भारत की ग्रोथ में तुष्टिकरण की राजनीति बड़ी चुनौती...: राइजिंग भारत समिट में पीएम मोदी

पीएम मोदी ने राइजिंग भारत समिट में कहा कि अलग देश का विचार सामान्य मुस्लिम परिवारों का नहीं था बल्कि कुछ कट्टरपंथियों का था. जिसको कांग्रेस के कुछ नेताओं ने खाद पानी दिया, ताकि वे सत्ता के अकेले दावेदार बन सकें.

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नई दिल्ली:

पीएम मोदी ने नेटवर्क 18 के राइजिंग भारत समिट को संबोधित किया. इस समिट में पीएम मोदी ने कहा कि हमारे यहां दशकों तक एक प्रवृत्ति चली. राष्ट्रीय चुनौतियों को पहचानने के बजाय उन्हें राजनीतिक कालीन के नीचे छिपा दिया गया है. लेकिन अब समय आ गया है कि हम ऐसे मुद्दों से भी आंख ना चुराए. 21वीं सदी की पीढ़ियों को हम बीसवीं सदी की राजनीतिक भूलों का बोझ नहीं दे सकते हैं. भारत की ग्रोथ में तुष्टिकरण की राजनीति एक बहुत बड़ी चुनौती रही है.

वक्फ से जुड़ी डिबेट के मूल में तुष्टिकरण की राजनीति

अभी संसद में वक्फ से जुड़े कानून में संशोधन हुआ है. इस पर आपके नेटवर्क ने भी काफी चर्चा की है. यह जो वक्फ से जुड़ी डिबेट है इसके मूल में तुष्टिकरण की राजनीति है. यह तुष्टिकरण की राजनीति कोई नई नहीं. इसका बीज हमारे स्वतंत्रता संग्राम के समय ही बो दिया गया था. अब सोचिए, भारत से पहले भारत के साथ-साथ और हमारे बाद दुनिया में कई देश आज़ाद हुए हैं. लेकिन कितने देश ऐसे हैं जिनकी आज़ादी की शर्त विभाजन थी? कितने देश हैं जो आज़ादी के साथी टूट गए? भारत के साथ ही ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि उस समय राष्ट्र के हित से ऊपर सत्ता का मोह रख दिया गया.

अलग देश का विचार कट्टरपंथियों का था

अलग देश का विचार सामान्य मुस्लिम परिवारों का नहीं था बल्कि कुछ कट्टरपंथियों का था. जिसको कांग्रेस के कुछ नेताओं ने खाद पानी दिया, ताकि वे सत्ता के अकेले दावेदार बन सकें. साथियों तुष्टिकरण की इस राजनीति में कांग्रेस के हाथ सत्ता लगी वहीं कुछ कट्टरपंथी नेताओं को ताकत और दौलत मिली. लेकिन सवाल यह है, आम मुसलमान को क्या मिला? गरीब पासमांदा मुसलमान को क्या मिला, उसे मिली उपेक्षा, उसे मिली बेरोज़गारी और मुस्लिम महिलाओं को क्या मिला, उन्हें मिला शाह बानो जैसा अन्याय.

लोगों का हक कट्टरपंथियों की भेंट चढ़ा

जहां उनका संवैधानिक हक कट्टरपंथ की भेंट चढ़ गया. उन्हें मिला चुप रहने का आदेश, सवाल न पूछने का दबाव और कट्टरपंथियों को मिल गया खुला लाइसेंस, महिलाओं के अधिकारों को कुचलने का. तुष्टीकरण की राजनीति भारत की सोशल जस्टिस की मूल अवधारणा के पूरी तरह खिलाफ है. लेकिन कांग्नेस इसे वोट बैंक की राजनीति का हथियार बना दिया. 2013 में वक्फ कानून में किया गया संशोधन मुस्लिम कट्टरपंथियों और भूमाफियाओं को खुश करने का प्रयास था. इस कानून को ऐसा रूप दिया गया कि उसने संविधान के ऊपर खड़ा होने का भ्रम पैदा किया.

लोग बस कागज ही ढूंढते रह जाते थे...

जिस संविधान ने न्याय के रस्ते खोले, उन्हीं रास्तों को वक्त कानून ने संकुचित कर दिया गया और इसके दुष्परिणाम क्या हुए? कट्टरपंथियों और भूमाफियाओं के हौसले बुलंद हुए. केरल में ईसाई समाज के ग्रामीणों की ज़मीन पर वक्फ के दावे, हरियाणा में गुरुद्वारों की ज़मीन विवादों में, कर्नाटक में किसानों की ज़मीन पर दावा, कई राज्यों में गांव के गांव, हज़ारों हेक्टेयर ज़मीन अब LOC और कानूनी उलझनों में फंसी पड़ी है. मंदिर हो, चर्च हो, गुरुद्वारे हो, खेत हो, सरकारी जमीनें हों, किसी को भी अब भरोसा नहीं रह गया था कि उनकी ज़मीन उनकी ही रहेगी. सिर्फ एक नोटिसा आता था और लोग अपने ही घर और खेत के लिए काग़ज़ ढूंढते रह जाते थे.

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वक्फ पर बहस संसदीय इतिहास की दूसरी लंबी बहस

जो कानून न्याय के लिए था, वह डर का कारण बन गया. यह कैसा कानून था? मैं देश के संसद को सर्व समाज के हित में मुस्लिम समाज के हित में एक शानदार कानून बनाने के लिए बधाई देता हूं. अब वक्फ की पवित्र भावना की भी रक्षा होगी और गरीब, पासमांदा मुसलमान, महिला बच्चे, सबके हक भी महफ़ूज़ रहेंगे. वक्फ बिल पर हुई बहस हमारे संसदीय इतिहास की दूसरी सबसे लंबी डिबेट थी. यानी 75 साल में दूसरी सबसे लंबी डिबेट. इस बिल को लेकर दोनों सदनों को मिलाकर 16 घंटे चर्चा हुई. JPC की 38 बैठकें हुई. 128 घंटे चर्चा हुई. देश भर से लगभग एक करोड़ ऑनलाइन सुझाव आए. यह दिखाता है कि आज भारत में लोकतंत्र सिर्फ संसद की चार दीवारों तक सीमित नहीं है. हमारा लोकतंत्र जनभागीदारी से और अधिक मज़बूत हो रहा है.

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