम्मेलन' की योजना बनाई है.
सचिन पायलट की ये रैलियां कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो' यात्रा और 26 जनवरी से शुरू होने जा रही प्रियंका गांधी वाड्रा की महिला रैलियों के बीच बहुत सलीके से 16, 17, 18 और 19 जनवरी को नागौर, हनुमानगढ़, झुंझुनूं और पाली में आयोजित की जाएंगी. इनके अलावा सचिन 20 जनवरी जयपुर के महाराजा कॉलेज में युवा सम्मेलन भी करेंगे.
सचिन पायलट के करीबी सूत्रों ने इस बात से साफ इंकार किया है कि उनका यह कदम राज्य नेतृत्व के लिए चुनौती है. सूत्रों के मुताबिक, 45-वर्षीय नेता का जनसंपर्क कार्यक्रम जनता के पास लौटने के जनादेश के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा.
करीबी सूत्रों का कहना है कि राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का दृढ़ विश्वास है कि राजस्थान उनकी 'कर्मभूमि' है और वह सूबे में राजनैतिक रूप से सक्रिय रहना चाहते हैं, विशेष रूप से जब कांग्रेस पहले से ही 'भारत जोड़ो' यात्रा के साथ आगे बढ़ रही है.
ऐसा लगता है, इस कार्यक्रम को 'भारत जोड़ो' यात्रा के दौरान राहुल गांधी द्वारा मंज़ूरी दे दी गई है. सूत्रों के मुताबिक, सचिन पायलट ने राहुल गांधी से कहा है, "जब तक राजस्थान में कोई बदलाव नहीं हो रहा है, मैं राजस्थान में युवा रैलियां आयोजित करना चाहता हूं..."
राजस्थान में वर्ष 2018 में कांग्रेस की जीत में सचिन पायलट का अहम योगदान माना जाता है, और वह तभी से उन्हें दिए जाने वाले इनाम के इंतज़ार में हैं. मुख्यमंत्री का पद अशोक गहलोत को मिल गया था, जिनके पास पार्टी विधायकों के बड़े समूह का समर्थन था और उसके बाद भी गहलोत हर बार सचिन पायलट के साथ हुई 'अनबन' में विजेता के तौर पर सामने आए.
सूबे के विधायकों के बीच अशोक गहलोत का कद ज़्यादा बड़ा है, यह पिछले साल कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में साफ हो गया था. ऐसी ख़बरें आईं कि अगर अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालेंगे, तो उनके बाद सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, और तभी 90 से ज़्यादा विधायकों ने पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ खुला विद्रोह शुरू कर दिया था.
सचिन पायलट उस वक्त कतई चुप रहे और हिमाचल प्रदेश पर फोकस किया, जहां का प्रभार उन्हें सौंपा गया था. बाद में जब आलोचकों ने हिमाचल में पार्टी की जीत का श्रेय भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अंदरूनी कलह को दिया, तो उनका कहना था, "कांग्रेस को कुछ श्रेय तो मिलना चाहिए..."
दूसरी ओर, गुजरात में पार्टी की हार को लेकर, जहां अशोक गहलोत प्रभारी थे, सचिन पायलट ने कहा कि दोनों सूबों में हालात अलग-अलग थे, और पार्टी को "नए सिरे से शुरू से ही योजना बनाने की ज़रूरत है..."