Russian Ukraine Attack : रूस ने पड़ोसी देश यूक्रेन (Ukraine) पर तीन ओर से हमला बोल दिया है, यूक्रेन के अलगाववादी क्षेत्रों डोंटेस्क और लुहांस्क के अलावा बेलारूस (Belarus), क्रीमिया प्रायद्वीप क्षेत्र से जैसी आशंका जताई जा रही थी. लेकिन सैन्य विशेषज्ञ (Defense Expert) इसे रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ( Russian President Vladimir Putin) की सोची समझी रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं. रक्षा मामलों के विशेषज्ञ और सोसायटी फॉर पॉलिसी स्टडीज के निदेशक कोमोडोर सी. उदय भास्कर (Commodore C. Uday Bhaskar) ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखी है. उन्होंने कहा कि रूस यूक्रेन में वही कर रहा है, जो उसने 2008 में जार्जिया में किया था और यह उसकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है.
Russia-Ukraine War: 'सीधे नरक में जाते हैं....'- जब UN की बैठक में आमने-सामने आए रूस और यूक्रेन
भास्कर ने कहा, मेरा मानना है कि रूस द्वारा यूक्रेन के दो अलगाववादी क्षेत्रों डोंटेस्क और लुहांस्क (डोनबास्क) को स्वायत्त क्षेत्र घोषित करना और फिर शांतिरक्षक बनकर उन पर हमला बोलना यूक्रेन की सुरक्षा और संप्रभुता पर हमला है. यह पूरे यूरोप की स्थिरता के लिए बड़ी चुनौती है और देखना होगा कि अमेरिका और यूरोपीय देश इसके मुकाबले के लिए किस हद तक जा सकते हैं. यूक्रेन ने नाटो (सैन्य गठबंधन) में शामिल न होने का रुख भी दिखाया था, क्योंकि उसकी घरेलू राजनीति और मौजूदा स्थिति इसके अनुकूल नहीं है, वो खुद को स्वतंत्र और स्वायत्त देश के तौर पर आगे बढ़ाना चाहता है, जो न ही रूस के प्रभाव में हो और न ही अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशों के. लगता है कि रूस इन दोनों अलगाववादी क्षेत्रों को एक बफर स्टेट के तौर पर स्थापित करना चाहता है.
कोमोडोर के मुताबिक, यूक्रेन पर परमाणु हमले की ताकत हासिल करने का आरोप लगाते हुए रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन की आक्रामक कार्रवाई निराधार है. नाटो की कथित विस्तारवादी रणनीति के खिलाफ पुतिन 2014 से ही लंबी रणनीति पर काम कर रहे थे, जब उन्होंने क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा जमाया था. उसके बाद जार्जिया के दक्षिण ओसेशिया समेत दो प्रांतों को भी उसने इसी तरह स्वायत्त कराया और रूस के हितों को साधने वाले समूहों का वहां नियंत्रण स्थापित हुआ. यूक्रेन ने कोल्ड वॉर के दौरान अपने परमाणु हथियारों को त्याग दिया था और वैश्विक शक्तियों ने उसकी सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता की गारंटी दी थी और संयुक्त राष्ट्र को अब अपने वादों पर खरा उतरना होगा.
रक्षा विशेषज्ञ ने कहा कि अब जब पुतिन ने यूक्रेन पर स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन की घोषणा कर दी है तो उनके इरादे साफ हो गए हैं कि वो रूस के पड़ोसी देशों में किसी भी पश्चिमी देश समर्थक सरकार को बर्दाश्त नहीं करेंगे. यूक्रेनी सेना को हथियार डालने का अल्टीमेटम भी इसी का संकेत है. रूस ने इसी तरह से 2008 में जार्जिया में किया था और उसके अलगाववादी क्षेत्र अबखाजिया और साउथ ओसेशिया को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दी थी और फिर उनकी मदद की आड़ में जार्जिया पर सैन्य कार्रवाई की थी. बेलारूस समेत कई पूर्व सोवियत संघ के देशों में पहले ही रूस का पूरा नियंत्रण स्थापित है. लातविया, लिथुआनिया, एस्टोनिया जैसे रूस के अन्य पड़ोसी देशों में भी इस कार्रवाई से कान खड़े हो गए हैं.
यही नहीं, रूस राष्ट्रपति ने जो देश के नाम संबोधन दिया था औऱ जिस तरह से देश के इतिहास औऱ गौरव का उल्लेख किया था. रूस औऱ यूक्रेन के अटूट रिश्तों का जिक्र किया था और इतिहास की गलतियों के साथ लेनिन को भी काफी हद तक रूस के विखंडन के लिए जिम्मेदार ठहराया था. लिहाजा मुझे लगता है कि यह सत्ता पर एकाधिकार रखने वाले एक नेता का साम्राज्यवादी इतिहास को वापस लौटाने का प्रयास है. लेकिन विशेषज्ञों का तर्क है कि यूक्रेन का इतिहास और गौरव रूस से भी पुराना है, उसके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता.
सी. उदय भास्कर का कहना है कि रूस औऱ चीन जिस तरह से अपनी सेना का इस्तेमाल एक हाइब्रिड मोड में कर रहे हैं, उसमें काफी हद तक समानता है और वो खतरे की घंटी है. हाइब्रिड मोड का मतलब किसी देश के खिलाफ एक पारंपरिक युद्ध लड़ना नहीं है, बल्कि परोक्ष तौर पर सेना का इस्तेमाल कर अपने लक्ष्यों को हासिल करना है. रूस ने यूक्रेन में रूसी बाहुल्य इलाकों में इसी तरह सैनिकों और हथियारों को छद्म रूप से भेजा और वहां से यूक्रेनी फौज का नियंत्रण खत्म कराया. फिर रणनीतिक तरीके से उन दोनों अलगाववादी क्षेत्रों डोंटेस्क और लुहांस को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दे दी. फिर इन दोनों देशों ने यूक्रेन सरकार के कथित उग्र कार्रवाई का हवाला देते हुए रूस से मदद मांगी और अब रूस ने हमला बोल दिया है. चीन दक्षिण चीन सागर और गलवान घाटी में भी ऐसी रणनीति अपना रहा है. गलवान को पहले स्थानीय सैन्य संघर्ष बताया गया, लेकिन बाद में चीन की असली रणनीति उजागर होने लगी. फिर ये देश को खुद को पीड़ित बताने की चाल चलने लगते हैं. प्रोपेंगैंडा फैलाते हैं. चीन और रूस की इसी तरह धमकी देते हुए आगे बढ़ने की चाल दिख रही है.
सैन्य विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अमेरिका और यूरोपीय देश अभी इतिहास के सबसे कमजोर स्थिति में हैं और यूक्रेन की सीधी सैन्य मदद में सक्षम नहीं हैं. इस सवाल पर भास्कर ने कहा कि देखिए अमेरिका द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल होने का पक्षधर नहीं था और चाहता था कि यूरोपीय शक्तियां आपस में ही इसका निपटारा कर लें, लेकिन पर्लहार्बर के बाद उसने जो निर्णय़ लिया, उससे पूरा परिदृश्य बदल गया. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि तीसरा विश्व युद्ध होने वाला है, लेकिन एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते अमेरिका का रुख स्पष्ट होने में समय लग सकता है. मगर यह जानना होगा कि अमेरिका और यूरोप की कुल अर्थव्यवस्था 30 ट्रिलियन डॉलर है और रूस उसके आगे कहीं नहीं ठहरता. ऐसे में अगर सैन्य टकराव लंबा चलता है तो रूस सिर्फ सैनिकों के बलबूते खड़ा नहीं रह सकता.
पश्चिमी समर्थक यूरोपीय देशों की सुरक्षा के लिए बना सैन्य गठबंधन नाटो और सोवियत समर्थक देशों में उसकी सैन्य मौजूदगी के वारसा पैक्ट के बीच टकराव के बाद 1975 में हेलसिंकी अकार्ड हुआ था, जिसमें यूरोपीय देशों की सुरक्षा और संप्रभुता की गारंटी की बात थी, लेकिन रूस की कार्रवाई से हेलसिंकी अकार्ड का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन हुआ है, जिसमें साफ तौर पर कहा गया था कि सीमाओं में बदलाव के लिए सैन्य शक्ति का इस्तेमाल नहीं होगा. यह बेहद गंभीर विषय है. अगर रूस को अभी नहीं रोका गया तो कल को वो पोलैंड से भी कहेगा कि आप भी नाटो से बाहर हो जाइए...