शरद पवार (Sharad Pawar) के राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) अध्यक्ष पद से इस्तीफे ने महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल तो ला ही दिया है. इसके साथ ही इस फैसले ने पवार के गढ़ बारामती के लोगों को भी निशब्द कर दिया है. पांच दशक से भी ज्यादा समय से बारामती में एकछत्र राज करने वाले शरद पवार ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान तो बनाई ही. साथ ही विकास के कामों से बारामती को भी राष्ट्रीय पटल पर लाकर खड़ा कर दिया.
मुंबई से करीब 250 किलोमीटर दूर बारामती पुणे जिले की छोटी तहसील है. एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार का नाम आते ही बारामती का नाम अपने आप जेहन में आ जाता है. एक सहकारी चीनी मिल के मैनेजिंग डायरेक्टर के बेटे शरद पवार ने छात्र आंदोलन से अपनी राजनीति शुरू की. 27 साल की उम्र में ही वह विधायक बन गए थे. तब से उन्होंने कभी हार का मुंह नही देखा. शरद पवार राज्य के 4 बार मुख्यमंत्री बने. केंद्रीय मंत्री भी रहे, लेकिन बारामती से उनका नाता अटूट बना रहा. पवार के चुनाव से उनके साथ जुड़े वकील जगन्नाथ हिंगने के मुताबिक, शरद पवार उन सबके लिए स्वाभिमान और अस्मिता की बात हैं.
ऐसा नेता बारामती के लिए गर्व की बात
जगन्नाथ हिंगने ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा, "1967 में हम कॉलेज में पढ़ते थे. तब उनका पहला चुनाव हुआ. सब कॉलेज के युवा उनके पीछे खड़े रहे. उस बात को 50 साल से ज्यादा हो गए, लेकिन ऐसा नेता बारामती के लिए गर्व की बात है. जब उनका नाम कोई लेता है, तो हमारा सीना चौड़ा हो जाता है. उनका नाम और काम हमे प्रेरित करता है."
कृषि नेता की छवि बरकरार
शरद पवार ने बारामती में कृषि, उद्योग और सहकारिता का जाल बिछाकर समग्र विकास का काम किया है. इलाके में आज भी उनकी छवि एक बड़े कृषि नेता की है. शरद पवार के करीबी अशोक तांबे बताते हैं, "खेती के बारे में तो सभी किसान भाई उनपर निर्भर हैं. वो जो बोलेंगे वही सही होता है. खेती के बारे में उनका मार्गदर्शन बहुत उपयोगी होता है. किसानों के साथ उनका नाता बहुत बढ़िया है."
फैसले से दुखी हैं बारामती के लोग
शरद पवार के एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे के फैसले से बारामती के लोग भी हैरान और दुखी हैं. पवार के करीबी दोस्त जवाहर शाह बताते हैं, "पवार साहब कुछ भी निर्णय लेते थे, तो बातचीत करते थे. उन्होंने इस्तीफे का फैसला कैसे लिया, मुझे भी इस बारे में पता नहीं. टीवी पर न्यूज देखकर मैं भी हैरान रह गया. कुछ दोस्तों ने भी फोन किया. मैंने शाम को साहब को फोन किया, लेकिन उनका फोन बंद था.
एनसीपी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ही नहीं, बारामती के लोगों के लिए भी शरद पवार का एक शब्द उनके लिए आदेश की तरह होता है. कभी कोई उनका विरोध नहीं करता. लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के फैसले को कोई भी मानने को तैयार नहीं है. बहरहाल शरद पवार ने अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए दो से तीन दिन का वक्त मांगा है.
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