मोरबी पुल से जुड़ी कंपनी के मालिक के सपनों का भारत 

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लाभार्थियों को सौंप दिए गए . पचहत्तर मकान लापता हो गए. इस धनतेरस के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान दिए.

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नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार...

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लाभार्थियों को सौंप दिए गए । पचहत्तर मकान लापता हो गए । इस धनतेरस के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान दिए । मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री तो साक्षात् मौजूद थे । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विडियो कांफ्रेंसिंग से शामिल हुए । उस दिन जितने मकान दिए गए उनमें से पचहत्तर मकान गायब हो गए । जिस आवास को प्रधानमंत्री सौंप रहे हो और वो मकान गायब हो जाए इससे बडा घोटाला कुछ और नहीं हो सकता है । हमारे सहयोगी अनुराग द्वारी पचहत्तर लापता मकानों की तलाश में लगे हैं । इस वक्त उन्हें एक अच्छी सेटल लाइट की जरुरत है । अगर इलोन मस्क दो तीन दिनों के लिए स् टरलाइट उधार दे देते हैं तो अनुराग लापता हो चुके पचहत्तर मकानों को खोज निकालेंगे और गरीब परिवारों के हवाले कर सकते हैं । इलोन मस्क की कंपनी रॉकिट भी छोडती है और उपग्रह भी । इसके अलावा उनकी कंपनी बिजली से चलने वाली कार्य बनाती है और इन दिनों ट्विटर भी चलाने लगी है । वैसे जब तक इलोन मस्क अपनी स्वाॅट अनुराग द्वारी को नहीं दे देते तब तक प्रधानमंत्री मोदी भी ड्रोन भेजकर इन लापता मकानों को खोज निकाल सकते हैं । यानी आज सरकारी कामों की क्वालिटी को भी देखना है तो मुझे जरूरी नहीं है ।

पहले से बता दूँ कि मुझे वहाँ इंस्पेक्शन के लिए जाना है तो फिर तो सब कुछ ठीक हो ही जाएगा । मैं ड्रोन भेज दूँ । पता वही लेकर के आ जाता है और उनको पता नहीं चलता है कि मैंने जानकारी ले ली है । प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पचहत्तर आवास लापता हो गए । बेहतर है कि प्रधानमंत्री ही द्रोन से पता लगा ले कि ये मकान कहाँ पर छुपा कर रखे गए । हम इस खबर पर लौट कर आएँगे कि विश्वगुरु बन चुके भारत में पचहत्तर मकान कैसे लापता हो जाते हैं । ऐसी खबरों से सांसे तेज चलने लगती है लेकिन हवा भी तो सांस लेने लायक नहीं है । इतना जहर भर गया है की गोदी मीडिया के किसी  कर को आगे आना चाहिए और कहना चाहिए की हवा में जहर के लिए हवा जिम्मेदार है । 

हिंदू मुस्लिम डीबेट का जहर पीकर जनता जब गोदी मीडिया देख सकती है तो दिल्ली की जहरीली हवा में सांस क्यों नहीं ले सकती? कई साल तक गोदी मीडिया आपको हर बात के लिए विपक्ष को जिम्मेदार बताता रहा । अब वो जनता को ही जिम्मेदार बताने लगा है क्योंकि जानता है कि सवाल पूछते ही जानता भी विपक्ष बन जाती है । आज खबर है कि पुलिस वो रेवा कंपनी के दफ्तर गई थी । दफ्तर पर ताला लटका था । ये वो कंपनी है जिससे मोरबी के पुल की मरम्मत का काम दिया गया था । ऍम एक सौ पैंतीस लोगों की जान लेने वाले मोरबी पुल हादसे के बाद मच्छू नदी में शवों की तलाश का काम गुरुवार को भी जारी रहा । हालांकि प्रशासन ने कहा कि उन्हें अब किसी के लापता होने की कोई जानकारी नहीं है । लेकिन हमारे लाइव प्रसारण के दौरान घटनास्थल पर मौजूद एक परेशान बुजुर्ग ने कहा कि उनकी बहन का बेटा भी लापता है । कौन है आपका नहीं मिला है । कोई इस घटना में कहाँ से आए? आप कहाँ से आये है, मुझे बताइए ।

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आप ने पुलिस को बताया आपका कौन था? माँ बहन का छोटा बच्चा था, अभी तक नहीं मिला था आपके घर से क्या कोई भी, कोई भी किसी की मृत्यु हुई है । आपको पक्का पता है वो बच्चा यही था पता नहीं अकेला अकेला नहीं साथ में था । इसके साथ में आपकी मृत्यु हो गई तो बच्चा छोटा बच्चा नहीं बताइये लिख के दिया इसके बाद मौके पर मौजूद रिलीफ कमिश्नर ने जाँच के लिए तुरंत उसका ब्यौरा लिया । इस बीच हादसे में लापता लोगों के लिए प्रशासन का कंट्रोल रूम अब भी चालू है ।

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मामले में अब तक जो नौ लोग गिरफ्तार हुए हैं उनमें पुल मरम्मत का ठेका लेने वाले रेलवे ग्रुप के दो मैनेजर और दो सब कंट्रेक्टर शामिल है । बाकी गिरफ्तार पाँच लोगों में सिक्युरिटी गाँव और टिकिट विक्रेता शामिल है । लेकिन अभी तक वो रेलवे के बडे अधिकारियों और मालिक से पूछताछ की कोई जानकारी नहीं है । पता चला की जांच के लिए पुलिस रेवा के दफ्तर भी गई लेकिन वहाँ ताला लगा मिला । अभी तक की जांच में पता चला है कि हादसे की एक वजह ऍम फुल्के पुराने जंग लगे के बाल थे जिन्हें मरम्मत के दौरान बदला नहीं गया । सर प्रोसक्यूशन ने भी कोर्ट ने बोला और हम लोग लगातार रिपोर्ट कर रहे हैं कि जो केबल है उनको ऍसे सवाल किया तो बिना जवाब दिए निकल ऍम हाँ सस्पेंशन ब्रिज हादसे में एक सौ पैंतीस लोगों की मौत के बाद से मोरबी में मातम साहिल गुरुवार को मृतकों के प्रति शोक जताने के लिए मोरबी के राजपरिवार श्रद्धांजलि सभा आयोजित दुर्घटना में एक सौ पैंतीस लोगों की जान चली गई जिसमें से ज्यादातर छोटे बच्चे थे । कई परिवार नष्ट हो गए बट चार दिन बाद भी पुलिस ने कार्रवाई के नाम पे सिर्फ कुछ गरीब सिक्युरिटी गार्ड, क्लर्क और टिकिट कलेक्टर को हिरासत में लिया है । जो असल में इस दुर्घटना के पीछे जिम्मेदार नगरपालिका की चीज और रेवा कंपनी ओनर मालिक उनके खिलाफ पुलिस ने अब तक कोई कार्यवाही नहीं है ।

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क्या इन मछलियों को उनके राजनीतिक संबंधों की वजह से बचाया जा रहा है या चुनाव के चलते उनको बचाया जा रहा है? ये बडे सवाल हैं जिनका जवाब सरकार को पॉश इनको देना इस वक्त जरूरी है क्योंकि याद रखिए एक सौ पैंतीस जाने गई है और उसकी जवाब दायी तय करना बहुत जरूरी है ।  मैं तनुश्री पांडे मोरबी गुजरात में कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल ने एक किताब लिखी है । इस किताब को पढने से ही पता चलता है की घडी बनाने वाली कंपनी के मालिक भारत के लोकतंत्र और उसकी चुनौतियों के बारे में क्या राय रखते हैं । इस किताब के कवर पर रेवा घडी कंपनी के मालिक जयसुख पटेल है । गुजराती भाषा में लिखी गई इस किताब के एक सौ उन्यासी पाँच पर जयसुख पटेल देश की समस्या और उसका समाधान पेश करते हैं । जैसे पटेल ने लिखा है कि मुझे लग रहा है कि करप शिन के चक्कर से भारत को डिक्टेटर ही मुक्त करा सकता है और देश में ऐसे लोगों की जरूरत क्या हमारा सिस्टम डेमोक्रसी के लायक है । किताब का नाम समस्या और समाधान है इस किताब में लिखी गई बातों का मिलन पुल को लेकर कोर्ट में गुजरात पुलिस ने जो कहा है उससे करना चाहिए । एक साथ पढा जाना चाहिए । तब अंदाजा होगा की कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल ने पुल की मरम्मत का काम कैसे हासिल कर लिया होगा । 

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सुरक्षा के नियमों के प्रति उनका क्या दृष्टिकोण रहा होगा जिसके बारे में गुजरात पुलिस कोर्ट में कहती है कि यह कंपनी इसके योग्य ही नहीं थी । इसके पास काबिल इंजिनियर तक नहीं थी । इस पुल के केबल को बदला तक नहीं गया । अगर बदला गया होता तो लोगों की जान नहीं जाती क्योंकि जयसुख पटेल अपनी किताब में लिखते हैं कि उन के अनुसार देश में कायदा कानून के राज की जगह डिक्टेटर का राज होना चाहिए । गुजराती में छपनेवाले अखबार दिव्य भास्कर ने जयसुख पटेल की किताब के कुछ अंशों को छाप दिया है । आज गुजरात में दो चरणों के चुनाव का ऐलान हुआ । लेकिन जयसुख पटेल ने चुनाव पर पूरा चैप्टर ही लिख डाला है और बताया है कि चुनाव समय और पैसे की बर्बादी है । इसे बंद कर देना चाहिए । अब ऐसी सोच वाले व्यक्ति की कंपनी का काम कैसा होगा आप सोच सकते हैं । वैसे तो जयसुख पटेल की ये किताब इनकी कंपनी की वेब साइट पर है मगर इसे पढकर हैडलाइन के जरिए जनता को बताने का काम दिव्य भास्कर ने क्या इसकी हेडलाइन है की वो रेवा कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल ने अपनी किताब में क्या है कि वे कायदा कानून नहीं मानते हैं । चुनाव बंद करके भारत में चीन की तरह एक ही आदमी को पंद्रह से बीस वर्षों तक के लिए देश का नेता बना देना चाहिए । 

इंडियन एक्स्प्रेस में रिपोर्ट छपी है कि अरे वा कंपनी ने नगरपालिका को बताया ही नहीं कि पुल चालू होने जा रहा है । पुल को सेफ्टी सर्टिफिकेट तक नहीं मिला के बाल तक नहीं बदले गए और केवल जंग खाये हुए थे । यहाँ पर कोई लाइफ गार्ड नहीं था ना ही डूबने पर बचाने के उपकरण रखे गए थे । लगता है जैसे केवल लिखते ही नहीं कि वे कायदा कानून में यकीन नहीं करते बल्कि उसपर अमल भी करते हैं । इस पुल के टूटने में कंपनी की भूमिका तो जाँच और अदालत से तय होगी मगर इसके मालिक की सोच इस कंपनी के काम और राजनीतिक संपर्कों का पता तो दे ही देती है । किस तरह की सोच के व्यक्ति को इस तरह के नाजुक पुल का काम दिया गया, जिसकी लापरवाही के कारण एक सौ चालीस घरों में मातम छाया हुआ है । गुजरात पुलिस ने कोर्ट में बताया कि जिस कंपनी को मरम्मत का ठेका दिया गया वो इसके लायक नहीं थी । इसके पास क्वालिफाइड इंजिनियर नहीं थे । हमारा सवाल है कि जिला प्रशासन को कैसे नहीं पता चला की ये कुल चालू हो गया है । छब्बीस अक्टूबर से लेकर तीस अक्टूबर की शाम तक वहां भारी संख्या में लोग आते जाते रहे ।

क्या तब भी पता नहीं चला होगा कि किससे पूछकर चालू हुआ है । इंडियन एक्सप्रेस ने जब नगरपालिका अधिकारी से पूछा कि क्या नगरपालिका ने कंपनी को कोई नोटिस दिया तो जवाब मिला कि समय नहीं मिला । एक्स्प्रेस ने एक आप के हवाले से लिखा है कि जब ये पुल बना तब इस पर केवल पंद्रह लोगों के आने जाने की अनुमति थी । तब फिर यह कैसे संभव हुआ कि पुल पर इतने लोग पहुँच गए या लापरवाही एक कंपनी की ही नहीं है, पूरे प्रशासन और सरकार की भी है । सवाल है कि क्या मोरबी के पुल की घटना का अंजाम भी लखीमपुरखीरी की तरह होगा? कैमरे पर एक जी पाती दिखती है और चार किसानों को कुचलकर चली जाती है । 

यूपी में उसके बाद चुनाव होते हैं और लखीमपुरखीरी की सारी सीटें बीजेपी जीत जाती है । कहीं ऐसा तो नहीं कि चुनाव के बाद इस घटना को भुला दिया जाएगा कि मोरबी की सारी सीटें बीजेपी को मिल गई है और इसकी सफलता की आड में बडे गुनाहगार बचा लिए जाएंगे । गुजरात में एक और पाँच दिसंबर को मतदान होने हैं । वहाँ जोर अब चुनाव पर होगा या जाँच पर । जयसुख पटेल के राजनीतिक संबंधों पर कोई ठोस रिपोर्ट मीडिया में नहीं आई है । जयसुख पटेल की किताब समस्या और समाधान पढने से बहुत कुछ समझ आ जाता है । जो व्यक्ति भारत के लिए तानाशाही का सपना देखता हो वो पत्रकारों और जनता के प्रश्नों के जवाब क्यों देगा? या जैसे पटेल की किताब के पन्नों की तस्वीरें हैं । मोरबी पुल की मरम्मत करने वाली कंपनी के प्रबंध निदेशक पटेल ने इस किताब के पेज नंबर चौवन से लेकर छप्पन पर इस तरह लिखा है कि मुझे लगता है कि हम सब लोग डिक्टेटर शिप के ही लायक है । गुलामी हमारे में है । चीन में लोकतंत्र नहीं है ।

वहाँ इलेक्शन नहीं है तो अनावश्यक खर्चा नहीं होता । ह्यूमन रिसोर्स की बर्बादी नहीं होती । लोग अनुशासन को मानते हैं । हमारे देश में चीन के जैसा चुनाव बंद करके एक ही व्यक्ति को पंद्रह बीस साल तक शासन करने का अधिकार दे देना चाहिए ताकि विकास हो सके । जैसे पटेल भारत को चीन जैसा बना देना चाहते हैं जबकि हम लोग चीन की फुलझडियों के विरोध में ही दिवाली गुजार देते हैं । लोकतंत्र के प्रति इतनी नफरत लेकर यह व्यक्ति घडी बनाने की इतनी बडी कंपनी कैसे चला रहा था? अपनी किताब में जैसे पटेल ने लिखा है कि लोकतंत्र हमारे देश के लिए कॅन्सर्ट है जिसका कोई इलाज नहीं । जयसुख पटेल की यह किताब पढी जानी चाहिए ताकि हम जान सकें कि पैसे वाले लोग लोकतंत्र को लेकर क्या सोच रहे हैं । उन्हें तानाशाही क्यों पसंद है । जो व्यक्ति खुद किसी कानून को नहीं मानता वो देश के लिए चाहता है कि देश में एक डिक्टेटर आए जो डंडे के जोर पर सबको अनुशासन सिखाए चुनाव ना हो और पंद्रह बीस साल तक एक ही आदमी के पास सत्ता रहे ताकि ये बिना योग्यता के पुल की मरम्मत का काम लेते रहे । 

भले ही उस पुल के टूट जाने से लोग मारते रहे जैसे पटेल पेज नंबर छिहत्तर पर लिखते हैं कि करना पर मुझे कहना पड रहा है कि हमारे देश में क्रिकेट के बाद सबसे ज्यादा टाइम बर्बाद करते तो वो है धार्मिक नेताओं महात्माओं, आचार्यों जैसे कि मुरारी बापू, स्वामी नित्यानंद, आशाराम बापू, राम रहीम, श्रीश्री रविशंकर, बाबा रामदेव, रमेश भाई ओझा । इनके प्रवचन और सभा कितने दिनों तक चलती रहती है और लोगों का टाइम खराब होता रहता है । इस किताब के प्रकाशन की तारीख अठारह मई दो हजार उन्नीस से यानी मोदी सरकार के पाँच साल बीत जाने के बाद जयसुख पटेल या सब लिख रहे हैं । इन बातों को आप उस दौरान के हॉट और फेक नौं कर देख सकते हैं जब भारत की समस्याओं को दूर करने के नाम पर चीन की तरह डिक्टेटर का सपना देशभर में गोदी मीडिया और ऍम यूनिवर्सिटी के जरिये बता जाता था । विपक्ष को समस्या की जड बताया जा रहा था । जिस व्यक्ति को चुनाव समय की बर्बादी लगता है वो व्यक्ति एक सौ चालीस लोगों के मर जाने से कितना ही दुख होगा या उसके अभिनय क्षमता पर ही निर्भर करता है कि दुखी होने की नौटंकी किस हद तक कर सकता है । जयसुख पटेल ने कश्मीर की समस्या के समाधान को लेकर एक पूरा चैप्टर लिख डाला । सुझाव दिया है कि भारत सरकार को पैंतीस से धारा तीन सौ सत्तर समाप्त कर देना चाहिए । कश्मीर में एक साल के लिए मीडिया पर सेंसरशिप होना चाहिए । करीब करीब ऐसा ही हुआ । लेकिन जयसुख पटेल यहाँ तक लिख देते हैं कि कश्मीर को दवाओं और भोजन की सप्लाई बंद कर देनी चाहिए । ये सारी बातें उस वक्त के हाॅफ यूनिवर्सिटी के फॅसे हैं । कश्मीर समस्या के समाधान के लिए पंद्रह सुझाव देते हुए जयसुख पटेल लिखते हैं कि अगर हम इसमें से कुछ नहीं कर सकते तो हमें कश्मीर को छोड देना चाहिए । कश्मीर की प्रजा पाकिस्तान के साथ जाना चाहती हो या आजाद रहना चाहती हो वो उनके ऊपर छोड देना चाहिए । इससे सालाना मिलिट्री पर होने वाले करोडों रुपए बच जाएंगे । इससे शहीद होने वाले जवान भी बच जाएंगे । करोडों रुपए देश के विकास के काम आएंगे । 

इस तरह की बातें कोई लिख दे तो उसके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा हो जाए । यही बात अगर उमर खाली किसी और संदर्भ में व्यापक संदर्भ में लिख दें तो सुनवाई से पहले उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी जाएगी । गोदी मीडिया घंटो डीबेट करेगा । किस व्यक्ति को फांसी दे देनी चाहिए । लेकिन इन बातों से पता चलता है कि यह व्यक्ति जैसे पटेल अपने ही देश के नागरिकों के प्रति कितनी क्रूर सोच रखता है । उनके लिए दवा और भोजन तक बंद कर देने का सपना देखता है । कश्मीर तो भारत का ही हिस्सा है लेकिन यह व्यक्ति कश्मीर के लिए दवाओं को बंद कर देना चाहता है और भारत के लिए डिक्टेटर चाहता है और आपको घडी बेच रहा है या कोई साधारण कंपनी नहीं । वो रेवा दावा करती है कि वह घडी बनाने वाली दुनिया की सबसे बडी कंपनी है । इस कंपनी के प्रबंध निदेशक को चुनाव से चिढ है, लोकतंत्र से चिढ है या व्यक्ति घडी बेचकर भारत की जनता के लिए कैसे वक्त की कल्पना बढ रहा है उससे सावधान रहने की जरुरत है या कंपनी केवल घडी नहीं बनाती है, पंखे बनाती है, हीटर बनाती है, इलेक्ट्रिक बाइक बनाती है, लाइट स्विच वगैरह वगैरह तमाम चीजे बनाती है । जाहिर है बडी कंपनी है लोकतंत्र के कारण ही जयसुख पटेल कंपनी बना पाए । लेकिन पैसा आ जाने के बाद इसी लोकतंत्र को कर देने के उपाय अपनी किताब में बता रहे हैं । क्या पता तानाशाही आती तो इनकी कंपनी पर किसी और का अधिकार हो गया होता और ये डिक्टेटर के कहने पर उसी कंपनी में मालिक से मुलाजिम हो गए होते । वैसे इतिहास भी यही बताता है कि तानाशाही लाने में कॉरपरेट का सबसे बडा सहयोग होता है । पेज नंबर इकतीस पर जयसुख पटेल लिखते हैं कि जब मैंने भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर अपने विचार प्रधानमंत्री मोदी को बताए तो प्रधानमंत्री ने पूछा कि भूमि अधिग्रहण कानून सरल क्यों नहीं हो सकता? 

प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि नितिन गडकरी जयसुख पटेल से बात करें और भूमि अधिग्रहण कानून पर चर्चा करें । ये सब लिखा है जयसुख पटेल ने । जयसुख पटेल ने यह नहीं लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी से कब और कैसे मुलाकात हुई । मगर जिस तरह से लिखा है उससे यही लगता है कि जैसे पटेल और प्रधानमंत्री मोदी के बीच संवाद हुआ होगा । ये आदमी भूमि अधिग्रहण कानून पर भारत के प्रधानमंत्री को राय दे रहा है । मोरबी का झूलता पुल ढह गया । मरने वालों की संख्या एक सौ तीस से एक सौ चालीस तक बताई जा रही है । कंपनी के मैनेजर ने कोर्ट में कहा कि भगवान की मर्जी से टूट गया मगर ये पुल भगवान की मर्जी से नहीं टूटा है बल्कि सोच से टुटा की कायदा कानून मानने की जरूरत नहीं । चुनाव की जरूरत नहीं तानाशाही की जरूरत है । शुरुआती मीडिया रिपोर्ट और कोर्ट में पुलिस के बयान बता रहे हैं कि भयंकर किस्म की लापरवाही के कारण इतने लोग बेवजह मार दिए गए । ये लापरवाही भगवान ने नहीं कि कि अफसरों और राजनेताओं की भूमिका कभी सामने आ पाएगी । जैसा पटेल बिहार और बंगाल के उद्योगपति होते तो अभी तक जांच एजेंसियां उनके संबंध वहाँ के नेताओं से साबित कर चुकी होती है और गोदी मीडिया की पहली हेडलाइन कई हफ्तों तक होती की ममता या तेजस्वी से जयसुख के करीबी रिश्ते कर सवाल कर रहा होता की क्या इस्तीफा देंगे नीतीश या तेजस्वी या ममता? पुल के टूटने से लोगों की मौत भयावक घटना तो है ही, जयसुख पटेल के विचार भी कम खतरनाक नहीं । हम ऐसी सोच से भरे लोगों से गिर गए हैं जिनकी आस्था ना तो लोकतंत्र में है ना यहां रहने वाले लोगों में ये तानाशाही की पूजा करने लगे हैं । इन्हें पता नहीं किसी देश में किस इतने करोड गरीब लोगों ने रात रात जाकर चुनावी रैलियों का इंतजार किया । अपने नेताओं के भाषण का इंतजार किया । कई दिनों तक पैदल चलकर रैलियों में गए, गांव से निकलकर दिल्ली तक आए और सत्ता बदल दी । 

ये चुनाव ना हुए होते तो गरीब लोग अपने लिए इतना भी हासिल नहीं कर पाते । आप भी अपने लिए कुछ हासिल नहीं कर पाते । अगर कंपनी चलाने वाला दौलत वाला चुनाव से चढता है तो इसका मतलब है कि वो गरीबों और गरीबों के सपनों से नफरत करता है । गुजरात में चुनावों का ऐलान हो गया है । चुनाव आयोग का कहना है की तारीखों के ऐलान में कोई देरी नहीं हुई । दो हजार सत्रह से पहले तक गुजरात और हिमाचल के चुनाव साथ साथ हुआ करते थे । दो हजार के अपवाद को छोडकर उन्नीस सौ अट्ठानबे से दो हजार बारह तक ये सिलसिला साथ साथ चला । लेकिन दो हजार सत्रह में हिमाचल प्रदेश के लिए अलग ऐलान हुआ और गुजरात के लिए अलग । इस बार भी ये सवाल उठा तो चुनाव आयोग ने कहा कि कोई देरी नहीं हुई है । दो राज्यों में चुनाव है हिमाचल में और गुजरात में आठ तारीख को परिणाम दोनों राज्यों के आने है । इलेक्शन कमिशन को इस की सफाई देश की जनता के सामने देनी चाहिए क्योंकि वो एक कंस्टिट्यूशनल ऑथॉरिटी है देश की कि जब दो राज्यों के चुनाव के परिणाम साथ में आ रहे हैं । एक चुनाव जो हिमाचल का उसकी तारीख की घोषणा चौदह को करते हैं और दूसरे चुनाव की घोषणा आज तीन नवंबर को आप कर रहे हैं । कोई जस्टिफिकेशन, कोई कारण, कोई दबाव ये खुलासा देश चाहता है । इलेक्शन कमिशन जोकि एक निष्पक्ष बौडी और कंस्टिट्यूशनल बौडी मानी जाती है, उससे हम उम्मीद करते हैं फॅमिली इतने चुनावों की घोषणा हमने देखी है । हिमाचल के चुनाव की घोषणा एक स्पेशल घोषणा थी । उसमें चौदह तारीख को नोटिफिकेशन जारी होता है और कोड ऑफ कंडक्ट इम्पोज हो रहा है । सत्रह को क्योंकि सोलह तारीख को प्रधानमंत्री जी की रैली थी और उस रैली को उनको सरकारी संसाधनों से करना था । फॅमिली अनाउंस मिंट में बहुत सारी चीजों को बेलेंस करना है, जिसमें जिसमें देर ट्रडिशन अकाउंटिंग फॅार फॅार देरी डिफरेंस बिटवीन दी डेट फॅमिली दी नंबर डेवलॅप बी इन्टरव्यू स्टाॅल यू इन केस दिस पर्टिकुलर केस अनाउंस्मेंट जो आज हम कर रहे हैं वो अभी भी फॅस स्टेट जो टर्म है फॅमिली का वो एटी फॅमिली में उससे एक सौ दस दिन पहले स्टील उं टाइम बट ॅ कंस्ट्रेंट बाइ लिमिटिड बाइक और ऍम दी अदर स्टेट ऍम काउंटिंग टी टू डेवलॅप बिटवीन अनाउंस मिंट । चुनाव आयोग ने कहा है कि वह सौ फीसदी निष्पक्ष संस्था है । मोर विपुल से जुडी कंपनी के प्रबंध निदेशक जयसुख पटेल तो चुनाव ही बंद करा देना चाहते हैं । जैसे पटेल अपनी किताब में ये सब लिखा है कि चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट, ईडी, सीबीआई, लोकतंत्र कि रीड है मगर राजनेता अपने हिसाब से इस्तेमाल करते हैं ।

 बहरहाल चुनावों को लेकर आम आदमी पार्टी कहती है कि कांग्रेस और बीजेपी एक है । कांग्रेस कहती है कि आम आदमी पार्टी और ऍम एक है । बीजेपी की फॅमिली पार्टी हैं । प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को आउटसोर्स कर दिया है । कहाँ किसका है आप समझते रही । सत्ताईस सालों से कांग्रेस और बीजेपी का फॅस होता था । कॉंग्रेस हारने के लिए लडती थी । बीजेपी को जिताने के लिए लडती थी । पहली बार बीजेपी का मुकाबला असली जो है चुनाव में हो रहा है । उनको पहली बार जो चुनाव की नर्वसनेस है वो महसूस हो रही है । इस बार गुजरात में जो जनता है वो बदलाव के लिए वोट डालेगी । इस बार जो चुनाव है दिल्ली की तरह मुफ्त और वर्ल्ड क्लॉस शिक्षा का चुनाव है । दिल्ली की तरह वर्ल्ड क्लॉस मोहल्ला क्लिनिक का चुनाव है और मोर बीज में जो इतना बडा भ्रष्टाचार सामने आया पंद्रह साल का काम ठेका बिना टेंडर के दे दिया गया । पुल की रिपेयर का काम एक घडी बनाने वाली कंपनी को दे दिया गया । बडा भ्रष्टाचार है । एक सौ पैंतीस लोग मारे गए । इसका गुस्सा जो है इस बार गुजरात चुनाव में दिखेगा यह आम आदमी पार्टी और ऍम ये बीजेपी की बी टीम है सिर्फ वोट काटते हैं । अभी तो पता ही नहीं है किसका वोट काटेंगे । लेकिन हमारे सामने उदाहरण हैं गोवा का । उत्तराखंड का जितना परसेंटेज वोट इन्होंने काटा वहाँ उतने ही परसेंट से कांग्रेस सरकार बनाने से वंचित रही है । ये हमारे पास प्रमाण है कि ये भी टीम है । अगर ये कांग्रिस बीजेपी और दूसरी पार्टियां तैयार हो जाए तो हमारा इरादा यह है कि अहमदाबाद के रिवर फ्रंट पर हम अपने पार्टी के पैसों से इन लोगों को बिठाकर जो भी खर्चा होगा करेंगे वो तय कर ले । हम क्या है । वो तैयार है कि मुझे रिवर फ्रंट पर बैठा देते हैं । उनको अब चाय तो नहीं बना पाएँगे और जो भी अहमदाबाद की चाय बिस्किट होगी, हम खिला देते हैं, उनको ढोकला भी रख देते हैं । वो तय कर ले बैठ के कि हम क्या है मगर नहीं हमको इनके सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है और जितना ज्यादा वो बोलेंगे हम को उससे हमको होने वाला बोलते रहिए । 

हमको कोई फर्क पडने वाला नहीं है । धनतेरस के दिन मध्यप्रदेश में एक बडा कार्यक्रम हुआ । इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों साढे चार लाख गरीबों को पीएम आवास दिया गया । अब पता चल रहा है कि कई मृतकों के नाम पर घर स्वीकृत हो गए तो कई गरीबों को मकान नहीं मिला लेकिन पैसे उनके खाते में आए और चले भी गए । ये भी पता लगा कि भ्रष्ट सिस्टम कैसे सरकारी योजनाओं के तहत बनने वाले कुएं को भी पी गया है । शौचालय चट कर गया हैं । घोटाले करने वालों की हिम्मत देखिये । जिस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मौजूद हो उसमें भी हाथ साफ करने से इन्हें डर नहीं लगता है । अनुराग द्वारी की ये रिपोर्ट देखिए जरा दिल थाम के बैठेगा दो हजार इक्कीस में लालमणी चौधरी जी जीवित है । यहाँ दो हजार सोलह में उन की मौत हो चुकी है । अपना पैसा दे तो बनवा ले हो लूट लिया महाराज प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत गरीब को अपना पक्का घर देने का ये अभियान सरकारी योजना मात्र नहीं है । साढे चार लाख सपने कितने सुन्दर होंगे ये जानने हम भी सपना पहुँचे । जिले में छह सौ से ज्यादा ग्राम पंचायतें है । हमने सोचा इन सपनों की चर्चा की शुरुआत रही गाँव से करें यहाँ भी इन घरों के बडे पोस्टर लगे थे । तभी गाँव में हमें सुनती बाई मिली उनसे जाना प्रधानमंत्री आवास की संपूर्णता को । इस एक घर में आप प्रधानमंत्री आवास योजना की आपने हकीकत देख ली । थोडा अंधेरा है लेकिन आपको यहाँ मैं उज्ज्वला योजना की भी हकीकत दिखा दूंगा । चार बर्तन है इनके घर पे कोई नहीं है । एक पति थे दो तीन साल पहले गुजर गए एक बेटा है । वो भी ठीक से सुन नहीं पाता है । हाँ बेटा घर बना ले कहाँ ऍम ऍम गल्ला मिलता है । गला गला नहीं मिलेगा । कुछ नहीं अपना पैसा तो बनवा ले हो सुनती बाई के घर की संपूर्णता आपने देख ली आगे गली में हम शिव कुमार चौधरी के साथ चल पडे । वो धीरे धीरे चल रहे थे, दिव्यांग हैं । हमें पता लगा उनका घर भूत रहा है । आप भी देखिए कैसे जरा दिल थामकर बैठेगा क्योंकि मैं मेरे कैमरे सहयोगी रिजवान खान और मेरे स्थानीय साथी ज्ञान शुक्ला भूतों के घर में प्रवेश करने वाले हैं ।

 ये बात आप को हास्यास्पद लग रही होगी । देखिए कितनी खूबसूरत इसमें तस्वीरें है इनके घर के बनने की ये पक्का घर यहाँ पर काम हो रहा है । ये पक्का घर ये छत डाली है । छठ डाली हुई है । है ना और ये तस्वीरों में ही दो हजार इक्कीस में लालमणी चौधरी जी जीवित है । यहाँ दो हजार सोलह में उन की मौत हो चुकी है और इस पूरे घर की हालत देख लीजिये जो आप तस्वीरों में जिसमें छत अच्छी अच्छी सीढियाँ तमाम चीजे देख रहे थे तो ये जो तस्वीरें खींची गई है वो किसने खींची । कोई आया था घर पे इधर हमको कोई नहीं आया ना कोई । हम पता लगाए इसलिए जब वो निकलवाए तब हमको पता लगा सर हमारा तो पैसा निकल गया । पिताजी गुजर गए । पैसा हमारा निकाल लिया है । गाँव के दूसरे छोर पर रहती है मुन्नीबाई गुप्ता इनके पति भी गुजर गए । झोपडा गिर गया । बेटे के पास पक्का मकान है इन्हें सरकारी कागज में स्वीकृति मिली । ना मकान मिला ना पैसा कुछ नहीं माना मेरा कोई नहीं आया । किसी ने इस तरह की तस्वीर नहीं ली । जो तस्वीर नहीं, कोई नहीं लिया कोई नहीं और आप के नाम पर आवाज स्वीकृत हो गया । पैसा भी चला गया । मैं क्या बताऊँ कि चला गया क्या किया क्या नहीं किया, क्या जाना चाहिए । बडा गाँव है । हजारों की आबादी है, जहाँ से गुजरे लोगों ने उम्मीद के साथ हमें रोका, खुद दस्तावेज दिखाए । कोई दिव्यांग था, किसी के पति की मौत हो गई । कोई देख नहीं सकता था । सबने प्रधानमंत्री आवास की संपूर्णता की ढेरों कहानियां सुनाई । जरा सोचिए जिस योजना के हर चरण की मॉनिटरिंग होती है, जिसमें प्रधानमंत्री का नाम जुडा है । जिस जिले में उन्होंने उद्घाटन किया वो भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं रहा । रही में हर्ष इस भ्रष्टाचार की कहानी सुनाता है । कोई शौचालय, कोई घर, कोई राशन का सताया है, राशन नहीं बना मैं हमारे सत्तर साल की हम लोग कोई नहीं देना । राशन पर ना मिल पाने पर जो है गिर गई । आपका घर बन गया नहीं नहीं बना अभी भी और पैसे निकल गए । दो हजार का इसमें निकल गया । प्रशासन ने जाँच कर पूर्व सरपंच बलवेंद्र सिंह जो सतना बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह के भाई है, और दो छोटे अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया । गाँव वाले कहते हैं, सालों से ये खेल चल रहा था, लेकिन राजनीतिक रसूख में सब चुप थे । उन के जो भाई हैं वो बीजेपी के अध्यक्ष पूर्वअध्यक्ष तो उनके ऊपर यहाँ से और दिल्ली तक तो सब को दबा ऍम । इधर पैसा भी मिल गया । गाँव तरक्की पर है । नया पंचायत भवन बन गया तो पुराने में कुरियर का दफ्तर खुल गया । कौन जाए देखने? 

बहरहाल सवालों के जवाब लेने हम कलेक्टर कार्यालय सतना पहुँचे । लेकिन कलेक्टर साहब मीटिंग में व्यस्त होने की बात कहने लगे । स्थानीय मीडिया को सात सेकंड का उन्होंने बडा सा स्पष्टीकरण दिया था का मामला आया था । आवाज से उसकी जाँच कर रहे हैं । उसमें जो भी जिम्मेदार होगा होगी, ग्रामीण विकास मंत्री मिले नहीं । वैसे सरकारी वेबसाइट् कहती है नवीनतम आईटी उपकरणों और प्रौद्योगिकी का उपयोग कर घर की स्वीकृति और पूर्णता की सूक्ष्म निगरानी मंत्री, सचिव, अतिरिक्त सचिव और संयुक्त सचिव द्वारा नियमित समीक्षा तो क्या तीन लोग मिलकर पचहत्तर घर हडप गए । क्या मंत्री जी बडे बाबू और बैंक कर्मचारियों की भूमिका भी तय होगी और क्या जिला प्रशासन सरकार सवालों का जवाब देने की हिम्मत जुटा पाएगा? सतना से ज्ञान शुक्ला और रिजवान खान के साथ अनुराग द्वारी की रिपोर्ट ऍन टीवी इंडिया जिस राज्य में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में घोटाला हो जाए क्या वहाँ केंद्रीय जांच एजेंसियों को तुरंत नहीं जाना चाहिए? वहाँ नहीं तो मोरबी पुल की मरम्मत से जुडी कंपनी के खाते ही खंगालने । झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ईडी ने खनन से जुडे मामले में पूछताछ के लिए बुलाया । सोरेन ने जाने से इंकार कर दिया और कहा कि पूछताछ क्यों एजेंसी उन्हें गिरफ्तार ही कर ले । दूसरी तरफ तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने भी प्रेस कांफ्रेंस कर आज कुछ और सबूत पेश किए । उनके हिसाब से ये सबूत भयंकर है । मुख्यमंत्री का आरोप है कि बीजेपी उनकी पार्टी को तोडने का प्रयास कर रही है । करोडो रुपए बांट रही है जिसके सबूत उनके पास है । क्या आपको लगता है कि हम लोग चोर उचक्के है क्या क्या लगता है कि कोई हत्यारे है? कल दिया आज आ गए क्या हमारी व्यवस्था नहीं है? रायपुर हवाई अड्डे पर हेमंत सोरेन ने अपने इरादे कर दिए । अपने खिलाफ ईडी की कार्रवाई को वो राजनीतिक जंग में बदलने के इरादा कर चुके हैं । इससे पहले कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि चाहे तो उन्हें गिरफ्तार कर ले । आज हमें न्योता बुलाया गया है । क्या यहाँ सिटी में अपना हाथ नहीं लगा देंगे । 

अगर मुँह क्या है तो ऐसा करो करके दिखाओ । अमित अगर हमने गुनाह क्या है तो पूछताछ क्यों करते हो? सीधा ॅ करके दिखाओ । फिर रात के कार्यकर्ताओं ने रांची के मोरहाबादी मैदान में विरोध मार्च निकाला । सोरेन ने आरोप लगाया कि बीजेपी राज्यपाल के साथ मिलकर उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करती रही है । झारखंड के मुख्यमंत्री को अवैध खनन मामले में पूछताछ के लिए समन भेजा था । बजाए दफ्तर जाने के हेमंत सोरेन ने अपने आने वाले पंद्रह दिनों के कार्यक्रम की घोषणा भी कर दी । ग्यारह नवंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का भी ऐलान किया । अब बीजेपी कह रहें जब मुख्यमंत्री पाकसाफ है तो फिर दफ्तर जाने से क्यों भाग रहे हैं? देखिए जब भी आप भ्रष्टाचरण करते हैं और आपकी चोरी पकडी जाती है तो आप इसी तरीके की नौटंकी करके लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश करते हैं । हम झारखण्ड में जो आपने देखा इसके दुरउपयोग का लंबा सिलसिला चलता है । उसका एक और उदाहरण ऐसा क्यों है कि ये एजेंसी उं भारतीय जनता पार्टी का भ्रष्टाचार, कर्नाटक का भ्रष्टाचार चालीस परसेंट कमिश् इनका भ्रष्टाचार हेमंत शर्मा का तथाकथित व्हाइट पेपर उस वक्त का सबसे एजेंसी मौत हो जाती है । लेकिन जहाँ गैर भाजपा शासित प्रदेश वहाँ एजेंसी चौबीस घंटे रात को भी काम कर रहे होते हैं । दिन रात जागकर अफसर काम करते तो ये सवाल सबके जेहन में है । कांग्रेस केंद्र सरकार पर एजेंसियों के बेजा इस्तेमाल का आरोप लगाती रही है । तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि इसके विधायकों को खरीदने के लिए करोडों रुपए का लालच दिया गया पर वहाँ केंद्र की कोई एजेंसी जाँच के लिए नहीं पहुंची । 

इससे संबंधित ऑडियो और सीडीबी फंसने जारी किए और आज तेलंगाना सरकार के जाँच करने वाले इन्वेस्टिगेशन एजेंसी पुलिस है । ऐसी कुछ अन्य एजेंसी है जो भी उन्होंने इन्क्वाइरी क्या है इनवेस्टिगेट किया है । ये सारे चीज ऍम ने आज हाईकोर्ट में दाखिल कर दी । ऍम हाइकोर्ट और जो भी यहाँ सबमिट किए हैं वो सारे चीज को मैं सुप्रीम कोर्ट जीत चीज आपको भेज रहा हूँ । सुप्रीम कोर्ट के हर जज को भेज रहा हूँ और सारे ही जितने भी हमारे देश में हाइकोर्ट है उनको भी मैंने भेज दिया है । चीफ जस्टिस इसको ऑल चीफ जस्टिस इंडिया फॉर हाईकोर्ट्स अब इंतजार परवर्तन निदेशालय के अगले रुख का है । संभावना है कि ईडी हेमंत सोरेन को किसी अगली तारीख पर पूछताछ के लिए बुलाया । देर सवेर भले ही हेमंत सोरेन को पूछताछ के लिए बुला लेंगे लेकिन हेमंत सोरेन ने सफलतापूर्वक एक कानूनी लडाई को राजनीतिक लडाई में बदल दिया है । अब देखना यह है आगे क्या करती है । नई दिल्ली से राजीव मंदिर टीम इंडिया तेलंगाना के मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि उनके पास सबूत हैं कि बीजेपी कथित रूप से करोडों रुपए का प्रलोभन देकर उनकी पार्टी तोडने का प्रयास कर रही है । कम से कम यही मौका है कि ईडी इसे लेकर पूछताछ करे । विपक्ष का आरोप भी रहा है की जाँच एजिन बीजेपी के राज्य में नहीं जाती हैं । वहाँ जब भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं तब भी नहीं जाती है । यहाँ तो एक राज्य के मुख्यमंत्री ऑडी ओ रिकॉर्डिंग लेकर जाने क्या क्या दिखा रहे हैं । कम से कम गोदी मीडिया ही सवाल पूछ लेता । कितने साल गुजर गए वायु प्रदूषण को लेकर राजनीति करते हुए और अलग अलग दावे करते हैं । हर साल नवंबर की हवा जहरीली हो जाती है । प्रदूषण के कारण नेता अजीब अजीब बयान देने लग जाते हैं । सब एक दूसरे की पोल खोल भी देते हैं और उनकी बातों में अपने अपने हिसाब से सच्चाई भी होती है । मगर हवा साफ नहीं होती । 

पचास फीसदी प्रदूषण दिल्ली में चलने वाली गाडियों से होता है । फिर से सुझाव आने लगे हैं कि स्कूल बंद कर देने चाहिए । लेकिन ये जहरीली हवा तो सभी के लिए खतरनाक है केवल बच्चों के लिए नहीं । हम कब तक स्कूलों को बंद कर या कंस्ट्रक्श इनको रोककर खानापूर्ति करते रहेंगे । दिल्ली की इस हवा का हाल भी गंगा और यमुना की सफाई के जैसा हो गया है । सफाई को लेकर राजनीति तो हो जाती है मगर नदियाँ कभी नहीं होती । इस वक्त हम दिल्ली की सबसे ऊंची इमारत डॉक्टर श्यामा प्रसाद सिविक सेंटर में है जहाँ पे ऍम सी डी का दफ्तर है और यहाँ से आपको दिखाने की कोशिश करते हैं कि किस तरीके से दिल्ली ऍम बर में तब्दील हो गई है । दमघोटू हवा के बीच धुंधली दिल्ली धुंध का ऐसा पहरा की दिल्ली की सबसे ऊँची इमारत से भी दूर तक तस्वीर साफ नहीं ऍम बर में तब्दील होती । दिल्ली की इस तस्वीर के जरिए समझना आसान है कि कैसे जहरीली हवा के बीच दिल्ली का दम घुट रहा है । प्रदूषण के बीच ऐसे बीमार बच्चों की तादाद अचानक बढी है । डॉक्टर मॅन दे रहे हैं कुछ दिनों पहले तक दस पंद्रह दिन पहले तक तो दिन भर में पाँच से सात जिस तरह के आया करते थे जो अब बढ के दिन भर में कम से कम पच्चीस से तीस हो गए तो इस पलूशन की वजह से सांसद की समस्या की एक बडी समस्या खडी हो गई है जो धीरे धीरे करके छोटे बच्चों और बच्चों को भी बहुत ज्यादा ॅ कर रही है । वही दिल्ली के करीब डेढ सौ नामचीन स्कूलों की संस्था  स्कूल कांफ्रेंस ऑफ टिविटी उं पूरी तरह से बंद करने के अलावा बच्चों के लिए इन नाइंटी फाइव ॅ अनिवार्य कर दिया है और ऍम टिविटी को बंद कर दिए हैं बच्चों का जैसे योगा वगैरह रोज होता था या फॅमिली वगैरह खुले प्लेग्राउंड में होता था उसको हमने या तो ऑडिटोरियम या तो मल्टीपर्पस हॉल में स्टाॅल वे में कर रहे हैं । प्लोस लिए सिचुएशन को अब जॉब कर रहे हैं । अगर मंडे ऐसे ही रहा स्कूलों की नजर प्रदूषण के बढते खतरनाक स्तर पर है कि कहीं हालत ऑफलाइन से ऑनलाइन क्लॉस की तरफ इशारा तो नहीं कर रहे लेकिन इस दौरान एनसीपीसीआर ने दिल्ली के मुख्य सचिव को स्कूल बंद करने को लेकर चिट्ठी लिखी है । कई बार दिल्ली सरकार को बोल चुके हैं । कल दिल्ली सरकार को बोला की दिल्ली की हवा जहरीली है उसको बंद कर दीजिए ।

 दिल्ली का एक्टिवा इतनी बुरी स्थिति में है कि बच्चे साँस नहीं ले पा रहे हैं और उसको बंद करने के लिए भेजनी पडेगी । जरूरत इस बात की भी है कि हम जिम्मेदार बने और जरूरी ये भी है कि जिम्मेदारी तय होनी चाहिए । नई दिल्ली से परिमल कुमार एनडीटीवी इंडिया वायु प्रदूषण को लेकर अगले साल भी दिल्ली इसी तरह बहस करती रहेगी । लोगों के दम फूलते रहेंगे आप और हम केवल देखते ही रहेंगे इसलिए ब्रेक ले लीजिए । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का एक विडियो सोशल मीडिया पर वाइरल हो रहा है । इस विडियो में शिंदे अपने गाँव के खेत में खेती करते दिखाई दे रहे हैं । विपक्ष सवाल पूछ रहा है कि जब किसान आत्महत्या कर रहे हैं, उनके नुकसान की भरपाई नहीं हो रही है । ऐसे में सी ऍम फोटो क्लिक करवाने में क्यों व्यस्त हैं? ये महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे है । फॅमिली के साथ खेत में है । पुश्तैनी किसानी का इतिहास तो इसलिए धुंधला हुआ क्योंकि वो खुद को ठाणे इलाके का ऑटो वाला बता रहे थे । साहब के फोटो अब जहाँ तहाँ है वो मिलनसार गणपति उत्सव और गरबा में खूब शिरकत करते हैं । लेकिन विपक्ष कहता है कि वो फोटो खिंचवाने में यकीन करते हैं । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की अहम जिम्मेदारी ये है कि उन किसानों के खेत में हलचल । आज महाराष्ट्र में बहुत भारी बारिश के चलते हुए । किसान बहुत ही तकलीफ है । आत्महत्या कर रहे हैं । कपास का किसान हो या सोयाबीन का, किसान हो या गन्ने का किसान बहुत तकलीफ है । 

उनको सहारा देने के बजाय अगर मुख्यमंत्री हो ही सरकार आयी है । महाराष्ट्र के इतिहास मुँह मुँह हमें नहीं चाहिए । हमें काम करने वाली सरकार चाहिए । आज हमारे महाराष्ट्र में उद्योग धंधे नहीं आ रहे हैं । जो आ रहे हैं वो गुजरात चले जा रहे हैं । गुजरात से लाकर वापस महाराष्ट्र में भी आप धंधे लाते हैं, उद्योग लाते हैं, उसका फोटो ऍम करते हैं । तब जनता को पसंद आता है । आप नकली फोटोसेशन करते हैं । हिंदी और उनके लोग अपने ऊपर लग रही सारे इल्जामों के जवाब दे रहे हैं । विपक्ष अगर मुझे पूछो तो आज की डेट में महाराष्ट्र में विपक्ष को कोई काम बचाने उनकी खुद की गलती है । उनको पता है इसके लिए लोग शिंदे के किसान बनकर खेत जोतने वाली ऐसी तस्वीरें पहली बार वाइरल हो रही है । पर सवाल पूछे जा रहे हैं कि आखिर असल में शिंदे सरकार ने किसानों के लिए कितना काम किया है । आंकडे बता रहे हैं कि देश में हो रही कुल किसानों की खुदकुशी में महाराष्ट्र के किसान सैंतीस दशमलव तीन फीसदी हैं । मुख्यमंत्री जब ये फोटो क्लिक करवा रहे थे ठीक उसके पहले महाराष्ट्र में बेमौसम बारिश में करोडो का नुकसान कर दिया । विपक्ष और किसान यूनियन मदद मांग रहे हैं । जिस तरह से महाराष्ट्र में किसानों को तकलीफ हो रही है और उन्हें मुआवजा नहीं मिल रहा है तो हमारी इतना छिनने जी से यही होती है कि अगर आपको इस चीज की समझ है अगर आप खेतों के बारे में समझाते हैं, किसानों के बारे में समझते हो तो उन्हें जल्द से जल्द रात और उनके दुख और दर्द का निवारण कर दो हजार बाईस तक खेती को मुनाफे का सौदा बनाने का वादा करने वाली जेपी शिंदे सरकार में बडी हिस्सेदार है । लेकिन साल खत्म होने तक राज्य के किसानों को अब तक नहीं पता कि जो नुकसान लगातार हो रहे हैं उनकी भरपाई कैसे होगी ।

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