- RSS प्रमुख मोहन भागवत ने संघ के शताब्दी वर्ष और दशहरा के अवसर पर विशेष संबोधन दिया
- उन्होंने महात्मा गांधी की जयंती और दशहरे को संघ के शताब्दी वर्ष के साथ जोड़कर इस दिन को विशेष बताया
- भागवत ने स्वदेशी के प्रयोग को अधिकार बताते हुए इसके विस्तार की आवश्यकता पर बल दिया
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरा के खास मौके पर अपना संबोधन दिया. इस मौके पर उन्होंने कहा कि आज का दिन बेहद खास है. आज जहां राष्ट्रपति महात्मा गांधी की जयंती है वहीं आज दशहरा भी है. साथ-साथ ही संघ अपना शताब्दी वर्ष भी मना रहा है. ये तीनों चीजें साथ मिलकर इस दिन को बेहद खास बनाती हैं. हमारे बीच कुछ ऐसी विभूतियां भी आईं जिन्होंने हिंद की चादर बनकर संप्रदायवाद के खिलाफ समाज की रक्षा की. आज महात्मा गांधी जी की जयंती है, देश के स्वतंत्रता की लड़ाई में उनकी लड़ाई अविस्मरणीय है. स्वतंत्रता के बाद का जीवन कैसे चले इसके लिए हमारे उस वक्त के दार्शनिक नेता का योगदान कमाल का है.
उन्होंने कहा कि आज हम दुनिया के देश भारत की तरफ देख रहे हैं. हम हर बीतते दिन के साथ और अधिक मजबूत होते जा रहे हैं. समय आ गया है जब हम स्वदेशी के इस्तेमाल को और बढ़ावा दें. मैं मानता हूं कि हमारे लिए स्वदेशी का उपयोग मजबूरी नहीं बल्कि हमारा अधिकार है.
मोहन भागवत ने इस खास मौके पर प्रयागराज में हुई कुंभ का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि इसी साल संगम के तट पर जबरदस्त कुंभ हुआ. पूरे देश में श्रद्धा की लहर उनसे देश में फैला दी. पहलगाम में सीमा पार के आतंकियों का हमला हुआ 26 भारतीयों का उनका धर्म पूछकर हत्या की, उसके कारण देश में दुख की लहर पैदा हुई, पूरी तैयारी करके सेना ने सरकार ने पुरजोर उत्तर दिया, सेना का शौर्य और समाज की एकता का एक उत्तम चित्र स्थापित हुआ.
वह घटना हमें सिखा गई कि हम सबके लिए मित्र भाव रखेंगे लेकिन फिर भी हमें अपनी सुरक्षा के लिए अधिक सामर्थ्य बनना होगा, इस घटना के बाद दुनिया के अनेक देशों में भूमिका ली उसमें यह भी ध्यान आया कि हमारे मिश्र कौन कौन हैं पता चला, नक्सली आंदोलन पर शासन और प्रशासन पर कार्रवाई हुई, उनके अनुभव से विचारधारा का खोखलापन होने कारण समाज भी उनसे महोभंग होकर विमुख हो गया.
टैरिफ पर बोले मोहन भागवत
अपने संबोधन में मोहन भागवत ने कहा कि अमेरिका ने जो नई टैरिफ अपनाई उसकी मार सभी पर पड़ रही है, वो अपन हित के लिए की. विश्व का जीवन परस्पर निर्भरता से चलता है, राष्ट्रों में सब प्रकार के संबंध होते हैं, अकेला राष्ट्र अलगाव में जी नहीं सकता है, ये निर्भरता मजबूरी में न बदल जाए, कब बदलेगी कैसे बदलेगी कोई पता नहीं. विश्व जीवन की एकता को मानते हुए हमको इसको मजबूती न बनाते हुए जीना है तो स्वदेशी और स्वावलंबन का कोई पर्याय नहीं. हमें आत्वलंबन होना होगा, स्वदेशी जीवन जीना होगा, राजनीतिक, आर्थिक और कारोबारी हो हमें अपना जतन करना होगा, लेकिन उसमें हमारी मजबूरी नहीं होगी.
हिमालय हमारे लिए सुरक्षा की दीवार
वर्षा अनियमित हो रही है, हिम नदियां सूख रही है, प्रकृति अलग व्यवहार कर रही है, हिमालय में ये सब हो रहा है, हिमालय हमारे लिए सुरक्षा की दीवार है. दक्षिण पूर्व एशिया का पूरा जलस्त्रोत हिमालय से ही आता है, हिमालय की आज अवस्था एक खतरे की घंटी बजा रही है, प्राकृतिक उथल पुथल है तो जनजीवन में भी है, श्रीलंका, बाग्लादेश, बाद में नेपाल में भी हमने इसका अनुभव किया. कभी-कभी प्रशासन जनता के पास नहीं रहता, उनकी जनता को ध्यान में रखकर नीतियां नहीं बनती तो असंतोष रहता है. हिंसक मार्गों से परिवर्तन नहीं आता है, एक उथल-पुथल हो जाती है लेकिन स्थायी परिवर्तन नहीं आता है, तथाकथित क्रांतियां आई, किसी भी क्रांति ने अपना मकसद को प्राप्त नहीं हुआ, फ्रांस में नेपोलियन बादशाह बन गई, साम्यवादी क्रांतियां हुईं सब साम्यवादी देश आज पूंजीवादी पर चल रहे हैं, प्रजातंत्र से ही उद्देश्य प्राप्त होता है.