पीलीभीत: 2 घंटे में बाघ का 3 पर हमला, वन विभाग की लापरवाही से 2 महीनों में 7 मौतें

ग्रामीणों का गुस्सा देख भाजपा विधायक, डीएम एएसपी को मौके पर पहुंचना पड़ा. बीते दो महीनों में बाघ के हमलों में 7 लोगों की मौत हो चुकी है. तीन दिन पहले भी एक किसान की जान गई थी.

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  • पीलीभीत के गांवों में दो घंटे के भीतर बाघ के हमले में तीन लोग घायल और एक महिला की मौत हो गई है.
  • बीते दो महीनों में बाघ के हमलों में कुल सात लोगों की जान जा चुकी है, जिससे स्थानीय लोगों में भारी डर और गुस्सा है.
  • वन विभाग ने अभी तक बाघ को पकड़ने या सुरक्षा इंतजाम करने में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.
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इन दिनों बाघ का आतंक मौत का साया बनकर पीलीभीत के गांवों पर मंडरा रहा है. जंगल से निकला शिकारी अब इंसानों को निशाना बना रहा है और हैरानी की बात ये है कि वन विभाग आंखें मूंदे बैठा है. ताजा मामला दिल दहला देने वाला है, जहां अलग-अलग दो गांव में दो घंटे में तीन लोगों पर हमला हुआ, जिसमें एक महिला की मौके पर ही मौत हो गई, वहीं दो गंभीर रूप से घायल हो गए हैं.

कई गांवों में फैली दहशत

न्यूरिया क्षेत्र के सैजन सहित कई गांव में बाघ के हमलों ने दहशत फैला दी है. ताजा हमला सैजन, मंडरिया गांव से जुड़ा है जहां सैजन की 50 वर्षीय तृष्णा देवी खेत गईं थी, तभी बाघ ने हमला कर दिया. हमले में तृष्णा देवी की मौके पर ही मौत हो गई.

लोगों का फूटा गुस्सा, थानों से बुलाई फोर्स

इसके अलावा मंडरिया गांव में भी बाघ ने हमला किया. 15 साल के नीलेश और एक महिला उसकी चपेट में आ गए. नीलेश ने साहस दिखाया, बाघ से भिड़ गया और किसी तरह अपनी जान बचाई, लेकिन गंभीर रूप से घायल हो गया. लगातार हो रही मौतों के बाद स्थानीय लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है, जिससे कई थानो की पुलिस फोर्स मौके पर बुलानी पड़ गई.

बाघ के हमले में 7 लोगों की गई जान

ग्रामीणों का गुस्सा देख भाजपा विधायक, डीएम एएसपी को मौके पर पहुंचना पड़ा. बीते दो महीनों में बाघ के हमलों में 7 लोगों की मौत हो चुकी है. तीन दिन पहले भी एक किसान की जान गई थी. इसके बावजूद वन विभाग न तो बाघ को पकड़ पाया, और न ही गांवों में कोई सुरक्षा इंतजाम किए गए.

कब जागेगा वन विभाग

गांव वालों का कहना है कि अगर जल्द कोई कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्हें खुद जंगल में उतरकर अपनी सुरक्षा करनी पड़ेगी. अब बड़ा सवाल ये है कि कब जागेगा वन विभाग और कब रुकेगा बाघ का ये खूनी खेल. ये सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, ये उस सिस्टम की नाकामी की तस्वीर है, जहां इंसानी जान की कीमत शायद जंगल के कानून से भी कम रह गई है.

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