पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट के बावजूद दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का संकट जारी, ये है वजह

सीएसई के प्रोग्राम डायरेक्टर निवित यादव ने एनडीटीवी से कहा कि थर्मल पावर प्लांट दिल्ली-एनसीआर की हवा में कुल प्रदूषण लोड का अनुमानित 8 प्रतिशत पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) कंट्रीब्यूट कर रहे हैं.

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नई दिल्ली:

तमाम कोशिशों के बावजूद दिल्ली-एनसीआर इलाके में प्रदूषण का संकट बना हुआ है. इसकी सबसे बड़ी वजह वो लाखों गाड़ियां हैं, जिनसे निकलने वाला धुंआ दिल्ली की हवा को ज़हरीला बनाये हुए है. इस बीच सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने अपनी ताज़ा रिसर्च रिपोर्ट में खुलासा किया है कि कोयले से चलने वाले थर्मल पावर प्लांट्स प्रदूषण के तय मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं और दिल्ली एनसीआर के कुल पॉल्युशन लोड में उनकी हिस्सेदारी 8% तक है.

पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले कुछ दिनों में काफी गिरावट आई है, क्योंकि फसल कटाई का सीजन धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. लेकिन दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषण संकट गंभीर बना हुआ है, क्योंकि प्रदूषण के दूसरे स्रोत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हवा को ज़हरीली बना रहे हैं.

प्रदूषण नियंत्रण के मानकों की अनदेखी कर रहे हैं थर्मल पावर प्लांट
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के इंडस्ट्रियल पॉल्युशन यूनिट द्वारा दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के आसपास के 300 किलोमीटर दायरे में स्थित 11 कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांटों के एक नए शोध अध्ययन में खुलासा हुआ है कि अधिकांश थर्मल पावर प्लांट प्रदूषण नियंत्रण के मानकों की अनदेखी कर रहे हैं.

सीएसई के प्रोग्राम डायरेक्टर निवित यादव ने एनडीटीवी से कहा कि थर्मल पावर प्लांट दिल्ली-एनसीआर की हवा में कुल प्रदूषण लोड का अनुमानित 8 प्रतिशत पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) कंट्रीब्यूट कर रहे हैं.

सीएसई की जांच रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर के आसपास स्थित 11 थर्मल पावर प्लांटों में से केवल दो में सल्फर डाइऑक्साइड  (SO2) control measures हैं. इनमें केवल एक ही SO2 emission standards को पूरा करता है. 11 में से तीन थर्मल पावर प्लांट तय मानक से अधिक PM का emission कर रहे हैं. 11 में से चार नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) के emission norms से अधिक emission कर रहे हैं. 11 में से पांच थर्मल पावर प्लांट्स सार्वजनिक डोमेन में डेटा रिपोर्टिंग सही तरीके से नहीं कर रहे हैं.

प्रदूषण विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी आने के बाद भी दिल्ली-एनसीआर में जारी प्रदूषण संकट का मुख्य कारण दिल्ली की सड़कों पर प्रतिदिन चलने वाले लाखों वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण है. आईआईटी कानपुर, आईआईटी दिल्ली और टीईआरआई के संयुक्त अध्ययन से पता चला है कि 9 नवंबर से 25 नवंबर, 2023 के बीच दिल्ली के प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान ट्रांसपोर्ट सेक्टर का था.

पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट
आईआईटी कानपुर, आईआईटी दिल्ली और टीईआरआई के शोधकर्ताओं द्वारा इकट्ठा किए गए  Real-Time Advanced Air Source Management Network data के मुताबिक सोमवार शाम को Daily PM2.5 level में वाहनों की हिस्सेदारी 29% थी, जो सभी प्रदूषण के कंट्रीब्युटर्स में सबसे अधिक थी. ये महत्वपूर्ण है कि पराली जलाने की घटनाओं में गिरावट के बावजूद सोमवार शाम को Biomass burning की हिस्सेदारी 25% दर्ज की गई.

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साफ है, आने वाले दिनों में प्रदूषण संकट से आम लोगों को कोई राहत मिलेगी. इसकी संभावना फिलहाल कम दिखाई देती है.

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