पंजाब में धर्मग्रंथों के अपमान यानी बेअदबी करने वालों से अब सख्ती से निपटा जाएगा. भगवंत मान सरकार बेअदबी विरोधी विधेयक मंगलवार को विधानसभा से पारित करा सकती है. इस विधेयक के तहत श्री गुरु ग्रंथ साहिब, भगवद् गीता, कुरान शरीफ और बाइबिल जैसे पवित्र धार्मिक ग्रंथों का अपमान करने वालों के लिए आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान किया गया है. पंजाब में बेअदबी बड़ा संवेदनशील मुद्दा रहा है. पूर्ववर्ती भाजपा-अकाली दल और कांग्रेस सरकारों को इस मु्द्दे पर जनता का गुस्सा झेलना पड़ा है.
आम आदमी पार्टी ने विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान सोमवार को ये बिल पेश किया था. आज बेअदबी विरोधी विधेयक-2025 पर विधानसभा में चर्चा है. इस कानून के तहत धार्मिक ग्रंथों के अपमान पर न्यूनतम 10 साल की सजा और अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है.
माता-पिता के लिए छूट का प्रावधान
मान सरकार ने कहा है कि बेअदबी विरोधी कानून का मकसद धार्मिक ग्रंथों के जानबूझकर अपमान करने वालों पर शिकंजा कसना है. साथ ही सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने के प्रयासों को रोकना है. यदि बेअदबी का आरोपी कोई नाबालिग है तो इस केस में उसके माता-पिता को भी पक्षकार बनाया जा सकता है. यानी जो भी माता-पिता या अभिभावक जानबूझकर नाबालिग बच्चे या मानसिक विक्षिप्त-दिव्यांग व्यक्ति को संभालने में असफल रहते हैं, उन्हें भी इसके तहत आरोपी बनाया जा सकता है.
आजीवन कारावास की सजा हुई तो बेल नहीं
विधेयक में कहा गया है कि अगर धार्मिक ग्रंथों का अपमान कर कोई सांप्रदायिक दंगे भड़काता है, जान-माल का नुकसान होता है या सार्वजनिक-निजी संपत्ति में तोड़फोड़ की जाती है तो सजा 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक बढ़ाई जा सकती है. दोषी व्यक्ति को 10 से 20 लाख रुपये तक का जुर्माना भी देना पड़ सकता है. आजीवन कारावास की सजा होती है तो ऐसे दोषी व्यक्ति को जमानत ही नहीं, पैरोल या फरलो पर थोड़े वक्त की रिहाई भी नहीं मिलेगी.
ग्रंथी-सेवादारों पर भी जिम्मेदारी
इस कानून के तहत धार्मिक स्थलों का रखरखाव और संचालन करने वालों पर भी जिम्मेदारी डाली गई है. इसके तहत ग्रंथी, रागी, सेवादार, ढाडी, पंडित, पुजारी, मौलवी या पादरी को भी उनके धार्मिक क्रियाकलापों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. अगर पवित्र धर्मग्रंथों की पवित्रता को भंग करने का दोषी पाया जाता है तो उन्हें भी इस कानून के तहत निरुद्ध किया जा सकता है. अगर वो धर्मग्रंथों के अपमान के दोषी पाए गए तो उन्हें अधिकतम सजा यानी उम्रकैद ही मिलेगी.
साजिश रचने पर भी चलेगा मुकदमा
धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी की साजिश रचने या इसे भड़काने पर भी केस चलाया जाएगा. धार्मिक आयोजन और पूजा-पाठ में विघ्न डालने वाले भी इस कानून के दायरे में आएंगे. विधानसभा के विशेष सत्र में ही ये विधेयक बहस के बाद पारित हो सकता है.
मानवाधिकार संगठनों ने उठाए सवाल
पंजाब की भगवंत मान सरकार के बेअदबी विरोधी कानून को लेकर मानवाधिकार संगठनों ने सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि ये इस कानून के दुरुपयोग होने की आशंका है. कट्टरपंथियों द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. पाकिस्तान में ईश निंदा कानून के बेजा इस्तेमाल का हवाला भी दिया गया. आलोचकों का कहना है कि इस विधेयक में सिर्फ चार ग्रंथों को ही क्यों शामिल किया गया है. पारसी-जैन और अन्य धर्मों को इसके दायरे से क्यों बाहर रखा गया है.
मान सरकार की सफाई
मान सरकार का कहना है कि वैसे तो ये कानून केंद्र सरकार को बनाना चाहिए था, लेकिन समवर्ती सूची में होने के कारण अब पंजाब सरकार इस पर कानून बना रही है. अब तक पवित्र ग्रंथों की बेअदबी से जुड़ा कोई व्यापक कानून नहीं होने के कारण आरोपी कार्रवाई या सजा से बच जाते हैं. ये विधेयक सभी धर्म और समुदायों के पवित्र ग्रंथों की बेअदबी के मामलों से निपटने में कारगर साबित होगा.
पहले के विधेयकों को केंद्र से नहीं मिली हरी झंडी
बेअदबी से जुड़े दो विधेयकों को कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस सरकार के दौरान भी पारित कराया गया था. हालांकि केंद्र सरकार ने इन विधेयकों को हरी झंडी नहीं दी थी. भाजपा-अकाली दल की सरकार में 2016 में ऐसा बिल लाया गया था, लेकिन राष्ट्रपति की मंजूरी न मिल पाने से ये कानून में तब्दील नहीं हो पाया. हालांकि पहले के विधेयकों में सिर्फ गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान से जुड़े मामलों में ही सजा का प्रावधान था. केंद्र सरकार ने संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के अनुसार, सभी धर्मों के ऐसे मामलों से जुड़ा विधेयक लाने की बात कहते हुए इसे वापस कर दिया था. हालांकि अमरिंदर सरकार ने 2018 में जो विधेयक पारित किया था, उसमें श्री गुरु ग्रंथ साहिब, भगवद् गीता के साथ कुरान और बाइबिल को भी इसमें शामिल किया था. हालांकि केंद्र सरकार ने भारतीय न्याय संहिता में बदलावों के अनुसार इसे दोबारा तैयार करने की बात कहते हुए इसे वापस कर दिया था.