'तो पूरे राजस्थान राज्य पर राजा का शासन होगा...' जयपुर टाउन हॉल की संपत्ति केस पर SC में रोचक बहस, पढ़ें

यह मामला जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल, जिसे पहले पुरानी विधानसभा के रूप में जाना जाता था, से संबंधित है, जो कि राजस्थान सरकार और जयपुर की पूर्व राजपरिवार के बीच विवाद का केंद्र है. 

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जयपुर के टाउन हॉल की संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर पूर्व राज परिवार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है, हालांकि फिलहाल हाईकोर्ट के फैसले पर कोई रोक नहीं है.सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई को तैयार है. राजस्थान सरकार ने दिलाया भरोसा, मामले में जल्दबाजी नहीं करेंगे. इस मामले में 8 हफ्ते बाद सुनवाई होगी. मामला गहलोत सरकार के टाउन हॉल जयपुर पुरानी विधानसभा को हेरिटेज संग्रहालय में बदलने के फैसले से संबंधित है.

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकील हरीश साल्वे से कहा- भारत सरकार के पक्षकार न होने पर आपने भारत सरकार के साथ विलय कैसे किया? जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा ने कहा- अगर सरकार पक्षकार नहीं है, तो पूरे राजस्थान राज्य पर राजा का शासन होगा. अगर यह दलील स्वीकार कर ली जाती है तो रियासतें स्वतंत्र होंगी, उनकी अपनी संपत्ति होगी.

साल्वे ने कहा - राज्य के पास जो है, उस पर किसी का अधिकार नहीं है, यह खत्म हो चुका है. कल यह 363 स्पष्टीकरण दूसरे बिंदु पर पढ़ा जाएगा, संपत्तियों का स्वामित्व अनुबंध से पहले का था.  इन 4 मुकदमों में भी, शायद जयपुर का आधा हिस्सा आपका होगा.  हम नोटिस जारी करेंगे, दूसरे पक्ष को सुनेंगे.  याचिकाकर्ता की ओर से साल्वे अंतरिम राहत की प्रार्थना करेंगे. 

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बता दें कि यह मामला जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल, जिसे पहले पुरानी विधानसभा के रूप में जाना जाता था, से संबंधित है, जो कि राजस्थान सरकार और जयपुर की पूर्व राजपरिवार के बीच विवाद का केंद्र है. 

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जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र और  जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न है, जिसे हम तय करेंगे, लेकिन 17 अप्रैल 2025 के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने या यथास्थिति बरकरार रखने की मांग को स्वीकार नहीं किया. राज्य की ओर से AAG शिव मंगल शर्मा की दलीलें सुनने के पश्चात न्यायालय ने यह निर्णय दिया.  शर्मा ने कहा कि रोक की  याचिका पर सुनवाई राज्य द्वारा उत्तर प्रस्तुत किए जाने के बाद ही होनी चाहिए.  यह भी आश्वासन दिया कि राज्य सरकार इस मामले की सुप्रीम कोर्ट  में लंबितता का सम्मान करेगी. अदालत ने यह आश्वासन संज्ञान में लेते हुए अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया.  

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याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रख्यात वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने पक्ष रखा. उन्होंने तर्क दिया कि यह विवाद केवल निजी संपत्ति के स्वामित्व और सिविल अधिकारों से जुड़ा है, जिसे 1949 में किए गए एक करार (कवेनेंट) के तहत केवल आधिकारिक कार्यों के लिए राज्य को सौंपा गया था. उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि अब विधानसभा अन्य भवन में स्थानांतरित हो चुकी है, राज्य द्वारा संपत्ति का किसी अन्य उद्देश्य, विशेष रूप से व्यावसायिक या हेरिटेज टूरिज़्म के लिए उपयोग, उक्त करार की स्पष्ट शर्तों का उल्लंघन है.

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वहीं AAG शर्मा ने पलटवार करते हुए कहा कि यह विवाद पूर्व-संविधानकालीन करारों से संबंधित है जिन पर अनुच्छेद 363 के तहत अदालत का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है. उच्च न्यायालय द्वारा शासक परिवार की याचिकाओं को खारिज करना पूर्णतः उचित था. इस विवाद की पृष्ठभूमि 1949 में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय और भारत सरकार के बीच किए गए करार से जुड़ी है, जिसके अंतर्गत कुछ संपत्तियां व्यक्तिगत रूप में शासक के पास बनी रहीं और अन्य को केवल सरकारी उपयोग के लिए राज्य को सौंपा गया था. टाउन हॉल भी ऐसी ही एक संपत्ति थी, जिसे राजस्थान विधानसभा के रूप में उपयोग में लाया गया. 2022 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा इस इमारत को 'वर्ल्ड क्लास राजस्थान हेरिटेज म्यूजियम' में बदलने का निर्णय लिया गया, जिसके बाद शाही परिवार ने आपत्ति दर्ज कराई.  2014 से 2022 के बीच कई बार प्रतिनिधित्व और कानूनी नोटिस दिए जाने के बावजूद जब कोई हल नहीं निकला.   तब याचिकाकर्ताओं ने सिविल न्यायालय में वाद दायर किया, जिसमें उन्होंने संपत्ति पर कब्जा, निषेधाज्ञा, और मुआवज़ा की मांग की. राज्य सरकार ने अनुच्छेद 363 का हवाला देते हुए इस वाद को प्रारंभिक चरण में ही खारिज करने हेतु आदेश VII नियम 11 के अंतर्गत आवेदन दिया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया.  बाद में राज्य सरकार द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलट दिया और कहा कि उक्त वाद अनुच्छेद 363 के तहत बाधित है.  उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय के पैरा 43 में यह स्वीकार किया कि करार के अनुसार राज्य को केवल आधिकारिक कार्यों हेतु संपत्ति का उपयोग करना था.  और यदि कोई सरकारी अधिकारी इसका उल्लंघन करता है तो उसके विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही की जा सकती है.  फिर भी अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि ऐसे करारों से उत्पन्न विवादों पर दीवानी अदालतों का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है.

याचिकाकर्ताओं ने अब इस दृष्टिकोण को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है कि अनुच्छेद 363 की व्याख्या सीमित रूप में की जानी चाहिए और यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21, और 300A में प्रदत्त मौलिक और संपत्ति के अधिकारों को निरस्त नहीं कर सकता, विशेषकर 26वें संविधान संशोधन के बाद जब शासकों को मान्यता समाप्त कर सामान्य नागरिक घोषित किया गया.

 सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में नोटिस जारी कर दिया है और भविष्य में विस्तृत सुनवाई करते हुए यह जांच करेगा कि अनुच्छेद 363 की सीमा और पूर्व-संविधानकालीन करारों के तहत उत्पन्न अधिकारों की संवैधानिक स्थिति क्या है. 

समझें क्या है पूरा मामला

गौरतलब है कि जयपुर के पुराने विधानसभा भवन (टाऊन हॉल) के मालिकाना हक को लेकर राजस्थान के पूर्व राज परिवार की ओर से दायर याचिका सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.  हाईकोर्ट ने इसे सरकारी सम्पत्ति मानते हुए उनके दावों को खारिज कर दिया था.   इस आदेश पराजपरिवार की सदस्य पद्मिनी देवी, दीया कुमारी और पद्मनाभ सिंह ने SC में चुनौती दी है.  दरअसल इसी साल अप्रैल में राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर के पुराने विधानसभा भवन (टाउन हॉल), पुराना पुलिस मुख्यालय, पुराना होमगार्ड महानिदेशालय समेत  की करीब ढाई हजार करोड़ रुपए की संपत्ति को सरकारी संपत्ति माना. कोर्ट ने कहा कि  इस मामले पर कोई सिविल अदालत सुनवाई ही नहीं कर सकती.  हाईकोर्ट ने कहा- ये संपत्तियां वर्ष 1949 में जयपुर रियासत और भारत सरकार के बीच हुए समझौते का हिस्सा है, जिनका उपयोग सरकारी प्रयोजन के लिए किया जाना था र इस संदर्भ में कोई भी सिविल वाद संविधान के अनुच्छेद 363 के तहत कोर्ट की समीक्षा से बाहर है. यह सभी संपत्तियां वर्तमान में सरकार के कब्जे में हैं.  सरकार ने कोर्ट से कहा- सरकार को यह संपत्ति कोवेनेंट से मिली है, न की लाइसेंस के जरिए. संविधान के अनुसार इन संपत्तियों के स्वामित्व को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है. कोवेनेंट में टाउन हॉल प्रशासनिक कार्य के लिए सरकार को दिया, न कि सिर्फ विधानसभा के लिए. कोवेनेंट के समय यहां विधानसभा अस्तित्व में नहीं थी.  सरकार इनका कोई भी उपयोग करने के लिए स्वतंत्र है.  दरअसल पूर्व राजपरिवार ने  दावों में  निचली अदालत से आग्रह किया गया था कि चारों संपत्तियां वापस  दिलाई जाए और इनका मुआवजा दिलाया जाए.   दावे में कहा गया था कि यह संपत्तियां सरकार को उसके उपयोग के लिए लाइसेंस पर दी गई थी और उसके रखरखाव की जिम्मेदारी भी सरकार की ही थी,  जिस कार्य के लिए यह संपत्तियां दी गई थी, अब सरकार को उन कार्यों के लिए इनकी जरूरत नहीं रही है. उद्देश्य पूरा होने के कारण अब इन्हें वापस दिलाया जाए.  सरकार ने एडीजे कोर्ट में लंबित दावे को चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने फैसले में कहा कि संविधान के अंतर्गत कोवेनेंट में किए गए समझौते या संधि से उत्पन्न विवाद को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती. राज्य सरकार को इनका उपयोग केवल सरकारी कार्यों के लिए करना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इनका पुनः अधिकार या मुआवजा मांगा जा सकता है. यह संपत्तियां राज्य की हैं.  किसी भी व्यक्तिगत लाभ या व्यावसायिक उपयोग के लिए ट्रांसफर नहीं की जा सकतीं.

वहीं अदालत में याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि संबंधित संपत्तियां तत्कालीन महाराजा जयपुर की मानी गई हैं. तत्कालीन महाराजा राजप्रमुख थे. राजस्थान सरकार के पास विधानसभा, पुलिस हैड क्वार्टर और डीजी होम गार्ड के लिए बिल्डिंग न होने से उस समय सरकार को दी थी.सरकार के पास स्थान उपलब्ध होने सें ये भवन वापस राजपरिवार को  वापस देने का दावा ठोका गया.

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