जर्जर हालत में है रानी कमलापति का महल, जिनकी याद में रखा गया हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम

भोपाल से करीब 61 किलोमीटर दूर गिन्नौरगढ़ किला आज भी जर्जर हालत में है. गिन्नौरगढ़ किला गोंडों के गढ़ में था, लेकिन बाद में यह भोपाल राज्य के तत्कालीन शासक दोस्त मोहम्मद के हाथों में आ गया. 

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इतनी ऊंचाई पर बनने के बावजूद इस किले के चारों ओर 25 कुएं और चार छोटे तालाब हैं
भोपाल:

मध्य प्रदेश के भोपाल में हबीबगंज रेलवे स्टेशन (Habibganj Railway Station) का नाम बदलकर रानी कमलापति (Rani Kamalapati) के नाम पर रखा गया है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर भोपाल की गोंड रानी रानी कमलापति के नाम पर रखने के लिए मध्य प्रदेश की जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आभारी है. लेकिन उनके अपने विधानसभा क्षेत्र में स्थित रानी कमलापति की धरोहर खस्ताहाल है. कमलापति का महल उपेक्षा का दंश झेल रहा है. भोपाल से करीब 61 किलोमीटर दूर गिन्नौरगढ़ किला आज भी जर्जर हालत में है. गिन्नौरगढ़ किला गोंडों के गढ़ में था, लेकिन बाद में यह भोपाल राज्य के तत्कालीन शासक दोस्त मोहम्मद के हाथों में आ गया. 

निजाम शाह को उनके भतीजे, चैनशाह ने धोखे से जहर देकर मार दिया था, उनकी विधवा रानी कमलापति और उनके बेटे नवलशाह ने गिन्नौरगढ़ किले में शरण ली और अफगान कमांडर दोस्त मुहम्मद खान से मदद मांगी. 1723 में रानी कमलापति की मृत्यु के बाद, उनके बेटे नवल शाह ने किले की कमान संभाली लेकिन दोस्त मुहम्मद खान ने इस पर हमला किया और इसे अपने कब्जे में ले लिया. कहा जाता है कि यह किला समुद्र तल से 1,965 फीट की ऊंचाई पर है, जिसे परमार वंश के राजाओं ने बनवाया था. बाद में, यह शाह राजवंश की राजधानी बन गया.

भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदला, जानें अब किस शख्सियत के नाम पर होगा ये

करीब 800 साल पहले जहां सात रानियों की हंसी गूंजती थी वह किला अब वीरान और जीर्ण-शीर्ण हो गया है. किला विंध्य पर्वत श्रृंखला में एक पहाड़ी पर है और अभी भी पर्यटक यहां घूमने आते हैं. प्रकृति की गोद में बसे और हरियाली से घिरे इस किले की संरचना अद्भुत है. लगभग 3696 फीट लंबे और 874 फीट चौड़े इलाके में फैले इस किले की विशालता देखने योग्य है. किले और उसके आसपास लगभग 25 कुएं,बावड़ी और 4 छोटे तालाब हैं. 

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इतिहासकारों का कहना है कि यह बहुत दिलचस्प है कि इतनी ऊंचाई पर बनने के बावजूद इस किले के चारों ओर 25 कुएं और चार छोटे तालाब हैं, जो हर समय पानी से भरे रहते हैं. पहाड़ी पर काले और हरे रंग के पत्थर बिखरे हुए हैं, जिनका इस्तेमाल किले के निर्माण में किया गया था. किले के नीचे एक सदियों पुरानी गुफा है, जो इसके निर्माण के रहस्य को और गहरा करती है.

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कुछ सालों पहले इस किले को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित करने का नोटिफिकेशन राज्य पुरातत्व संचालनालय ने जारी कर दिया था. इस किले को राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में चिह्नित कर लिया गया था. बावजूद इसके इस किले को संरक्षित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया था. इसे पर्यटन के लिए विकसित करने का भी प्रयास नहीं किया गया. इस किले की सुरक्षा के लिए भी अभी तक कोई खास इंतजाम नहीं किए गए हैं.

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भोपाल में बदल जाएगा हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम, बता रहे हैं अनुराग द्वारी

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