बिहार चुनाव में जमीन पर क्या कमाल दिखा पाएगी प्रशांत किशोर की जन सुराज

बिहार चुनाव में भले ही महागठबंधन बनाम एनडीए का मुकाबला बताया जा रहा हो, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की है. वो क्या टर्निंग प्वाइंट साबित होंगे?

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Bihar Election 2025
पटना:

जनसुराज और प्रशांत किशोर की एक जबरदस्त समर्थक महिला से मैंने पूछा कि मतदान के ठीक पहले आप अपना रुख क्यों बदल दिया तो उन्होंने कहा कि इन्हें अभी और तपस्या की जरूरत है और बोली में अहंकार की कमी लानी होगी.अपनी पदयात्रा के शुरू से ही लालू , तेजस्वी , मोदी , नीतीश पर हमलावर रहने वाले प्रशांत किशोर बहुत तेजी से जनता का ध्यान अपनी ओर खींच पाए और खासकर बिहार के जमीनी मुद्दों की बातें कीं.

इसमे नौकरी , शिक्षा के साथ साथ पलायन भी रहा . उनकी बोली में हमला था , तीखा था और एक घमंड भी था की सिर्फ वही दूध के धुले हैं. लोगों ने उनकी बातें सुनी, लेकिन तमाम तीखे और हमलावर भाषण के बाद उनके पास क्षेत्र के हिसाब से उम्मीदवार और दल का ढांचा नहीं था जिसका खामियाजा उन्हें इस चुनाव में नजर आ रहा होगा.

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सोशल मीडिया पर हजारों आईडी और पेज से उनके भाषण के क्लिप , रील और वीडियो लगभग हर एक मतदाता तक पहुंचा होगा . शायद उनकी यूएसपी भी यही रही है . उनके पिछले कामों को देखें तो भाजपा , लालू , नीतीश , कांग्रेस के लिए उन्होंने जब कभी काम किया तो वह प्रचार की स्ट्रेटजी तक ही सीमित रहा . दल निर्माण में उनका अनुभव शून्य ही रहा. उम्मीदवार चयन में भी अनुभव शून्य ही रहा तो यह शून्य अनुभव उनके स्वयं दल में भी नजर आया. अभी तक कुल 4 इनके प्रत्याशी बैठ गए हैं, इससे आम जनता में एक गलत संदेश दिया.

अमिताभ बच्चन शैली में यंग एंग्रीमैन की छवि , बढ़िया डायलॉग के साथ वीडियो फॉर्मेट में तो बहुत लुभाता है लेकिन जमीन पर वस्तुस्थिति कुछ अलग होती है . कुछ अलग ही नहीं बल्कि बल्कि बहुत अलग होती है . इंदिरा जी की हत्या के लहर से उपजी सहानभूति और अपनी लोकप्रियता से स्वयं अमिताभ बच्चन इलाहाबाद का चुनाव जीत गए लेकिन राजनीति में टिक नहीं पाए .

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जायसवाल , चौधरी जैसे नेताओं पर तेज हमला के बाद अचानक मौन हो जाना भी लोगों को अखर गया. नई पीढ़ी के लिए तेजस्वी ख़ुद टी शर्ट में घूम रहे हैं तो प्रशांत किशोर सिवाय भाषण कोई ठोस और उपाय लेकर नहीं आए . सिनेमा में रातों रात झोपड़ी महल में बदल जाता है लेकिन असल ज़िंदगी में एक झोपड़ी को महल में बदलने में तीन पीढ़ी का ख़ून स्वाहा हो जाता है .

मेरी नज़र में प्रशांत किशोर फिल्मी अंदाज़ में ही ज्यादा दिखे हैं . बिहार एक अत्यंत जागरूक राजनीतिक राज्य है, जहां हर मतदाता पहले नेता और बाद में मतदाता होता है. इस परिस्थिति में उन्हें अपने दल के संगठन को मजबूत करने की जरूरत हैं. बढ़िया डॉक्टर, बढ़िया वकील एक बढ़िया राजनेता हो जाए, यह आकलन हम उनके पेशे की सफलता से नहीं लगा सकते.

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लेकिन कई सीटों पर ट्रेंड यह जोरदार ढंग से मौजूद हैं . 243 की जगह वो पहले चुनाव सिर्फ 50 सीटों पर लड़ते तो चुनाव बाद वो बाकी के दलों से सियासी मोलभाव की क्षमता में रहते. लेकिन लोकतंत्र में जनता मालिक है और निर्णय क्या हुआ वह 14 नवंबर के दोपहर 12 बजे पता चल जाएगा.

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