प्रधानमंत्री मोदी यूएई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में हिस्सा लेंगे: सूत्र

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव वार्षिक जलवायु वार्ता (सीओपी28) के 28वें सत्र के उच्च स्तरीय कार्यक्रमों और गोलमेज बैठकों में भी भाग लेंगे, जिसमें जलवायु लक्ष्यों के लिए वित्त, उत्सर्जन में कमी, जलवायु प्रभावों के अनुकूलन और समावेशिता के साथ हरित अर्थव्यवस्था में बदलाव शामिल है.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक नवंबर को दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में हिस्सा लेंगे और भारत की जलवायु कार्रवाई को रेखांकित करते हुए एक राष्ट्रीय रुपरेखा प्रस्तुत करेंगे. एक सूत्र ने बताया कि प्रधानमंत्री 30 नवंबर को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) पहुंचेंगे और एक दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र के विश्व जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन के दौरान भारत का पक्ष रखेंगे. वह उसी दिन स्वदेश लौट आएंगे.

एक से दो दिसंबर को होने वाले विश्व जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में विभिन्न देशों की सरकारों के प्रमुख, नागरिक समाज, व्यापार, युवाओं, विभिन्न संगठन व समुदाय, विज्ञान और अन्य क्षेत्रों के नेता जलवायु कार्रवाई को बढ़ाने के उद्देश्य से कार्यों और योजनाओं पर चर्चा करेंगे.

मोदी ‘लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट' (एलआईएफई आंदोलन) यानी ‘पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली' पर लगातार जोर दे रहे हैं और देशों से आग्रह कर रहे हैं कि वे ग्रह के अनुकूल जीवन शैली अपनाएं और गहरे उपभोक्तावादी व्यवहार से दूर रहें.

जलवायु कार्रवाई के लिए इस दशक (2021-2030) की महत्ता को पहचानते हुए, ग्लोबल नॉर्थ और साउथ के बीच खपत पैटर्न को फिर से संतुलित करने का आह्वान किया गया है.

उत्सर्जन में अंतर और देशों में ग्लोबल वार्मिंग में योगदान स्पष्ट हैं. उदाहरण के लिए, अमेरिका वर्तमान वैश्विक आबादी का केवल 4 प्रतिशत है, इसने 1850 और 2021 के बीच वैश्विक उत्सर्जन में 17 प्रतिशत का योगदान दिया. इसके विपरीत, भारत, जो दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, ने आज तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में केवल 5 प्रतिशत का योगदान दिया है.

स्वतंत्र सहायता संगठनों के समूह ऑक्सफैम इंटरनेशनल के अनुसार, दुनिया के सबसे धनी 10 प्रतिशत 2015 में वैश्विक उत्सर्जन के लगभग आधे के लिए जिम्मेदार थे. PM मोदी ने 2021 में ग्लासगो जलवायु वार्ता में भाग लिया था और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत की रणनीति की घोषणा की थी.

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पिछले साल अगस्त में, भारत ने 2015 के पेरिस समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या राष्ट्र कार्य योजना को आगे बढ़ाया, विशेष रूप से ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे और करीब 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य तय किया.

भारत के अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) का लक्ष्य 2005 के स्तर से 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करना और 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से 50 प्रतिशत संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करना है.

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केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव वार्षिक जलवायु वार्ता (सीओपी28) के 28वें सत्र के उच्च स्तरीय कार्यक्रमों और गोलमेज बैठकों में भी भाग लेंगे, जिसमें जलवायु लक्ष्यों के लिए वित्त, उत्सर्जन में कमी, जलवायु प्रभावों के अनुकूलन और समावेशिता के साथ हरित अर्थव्यवस्था में बदलाव शामिल है.

संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में 30 नवंबर से 12 दिसंबर तक होने वाले कोप28 में पहली बार ‘ग्लोबल स्टॉकटेक' का समापन होगा, जो पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सामूहिक प्रगति की आवधिक समीक्षा होगी.

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यह आकलन 2025 तक आगामी जलवायु कार्य योजनाओं या एनडीसी को आकार देगा. जलवायु सम्मेलन में इस बात पर गहन बातचीत हो सकती है कि जलवायु प्रभावों के लिए विकासशील और गरीब देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए फंड कैसे काम करना चाहिए. साथ ही अनुकूलन के लिए वित्त पोषण पर चर्चा हो सकती है.

कुछ देशों, विशेष रूप से यूरोपीय संघ, कोप28 में बेरोकटोक जीवाश्म ईंधन को समाप्त करने के लिए एक वैश्विक समझौते पर जोर दे सकते हैं. जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को 2019 के स्तर से 43 प्रतिशत नीचे लाने की आवश्यकता है, जो बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन के जलने से जीएचजी उत्सर्जन के कारण होता है.
 

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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