सरकारी बैंकों (Public Sector Banks - PSBs) ने पिछले पांच वित्तीय वर्षों और चालू वित्त वर्ष (सितंबर 2025 तक) में कुल मिलाकर ₹6.15 लाख करोड़ रुपये के लोन को अपनी बही-खातों से हटा दिया है, यानी राइट ऑफ कर दिया है. यह जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से सामने आई है.
क्या हैं बड़ी बातें?
- वित्तीय वर्ष 2020-21 में सबसे अधिक ₹1.33 लाख करोड़ रुपये के लोन राइट ऑफ किए गए थे.
- पिछले पांच सालों में, बैंकों राइट ऑफ किए गए इन लोनों में से केवल ₹1.65 लाख करोड़ रुपये ही वापस वसूल पाए हैं.
- बैंकों का वित्तीय प्रदर्शन बेहतर होने की वजह से केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के बाद से इन बैंकों को कोई नई कैपिटल नहीं दी है.
'राइट-ऑफ' का क्या है?
राज्य वित्त मंत्री पंकज चौधरी ने संसद में बताया कि लोन को 'राइट ऑफ' करना लोन वेवियर नहीं है. जब कोई लोन NPA बन जाता है और उसकी वसूली की उम्मीद कम हो जाती है, तो बैंक RBI के नियमों के तहत 4 साल बाद उसे अपनी बैलेंस शीट से हटा देते हैं. यह सिर्फ अकाउंटिंग का एक तरीका है ताकि बैंकों की बैलेंस शीट साफ दिखे और उन्हें टैक्स में फायदा मिल सके. राइट ऑफ होने के बावजूद भी कर्ज लेने वाला व्यक्ति या कंपनी उस लोन को चुकाने के लिए पूरी तरह जिम्मेदार बना रहता है. बैंक इन लोनों को वसूलने के लिए कानूनी कार्रवाई करते रहते हैं, जैसे कि सिविल कोर्ट, DRT और NCLT में केस करना. जब वसूली होती है तो उसे बैंक की इनकम माना जाता है.
बैंक अब खुद कमा रहे हैं पैसा
सरकार ने कैपिटल देना बंद कर दिया है, इसलिए सरकारी बैंक अब अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजार से पैसा जुटा रहे हैं. अप्रैल 2022 से सितंबर 2025 के बीच बैंकों ने शेयर और बॉन्ड जारी करके ₹1.79 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं. सरकार ने कहा है कि अब बैंक अब आंतरिक कमाई और बाजार से फंडिंग पर निर्भर हैं.














