- सीएम भजनलाल ने अरावली पर्वत को राजस्थान की सांस बताते हुए कोई भी छेड़छाड़ नहीं होने देने का संकल्प लिया.
- भजनलाल शर्मा ने अरावली की परिभाषा बदलने और लीज जारी करने के पुराने मामलों पर सवाल उठाए
- सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद खनन गतिविधियों पर सख्त निगरानी शुरू हुई है, इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी
NDTV राजस्थान कॉन्क्लेव 'राइजिंग राजस्थान: विकास भी, विरासत भी' में प्रदेश के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी शामिल हुए. इस दौरान उन्होंने अपनी सरकार के दो साल के कामकाज गिनाए. साथ ही पेपर लीक और खासकर अरावली संरक्षण के मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि अरावली राजस्थान की 'सांस' है और वर्तमान सरकार अपनी इस प्राकृतिक धरोहर के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं करेगी.
सीएम शर्मा ने कहा कि हम तो वो लोग हैं जो वृक्षों को भी पूजते हैं, पर्वतों को भी पूजते हैं, नदियों को भी पूजते हैं और मैं तो गिरिराजधर, गोवर्धन गिरिधारी का भक्त हूं, इसीलिए जब ये मुद्दा आया, मैंने पहले दिन ही कह दिया था कि राजस्थान में अरावली के साथ कोई छेड़खानी नहीं की जाएगी.
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अरावली हमारी धरोहर, इसमें किसी तरह का नुकसान नहीं होने देंगे- सीएम भजनलाल
भजनलाल शर्मा ने कहा कि 2002-03 और 2009 में अरावली की परिभाषा किसने बदली? किसने लीजें दीं और कितनी दी? इसके अस्तित्व के साथ किसने खिलवाड़ किया? उन्होंने कहा कि मैं आज स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि सुप्रीम कोर्ट में ये विषय है. निश्चित रूप से हमारे राजस्थान की जो गाथा रही है, हमारी तो मां अमृता देवी ने पेड़ों के लिए बेटियों सहित अपने आप को समर्पित कर दिया. अरावली हमारी धरोहर है, हमारा जीवन है, हमारी सांस है. इसमें किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होने देंगे.
कहा जा रहा है कि पहले का सिस्टम बहुत आसान था. अवैध खनन करने वाले, वन या राजस्व विभाग के अधिकारियों को रिश्वत देकर जमीन के मैप (नक्शे) में हेराफेरी करवा लेते थे. फॉरेस्ट की जमीन को राजस्व की जमीन दिखा दिया जाता था, या खनन वाले इलाके का रकबा बढ़ा दिया जाता था. इस तरह अवैध खनन कानूनी कागजात के सहारे होता रहा.
अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अरावली क्या है और क्या नहीं. साथ ही, अब उपग्रह से ली गई तस्वीरों की लगातार निगरानी होती है, जिससे जमीन पर क्या हो रहा है, यह साफ दिख जाता है. नक्शे में हेराफेरी अब आसान नहीं रही.
नए नियम: सख्त, पारदर्शी और विज्ञान पर आधारित
2025 की नई खनन नीति सब कुछ बदल देने वाली है. अब कोई भी मनमाना फैसला नहीं ले सकता. मास्टर प्लान में बदलाव के लिए सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी जरूरी है. हर तीन महीने पर स्वतंत्र ऑडिट होगा. उपग्रह हर हफ्ते नजर रखेगा. अगर कोई कंपनी नियम तोड़ेगी तो उसकी जमा राशि (बॉन्ड) जब्त कर ली जाएगी और उसे पहाड़ को फिर से हरा-भरा करना होगा. आम लोगों और सामाजिक संगठनों को भी नियमों पर सवाल उठाने का अधिकार होगा.













