प्रधानमंत्री मोदी के वे अनुभव जिन्‍होंने उन्‍हें आदिवासियों के संघर्ष को समझने का दिया मौका

PM मोदी (PM Modi) ने ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के अवसर पर बिरसा मुंडा को नमन किया. मोदी आर्काइव नामक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पीएम मोदी के उन अनुभवों के बारे में जानकारी शेयर की गई, जिसने उन्‍हें आदिवासियों के संघर्ष को नजदीक से समझने का मौका दिया.

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नई दिल्ली:

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने बिरसा मुंडा के 150वें जयंती वर्ष के शुभारंभ कार्यक्रम में भाग लिया. उन्होंने जमुई की धरती से आदिवासी भाई-बहनों को संबोधित किया. पीएम मोदी ने ‘जनजातीय गौरव दिवस' के अवसर पर बिरसा मुंडा को नमन भी किया. इस अवसर पर मोदी आर्काइव नामक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पीएम मोदी के उन अनुभवों के बारे में जानकारी शेयर की गई जिसने प्रधानमंत्री को आदिवासी समुदायों के संघर्ष को नजदीक से समझने का मौका दिया था.  

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स 'पर शेयर की पोस्ट में मोदी आर्काइव ने जानकारी दी, "पीएम नरेंद्र मोदी के शुरुआती जीवन में उन्होंने दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में पैदल, साइकिल और मोटरसाइकिल से बहुत यात्राएं की. आज हम जनजातीय गौरव दिवस पर उनके उन अनुभवों को याद करते हैं, जिन्होंने उन्हें आदिवासी समुदायों के संघर्ष को नजदीक से समझने का मौका दिया और उन्हें उनके समग्र विकास के लिए मेहनत करने की प्रेरणा दी."

गरीबी और भूख की सच्‍चाई को महसूस किया 

पोस्ट की श्रंखला में आगे बताया गया कि एक यात्रा के दौरान, नरेंद्र मोदी एक छोटे गांव में एक स्वयंसेवक के घर गए, जहां वह अपनी पत्नी और छोटे बेटे के साथ रहते थे. स्वयंसेवक की पत्नी ने मोदी को आधी बाजरे की रोटी और दूध का कटोरा परोसा. मोदी ने देखा कि बच्चा दूध को बड़े ध्यान से देख रहा था. उन्होंने समझ लिया कि दूध बच्चे के लिए था. चूंकि मोदी पहले से ही नाश्ता कर चुके थे, उन्होंने केवल रोटी पानी के साथ खाई और दूध छोड़ दिया. बच्चा जल्दी से सारा दूध पी गया, और यह दृश्य देखकर मोदी भावुक हो गए. उसी क्षण मोदी ने गरीबी और भूख की सच्चाई को गहराई से महसूस किया.

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व्‍यावसायियों ने ब्‍लैंक चैक का किया था दान 

पोस्ट की सीरीज में आगे बताया गया कि 1980 के दशक की शुरुआत में, अहमदाबाद में वनवासी कल्याण आश्रम की नींव रखी जा रही थी और जनजातीय कल्याण के लिए फंड जुटाने का कार्यक्रम रखा गया था. शहर के कई प्रमुख व्यवसायियों को सहयोग देने का निमंत्रण भेजा गया था. नरेंद्र मोदी ने मंच पर आकर जनजातीय विकास की जरूरतों पर 90 मिनट का भावुक भाषण दिया. उनकी बातों ने सभी का दिल छू लिया और उनका भाषण इतना प्रभावशाली था कि कई व्यवसायियों ने बिना कोई राशि लिखे खाली चेक दान में दे दिए, क्योंकि उन्हें मोदी के दृष्टिकोण पर पूर्ण विश्वास था.

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इस भाषण से पहले 12 दिनों में मोदी ने आदिवासी चुनौतियों पर 50 से अधिक किताबें पढ़ी थी, जिससे वह इन मुद्दों को गहराई से समझा सके.

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सामाजिक समावेशिता पर पीएम मोदी का संदेश 

ऐसे ही साल 1985 में नरेंद्र मोदी ने एक दमदार भाषण दिया था जिसमें उन्होंने सवाल उठाया था कि आजादी के 38 साल बाद भी देश तमाम संसाधनों के बावजूद तरक्की क्यों नहीं कर पा रहा है. उन्होंने आदिवासी समुदायों के समक्ष आ रही चुनौतियों पर बात की और कहा कि हमें अपने अंदर झांकने और एक्शन लेने की जरूरत है.

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एक और पोस्ट में आगे समावेशिता और समानता जैसे शाश्वत गुणों पर बात की. पोस्ट में वर्ष 2000 की एक ऑडियो रिकॉर्डिंग शेयर की गई है जिसमें नरेंद्र मोदी सामाजिक समावेशिता पर चर्चा करते हैं. वह भगवान राम और माता शबरी का उल्लेख करते हैं. पोस्ट में बताया गया कि सांस्कृतिक विरासत का उपयोग करते हुए सामाजिक समावेशिता पर नरेंद्र मोदी का संदेश आज भी कायम है.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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