मोहन भागवत बोले- राष्ट्रवाद ने कराए युद्ध, शांति के लिए बताया मार्ग

भागवत ने कहा कि एक तरफ नई-नई चीजों की खोज करना और दूसरी तरफ इसका उपयोग करने वाला कोई बचेगा कि नहीं इसकी चिंता करना, दुनिया आज ऐसी स्थिति में है. ऐसी दुविधा में फंसा दुनियाभर का मनुष्य ये सोचता है कि इसका उपाय हमको भारत से मिलेगा.

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  • आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि युद्ध राष्ट्रीयता के कारण होते हैं और राष्ट्रवाद खतरनाक है
  • उन्होंने बताया कि दोनों विश्व युद्ध राष्ट्रवाद के उदय के कारण हुए और इसलिए अंतरराष्ट्रीयता आवश्यक है
  • भागवत ने कहा कि ज्ञान और साधन बढ़ने के बावजूद पर्यावरण विनाश और समस्याओं का समाधान नहीं मिल पाया है
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जयपुर:

राजस्थान के जयपुर में शनिवार को एक कार्यक्रम के दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने राष्ट्रवाद और युद्ध को लेकर बड़ी बात कही. उन्होंने कहा कि एक बात सामने आयी है, उसमें ये है कि युद्ध राष्ट्रीयता के कारण होते हैं. राष्ट्रवाद खतरनाक है. दोनों महायुद्ध राष्ट्रवाद के उदय के कारण ही हुआ. इसीलिए अंतरराष्ट्रीयता की बात करो. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीयता की बात तो बहुत जोर से हो रही है, लेकिन ये बात करने वाले पहले अपने राष्ट्र का स्वार्थ ही सुरक्षित करते हैं.

आरएसएस चीफ ने कहा कि चार-पांच साल पहले अमेरिका के एक राजनयिक मिलने के लिए आए थे. उन्होंने कहा कि अमेरिका भारत का प्राकृतिक दोस्त है और दूर है इसीलिए शत्रुता भी नहीं हो सकती. वहीं विपरीत शक्तियों से बचने के लिए दोनों की दोस्ती होनी जरूरी है. इससे अनेक क्षेत्र में बहुत अच्छा हो सकता है. हालांकि उन्होंने अंत में एक लाइन जोड़ दी, - 'Provided American Interests are Protected'

उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीयता की बात तो करते हैं, लेकिन अंत में एक वाक्य रहता है- 'Provided Our Interests are Protected'. जिस चिंता से मुक्त होने के लिए मनुष्य जाति के विकास की बात है, वो चिंता सर्वाइवल की है. श्रृष्टि में - 'Struggle for Existence' है. क्योंकि मानव की चाह बहुत है और चाह पूरी करने वाले साधन और वस्तुएं मर्यादित हैं. इसीलिए स्पर्धा है, और इसलिए जो बलवान है, वो जीएगा. लेकिन दिखाई देता है कि जो बलवान है वही चिंता में है.

मोहन भागवत ने कहा कि अपने सर्वाइवल की चिंता में बलवानों के ही संघर्ष हो रहे हैं. उसमें बाकी लोग पिसे जा रहे हैं. ये कैसे हो रहा है. एक तरफ मनुष्य के बौद्धिक विकास का इतना चरम, ज्ञान की वृद्धि, साधन-सुविधा की उपलब्धता ये सब मनुष्य के पास हैं, लेकिन दूसरी तरफ हजारों सालों से चली आ रही समस्याओं का कोई उपाय अभी भी नहीं है, उल्टा स्थिति और बिगड़ रही है. पर्यावरण की तेज गति से विनाश हो रहा है.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख ने कहा कि एक तरफ नई-नई चीजों की खोज करना और दूसरी तरफ इसका उपयोग करने वाला कोई बचेगा कि नहीं इसकी चिंता करना, दुनिया आज ऐसी स्थिति में है. ऐसी दुविधा में फंसा दुनियाभर का मनुष्य ये सोचता है कि इसका उपाय हमको भारत से मिलेगा.

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