प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को विजयपुरा जिले में उत्तरी कर्नाटक के प्रसिद्ध ‘कोर्थी-कोल्हार दही' का स्वाद चखा था, जिसकी आपूर्ति बसवाना-बागवाड़ी विधानसभा क्षेत्र के कोल्हार तालुका से की गई थी. हालांकि इस क्षेत्र में डेयरी किसान चारे की भारी कमी का सामना कर रहे हैं और जीविका के लिए भैंस पालन जारी रखने में असमर्थ हैं. भैंस के दूध से बना और विशेष रूप से बनाए गए मिट्टी के बर्तन में जमाया हुआ ‘कोर्थी-कोल्हार दही' कर्नाटक में अपने जबरदस्त स्वाद और गाढ़ेपन के लिए लोकप्रिय है. यह दही कोल्हार में एक दशक से अधिक समय से बेचा जा रहा है और यह आधुनिक, प्रसंस्कृत दही की तुलना में स्वादिष्ट और सस्ता है.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और बी. सी. खंडूरी, बूटा सिंह, जे. पी. नड्डा और राजनाथ सिंह जैसे राष्ट्रीय नेताओं ने इस दही का स्वाद चखा है. हुबली-हुमनाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग-218 पर पर्यटक मिट्टी के बर्तनों में बिकने वाले और घर के बने इस दही का स्वाद लेने के लिए यहां रुकते हैं. राजशेखर मल्लिकार्जुन गुड्डूर ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘एक स्थानीय नेता ने मुझे कोर्थी-कोल्हार दही की आपूर्ति करने के लिए कहा और बताया कि इसे प्रधानमंत्री को उत्तरी कर्नाटक के व्यंजनों में से एक के रूप में परोसा जाएगा.''
राष्ट्रीय राजमार्ग-218 पर दही की दुकान चलाने वाले चौथी पीढ़ी के सदस्य गुड्डूर का कहना है कि जब प्रधानमंत्री ने उनकी दुकान पर दही चखी तो वह ‘‘बहुत खुश'' नजर आये. उन्होंने कहा कि इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग-218 पर ही इस विशेष दही की भारी मांग है, लेकिन इसकी आपूर्ति कम है. उन्होंने कहा कि कोल्हार शहर में कम दूध उत्पादन के कारण गांव में डेयरी उत्पादकों को दही बनाने में मुश्किल हो रही है.
उन्होंने कहा, ‘‘एक भैंस के लिए अच्छी गुणवत्ता और अधिक मात्रा में दूध देने के लिए चारा बहुत जरूरी है. डेयरी उत्पादकों को अपनी भैंसों के लिए गुणवत्तापूर्ण चारा प्राप्त करने में कठिनाई हो रही है और इसलिए वे अधिक पशुओं को नहीं पाल रहे हैं.'' गुड्डूर ने कहा कि इस दही को जो स्वादिष्ट बनाता है वह और कुछ नहीं बल्कि पौष्टिक चारा है जिसे भैंसें खाती हैं और जो अच्छी गुणवत्ता वाला दूध देने में मदद करता है जिससे दही बनाई जाती है.
डेयरी किसान हनुमंत न्यामागोंडा ने कहा, ‘‘पहले हम स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली कुछ दालों और मक्का की फसलों से बना चारा भैंसों को खिलाते थे. चरने के लिए पर्याप्त खुले मैदान हुआ करते थे. अब यह सब कम हो गया है. किसान केवल गन्ने जैसी व्यावसायिक फसलें उगा रहे हैं जिससे पशुओं के चरने के लिए कोई जगह नहीं बची है. इससे यहां चारे की किल्लत हो गई है.'' न्यामागोंडा कुछ साल पहले 10 भैंसों को पालते थे और अब अच्छी गुणवत्ता वाले चारे की व्यवस्था करने में कठिनाई के कारण उनके पास केवल चार ऐसे जानवर हैं.
डेयरी किसान-सह-स्थानीय पत्रकार परशुराम गनी ने कहा कि गन्ने के अवशेष सख्त होते हैं और भैंसों के चारे के रूप में उपयुक्त नहीं होते . फिर भी कई किसान इसे खिला रहे हैं जिससे दूध की गुणवत्ता खराब हो गई है. उन्होंने कहा कि एक और समस्या यह है कि जो लोग भैंस खरीदने के इच्छुक हैं, उन्हें कुछ योजनाओं के बावजूद वित्तीय मदद नहीं मिल पा रही है.
सरकारी पशु चिकित्सक एम. एन. पाटिल के अनुसार, कोल्हार शहर में 1,805 भैंस हैं, जबकि कोल्हार तालुका में लगभग 3,000 भैंस पाली जाती हैं. कर्नाटक दुग्ध महासंघ (केएमएफ) ‘कोल्हार दही' का विपणन कर रहा है, लेकिन डेयरी किसानों, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, की समस्याओं के समाधान के लिए और अधिक प्रयास किए जाने की जरूरत है. सौ वर्षीय बसव्वा कुम्हार ने कहा, ‘‘यहां कई मिट्टी के बर्तन बनाने वाले परिवार हैं जो कई पीढ़ियों से विशेष गुणवत्ता वाले मिट्टी के बर्तन बनाते आ रहे हैं. मैं 12 साल की उम्र से ये दही के बर्तन बना रहा हूं. अब, मेरे पोते इस परंपरा को जारी रखे हुए हैं.''
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