संसदीय समिति का सरकार से सवाल: 450 की दवा की कीमत बाजार में 3500 रुपये क्यों?

समिति ने अपनी सिफ़ारिश में कहा है कि NPPA यानि National Pharmaceutical Pricing Authority के पास काफ़ी अधिकार दिए गए हैं लेकिन कई मामलों में वो भी अपर्याप्त लगते हैं.

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  • संसद की स्थाई समिति ने दवाओं की बढ़ती क़ीमत और नियंत्रण की नीति के अभाव पर गंभीर चिंता जताई है
  • रिपोर्ट में बताया गया कि स्टॉकिस्ट की कीमत और बाजार में MRP के बीच आठ से नौ गुना तक का अंतर पाया गया है
  • समिति ने फार्मास्युटिकल विभाग से दवाओं की थोक और खुदरा क़ीमतों के अंतर की समीक्षा करने को कहा है
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दवाओं की ऊंची क़ीमत और उसको काबू करने की ठोस नीति के अभाव को लेकर संसद की स्थाई समिति ने चिंता जताई है. समिति का कहना है कि सरकार को दवाओं की बढ़ती क़ीमत पर लगाम लगाने के लिए Drugs Control Order Rules 2013 में बदलाव करने की ज़रूरत है. टीएमसी सांसद कीर्ति आज़ाद इस समिति के अध्यक्ष हैं.

रिपोर्ट में क्या

रसायन और उर्वरक मंत्रालय से जुड़ी संसदीय स्थाई समिति की इस रिपोर्ट में समिति ने इस बात पर चिंता और आश्चर्य व्यक्त किया है कि दवाओं की थोक क़ीमत और आम ग्राहकों के लिए MRP में इतना ज़्यादा अंतर कैसे हैं. रिपोर्ट में समिति ने सरकार से पूछा है कि कई दवाइयां स्टॉकिस्ट यानि थोक व्यापारी के पास जिस कीमत में आती हैं, वो खुले बाज़ार में आते-आते आठ से नौ गुणी महंगी हो जाती हैं. रिपोर्ट में कई ऐसे उदाहरण दिए गए हैं.

उदाहरण से साथ बताया

जैसे समिति का कहना है कि स्टॉकिस्ट को Ciprofloxin 500 mg और Tinidazole 600 mg 450 रुपये में उपलब्ध होता है, जबकि दोनों दवाइयों की MRP बाज़ार में 3500 रुपये तक पहुंच जाती है. वहीं Ibrufin स्टॉकिस्ट तक 831 रुपये में पहुंचती है, जबकि उसकी MRP 4560 रुपये हो जाती है. इसी तरह Labocof की क़ीमत स्टॉकिस्ट के पास 316 रुपये होती है और MRP 2850 रुपये तक पहुंच जाती है. समिति का कहना है कि क़ीमत में इतना अंतर समझ से परे है.

समीक्षा करने को कहा

कमिटी ने फार्मास्युटिकल विभाग से तुरंत इस मामले की समीक्षा करने को कहा ताकि PTS ( Price to Stockist ) और MRP के बीच के अंतर को कम किया जा सके. रिपोर्ट में एक अध्ययन करके ऐसी सभी दवाइयों की सूची तैयार करने की सिफ़ारिश की गई है, जिनकी थोक और खुदरा कीमत में ज़मीन आसमान का फ़र्क है.

समिति की सिफ़ारिश

समिति ने अपनी सिफ़ारिश में कहा है कि NPPA यानि National Pharmaceutical Pricing Authority के पास काफ़ी अधिकार दिए गए हैं लेकिन कई मामलों में वो भी अपर्याप्त लगते हैं और इसलिए इन्हें और ज़्यादा अधिकार दिए जाने की ज़रूरत है. NPPA देश में दवाओं की क़ीमत की निगरानी करने और उन्हें नियंत्रण में रखने के लिए उत्तरदायी संस्था है. 2012 में बनी National Pharmaceutical Pricing Policy बनाई गई थी, जिसमें दवाओं की क़ीमत को काबू में रखने के लिए नियम बनाए गए थे.

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