सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व लोकसभा सदस्य मोहन डेलकर को साल 2021 में आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में 9 लोगों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने संबंधी मुंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली उनके बेटे की याचिका को खारिज कर दिया. मुंबई उच्च न्यायालय ने आठ सितंबर, 2022 को दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासक प्रफुल खोड़ा पटेल सहित नौ लोगों के खिलाफ मामला रद्द कर दिया था. केंद्र-शासित प्रदेश दमन- दीव के प्रशासक सहित 9 लोगों के खिलाफ दर्ज FIR रद्द ही रहेगी.
कोर्ट ने पिछली सुनवाई में सुरक्षित रखा था फैसला
चार अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला आज तक के लिए सुरक्षित रख लिया था. सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने दिवंगत सांसद के बेटे अभिनव डेलकर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मीनाक्षी अरोड़ा, राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और कुछ आरोपियों के वकील महेश जेठमलानी की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.
हाईकोर्ट ने रद्द कर दी थी एफआईआर
पीठ ने पक्षकारों के वकीलों से 8 अगस्त तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा था. हाईकोर्ट ने एक पूर्व सांसद मोहन डेलकर आत्महत्या मामले में केंद्र-शासित प्रदेश के प्रशासक सहित नौ लोगों के खिलाफ दर्ज FIR रद्द कर दी थी. यह FIR दादर एवं नगर हवेली से सात बार सांसद रह चुके डेलकर की मौत के बाद दर्ज की गई थी, जो 2021 में मुंबई के एक होटल में मृत पाए गए थे. डेलकर के कथित सुसाइड नोट में उत्पीड़न और धमकी का विस्तृत विवरण दिया गया था, जिसके कारण पुलिस ने शीर्ष नौकरशाहों और राजनीतिक हस्तियों सहित कई लोगों के खिलाफ कार्रवाई की थी.
क्या है पूरा मामला
दादरा और नगर हवेली से सात बार सांसद रहे 58 वर्षीय डेलकर 22 फरवरी, 2021 को दक्षिण मुंबई के मरीन ड्राइव के एक होटल के कमरे में मृत पाए गए थे. इस मामले में मुंबई पुलिस ने मार्च 2021 में केंद्र शासित प्रदेश दादर नगर हवेली और दमन-दीव के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल समेत 9 लोगों पर केस दर्ज किया था. 2022 में सांसद मोहन डेलकर को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया. कोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश दादरा नगर हवेली और दमन -दीव के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल समेत 9 लोगों के खिलाफ दर्ज FIR को खारिज कर दिया
हाईकोर्ट ने आरोपी की तरफ से दायर याचिकाओं को स्वीकार किया और पाया कि कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए पहली सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने के लिए यह एक उपयुक्त मामला था