खोरी गांव से बेघर किए जा रहे लोगों के पुनर्वास के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख, शुक्रवार को सुनवाई

अरावली वन क्षेत्र में बने मकानों को शीर्ष अदालत द्वारा गिराने का निर्देश दिया गया था और तोड़फोड़ जारी है. 2003 से पहले जमीन पर कब्जा करने वालों के पुनर्वास के लिए प्रवासी संगठन वेलफेयर सोसाइटी ने शीर्ष अदालत का रुख किया है.

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खोरी गांव के लोगों के पुनर्वास के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

फरीदाबाद के खोरी गांव में तोड़फोड़ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्वास की याचिका भी अन्य याचिकाओं के साथ टैग की. याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई होगी. दरअसल खोरी गांव के लोगों के पुनर्वास के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. 

अरावली वन क्षेत्र में बने मकानों को शीर्ष अदालत द्वारा गिराने का निर्देश दिया गया था और तोड़फोड़ जारी है. 2003 से पहले जमीन पर कब्जा करने वालों के पुनर्वास के लिए प्रवासी संगठन वेलफेयर सोसाइटी ने शीर्ष अदालत का रुख किया है. याचिका में कहा गया है कि आवास का अधिकार मौलिक अधिकार है और यहां तक ​​कि प्रधानमंत्री आवास योजना भी पुनर्वास के लिए कोई कट-ऑफ तारीख नहीं देती है और अगर हरियाणा निवासियों का पुनर्वास नहीं करता है, तो हजारों निवासी बेघर हो जाएंगे. इस बाबत सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है. 

हालांकि, शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार फरीदाबाद नगर निगम ने पहले ही तोड़फोड़ का काम शुरू कर दिया है. कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति को उस स्थान से बेदखल कर दिया जाता है और उसका घर गिरा दिया जाता है, जहां वह अनधिकृत रूप से रह रहा है तो वह निश्चित रूप से अपनी आजीविका भी खो देगा. काम करने के लिए उसे कहीं तो रहना होगा. याचिकाकर्ताओं ने सरकारी स्कूल और सरकारी पार्क की इमारत का भी हवाला दिया जो उनकी स्थापना को मान्यता देता है. 

अदालत ने मामले में यह कहते हुए विध्वंस का आदेश दिया था कि वन भूमि के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता है और भूमि छोड़ने के बाद ही किसी नई बस्ती पर विचार किया जाएगा. अदालत ने फटकार लगाई थी निवासियों ने एक साल के आदेश के बाद भी स्थान नहीं छोड़ा जबकि कहा गया था कि अगर वे अपने दस्तावेज दे देते तो अब तक उनका पुनर्वास हो जाता.

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