सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अहम फैसला देते हुए कहा है कि शिक्षक द्वारा अनुशासनहीनता पर छात्र को फटकार लगाना खुदकुशी के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता. SC ने कहा कि छात्रों में अनुशासन पैदा करना शिक्षक का गंभीर कर्तव्य है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पीटी टीचर के खिलाफ 9वीं कक्षा के छात्र को आत्महत्या के लिए उकसाने को लेकर दर्ज FIR रद्द की. जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने यह फैसला दिया. दरअसल राजस्थान में 9वीं कक्षा के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली थी और स्कूल के पीटी शिक्षक को दोषी ठहराते हुए एक चिट्ठी छोड़ी थी. इसमें कहा गया : "थैंक्स जियो (पीटीआई) ऑफ माई स्कूल" (पीटी शिक्षक जियो वर्गीज के बारे में). इस पर मां ने FIR दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि शिक्षक द्वारा मानसिक प्रताड़ना के कारण उनके बेटे ने आत्महत्या की है.
राजस्थान हाईकोर्ट ने प्राथमिकी को रद्द करने की मांग करने वाली शिक्षक द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया था, इस पर शिक्षक ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट ने टीचर को राहत देते हुए कहा,' यह असामान्य नहीं है कि शिक्षक एक छात्र को ध्यान न देने या पढ़ाई में अंक के अनुरूप नहीं होने या कक्षाओं में बंक करने या स्कूल में नहीं आने के लिए फटकार लगाते हैं. एक छात्र द्वारा उसके व्यवहार या अनुशासनहीनता के लिए फटकार जो एक छात्र में एक इंसान के अच्छे गुणों को विकसित करने के लिए नैतिक दायित्वों के अधीन है, निश्चित रूप से इसे खुदकुशी के लिए उकसाने या जानबूझकर इसमें मदद करने के समान नहीं होगा. शिक्षक ने बताया है कि बार-बार क्लास बंक करते पकड़े जाने पर उसने लड़के को फटकार लगाई थी.इसके बाद शिक्षक ने स्कूल के प्रिंसिपल को इसकी सूचना दी, जिन्होंने लड़के के माता-पिता को स्कूल बुलाया.किसी स्कूल के शिक्षक या अन्य अधिकारियों द्वारा अपनाए गए अनुशासनात्मक उपाय, छात्र को उसकी अनुशासनहीनता के लिए फटकारना हमारी राय में, एक छात्र को आत्महत्या करने के लिए उकसाना नहीं होगा. जब तक कि जानबूझकर बिना किसी उचित कारण के उत्पीड़न और अपमान के बार-बार विशिष्ट आरोप न हों, आत्महत्या के अपराध के लिए या तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने का आरोप होना चाहिए. शिक्षक द्वारा पीड़ित को परेशान करने और अपमान करने का कोई कारण या तो FIR में या पुलिस द्वारा दर्ज शिकायतकर्ता के बयान में नहीं दिया गया है. शिक्षक की ओर से किसी भी कार्रवाई के संबंध में कोई विवरण नहीं है जिसके द्वारा मृत लड़का परेशान और अपमानित महसूस कर सकता है.'
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए FIR रद्द कर दी. अदालत ने कहा कि हम शिकायतकर्ता के दर्द और पीड़ा से अवगत हैं जो मृतक लड़के की मां है. यह भी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस तरह से एक युवा जीवन खो गया है, लेकिन हमारी सहानुभूति और शिकायतकर्ता की पीड़ा और दुख , एक कानूनी उपाय में तब्दील नहीं हो सकता. एक आपराधिक मुकदमा तो बिल्कुल नहीं हो सकता