- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने समाज में जाति-वर्ग के आधार पर भेदभाव खत्म करने का आह्वान किया
- भागवत ने कहा कि मंदिर, श्मशान और पानी जैसे सार्वजनिक स्थान सभी के लिए समान रूप से खुले होने चाहिए
- उन्होंने पंच परिवर्तन का विचार पेश किया जिसमें परिवार, पर्यावरण, सामाजिक समरसता, स्वदेशी व कर्तव्य शामिल हैं
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने समाज में समानता लाने और सामाजिक सद्भाव बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण आह्वान किया. उन्होंने कहा कि देश में जाति या वर्ग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. इस दिशा में मंदिर, श्मशान और पानी जैसे सार्वजनिक स्थानों पर सभी के लिए समानता होनी चाहिए.
आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने पर आयोजित '100 वर्ष की संघ यात्रा: नए क्षितिज' कार्यक्रम में बोलते हुए भागवत ने समाज में व्याप्त असमानता को दूर करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा, “मंदिर, पानी और श्मशान में कोई भेद नहीं होना चाहिए, ये सबके लिए है.” उन्होंने कहा कि मंदिर सभी भक्तों के लिए हैं. भक्त किस जात का है, ये नहीं पूछा जाता है. पानी भी सब मनुष्यों के लिए है. उसमें भेद नहीं होता. मरने के बाद भी श्मशान में भेद क्यों होना चाहिए?
'पंच परिवर्तन': समाज में बदलाव की नींव
भागवत ने अपने संबोधन में समाज को बदलने के लिए पांच कामों पर जोर दिया. उन्होंने इसे 'पंच परिवर्तन' नाम दिया और कहा कि ये काम हर व्यक्ति अपने घर से शुरू कर सकता है:
कुटुंब जागरुकता : भागवत ने परिवार के सदस्यों को एक साथ बैठकर बातचीत करने, अपनी परंपराओं पर चर्चा करने और बच्चों को अपनी संस्कृति से परिचित कराने व जोड़ने की सलाह दी.
पर्यावरण संरक्षण: संघ प्रमुख भागवत ने लोगों से पानी बचाने, सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने और अधिक से अधिक पेड़ लगाने का आह्वान किया.
सामाजिक समरसता: उन्होंने सभी लोगों से कहा कि वे अपने आसपास रहने वाले हर जाति और वर्ग के लोगों से दोस्ती करें और उनके परिवारों के साथ मेलजोल बढ़ाएं.
स्वदेशी का पालन: उन्होंने नागरिकों से अपने देश में बने उत्पादों को खरीदने और विदेशी वस्तुओं से परहेज करने को कहा ताकि स्थानीय रोजगार को बढ़ावा मिल सके.
नागरिक कर्तव्य: भागवत ने कहा कि हर व्यक्ति को समाज और राष्ट्र के लिए कुछ न कुछ समय देना चाहिए, चाहे वह छोटा ही क्यों न हो.
भागवत ने कहा कि इन पांच कार्यों के जरिए समाज में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है. उन्होंने जोर देकर कहा कि यह बदलाव केवल भाषणों से नहीं बल्कि लोगों के आचरण में आना चाहिए.