एक के बाद एक हंगामे की भेंट चढ़ते संसद सत्र के बीच हालिया शीतकालीन सत्र से मिले शुभ संकेत

ऐसे द़ृश्य 18वीं लोक सभा में पहली बार दिखे, जब सदन में सार्थक चर्चा और सदन के बाहर पक्ष-विपक्ष में एकदूसरे का सम्मान और आदर नजर आया.

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  • संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार और विपक्ष में कई मुद्दों पर सहमति बनी और गतिरोध सुलझाया गया
  • स्पीकर ओम बिरला की पहल पर चुनाव सुधार पर चर्चा हुई और वंदे मातरम पर भी विपक्ष ने सहमति दिखाई
  • सत्र के समापन पर विपक्ष और सरकार के बीच चाय पार्टी में सौहार्दपूर्ण माहौल बना और सार्थक चर्चा हुई
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नई दिल्ली:

संसद के शीतकालीन सत्र की खास बात सरकार और विपक्ष के बीच कई मुद्दों पर सहमति बनना और कड़वाहट दूर होना रही. ऐसे कई अवसर आए, जब गतिरोध को आपसी बातचीत और सहमति से सुलझाया गया. यही कारण है कि इस सत्र में न केवल कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित हुए बल्कि ज्वलंत मुद्दों पर खुले मन से चर्चा भी हुई.

NDA में बिहार विजय का आत्मविश्वास 

यह सत्र छोटा था, केवल तीन सप्ताह का. सत्र आरंभ होने से पहले ही एनडीए बिहार की प्रचंड विजय के बाद आत्मविश्वास से भरपूर था. ऐसा लग रहा था कि बिहार में महागठबंधन की करारी हार के बाद मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर राहुल गांधी के ‘वोट चोरी' अभियान की हवा निकल चुकी है, लिहाज़ा विपक्ष इस मुद्दे पर नरम रहेगा. पिछला मॉनसून सत्र इसी मुद्दे पर धुल गया था. 

सरकार के तेवरों में भी दिखी नरमी

दूसरी ओर सरकार ने भी अपने तेवरों में नरमी के संकेत दिए थे. सरकार कहती आ रही है कि एसआईआर पर चर्चा नहीं हो सकती क्योंकि यह चुनाव आयोग का प्रशासनिक कदम है. इसी कारण पिछले सत्र में गतिरोध बना था. लेकिन इस बार सत्र शुरू होने से पहले ही संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि चुनाव सुधार पर चर्चा हो सकती है, जिसमें विपक्ष एसआईआर का मुद्दा भी ला सकता है.

स्पीकर की पहल पर सुलझा गतिरोध

गतिरोध सुलझाने की यह एक बड़ी पहल थी. हालांकि सत्र शुरू होने पर शुरुआती कुछ दिनों तक गतिरोध बना रहा, लेकिन स्पीकर ओम बिरला की पहल से हुई सर्वदलीय बैठक में गतिरोध सुलझा और एसआईआर के बजाए चुनाव सुधार पर चर्चा कराने का निर्णय हुआ. सरकार कह चुकी थी कि इससे पहले वंदे मातरम के 150 वर्ष पर चर्चा होगी, जिसके लिए विपक्ष भी तैयार हो गया.

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विपक्ष की सहमति की क्या रही वजह?

जब एक वरिष्ठ मंत्री से पूछा गया कि बिहार की जीत के बावजूद सरकार क्यों तैयार हो गई और यही चर्चा मॉनसून सत्र में क्यों नहीं कराई गई तो उनका कहना था कि लोकतंत्र में विपक्ष को भी स्पेस मिलना चाहिए. इसी भावना के तहत यह फ़ैसला किया गया. वैसे यह भी कहा गया कि संसदीय कार्य मंत्री की पेशकश के कारण ही चर्चा के लिए सहमति बन सकी.

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सरकार ने भी कदम पीछे खींचे

इस सत्र की शुरुआत से पहले ही सरकार ने चंडीगढ़ यूटी पर बिल को लेकर स्पष्टीकरण दे दिया था. सूचीबद्ध होने के बावजूद सरकार ने इसे न लाने का फ़ैसला किया था क्योंकि इसे लेकर विपक्ष आक्रामक था और ख़ुद पंजाब बीजेपी के मन में इसे लेकर सवाल थे. इसी तरह संचार साथी ऐप को लेकर भी सरकार ने कदम पीछे खींचे थे. इसका अर्थ यही था कि खुद सरकार भी टकराव के बजाए चर्चा और सहमति के रास्ते पर चलना चाह रही थी. यही मंशा पीएम मोदी ने सत्र की शुरुआत से पहले जाहिर की थी और कहा था कि संसद में ड्रामा नहीं होना चाहिए और नए सांसदों को मौक़ा मिलना चाहिए.

अहम बिल पास, प्रमुख मुद्दों पर चर्चा

यही कारण है कि संसद में पहले वंदे मातरम और उसके बाद चुनाव सुधार पर लंबी चर्चा हुई. वंदे मातरम् पर चर्चा की शुरुआत पीएम मोदी ने की और इसमें कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी वाड्रा प्रभावी ढंग से बोलीं. वहीं चुनाव सुधार पर राहुल गांधी के एसआईआर और चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर उठाए गए सवालों का गृह मंत्री अमित शाह ने दमदार ढंग से जवाब दिया. यही नहीं, एटमी ऊर्जा और विकसित भारत जी राम जी बिलों पर भी दोनों सदनों में सार्थक बहस हुई. जी राम जी बिल दोनों ही सदनों में आधी रात के बाद पारित हुआ. 

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'जी राम जी' बिल पर विपक्ष को दिखा मौका 

यह जरूर है कि जी राम जी बिल पर विपक्ष को सरकार के खिलाफ संसद के बाहर सड़क पर भी मोर्चा खोलने का अवसर दिख रहा है. इसीलिए विपक्ष इसे लेकर संसद में बेहद आक्रामक रहा. लोक सभा में बिल के कागज फाड़कर फेंके गए, जिसे लेकर स्पीकर ने क्षोभ व्यक्त किया. विपक्ष की मांग थी कि इसे संसदीय समिति के पास भेजा जाए. लेकिन सरकार इसे 1 अप्रैल से लागू करना चाहती है, लिहाजा इसे पारित कराया गया.

चाय पार्टी में कड़वाहट में घुली मिठास

वैसे जी राम जी पर सदन में दिखा तनाव और कड़वाहट स्पीकर ओम बिरला के कक्ष में सत्र के समापन के बाद हुई चाय पार्टी में मिठास में बदलती नजर आई. विपक्ष 2014 के बाद से ही इन चाय पार्टियों का बहिष्कार करता आया है. लेकिन इस बार राहुल गांधी की गैरमौजूदगी में प्रियंका ने कमान संभाली. वह न केवल चाय पार्टी में अन्य विपक्षी नेताओं के साथ आईं बल्कि हल्के-फुल्के अंदाज में पीएम मोदी से हंसी-ठिठोली भी की, चाहे तमिल में कांग्रेस को वोट देना का नारा हो या वायनाड की हल्दी. पीएम के विदेश दौरे के बारे में भी पूछा और पीएम ने नारेबाजी के बाद विपक्षी सांसदों के गले की हालत पर चिंता जताई. 

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सार्थक चर्चा और आदर-सम्मान 

ऐसे द़ृश्य 18वीं लोक सभा में पहली बार दिखे, जब सदन में सार्थक चर्चा और सदन के बाहर पक्ष-विपक्ष में एकदूसरे का सम्मान और आदर नजर आया. इससे पहले परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के संसदीय कक्ष में प्रियंका की मुलाक़ात की भी खूब चर्चा हुई, जिसमें गडकरी ने उन्हें यूट्यूब देखकर बनाई गई चावल की खास डिश खिलाई थी.

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विपक्ष ने की आसन की प्रशंसा

विपक्ष ने इस बार दोनों सदनों के आसन की जमकर प्रशंसा की. राज्य सभा में जगदीप धनखड़ की विदाई के बाद नए सभापति सी पी राधाकृष्णन ने सफलतापूर्वक संचालन किया. विपक्ष को अवसर मिला और पिछले सत्रों की तरह आसन और विपक्ष के बीच तकरार नहीं दिखी. उधर लोक सभा में स्पीकर ओम बिरला कई अवसरों पर विपक्ष को मौका देते नजर आए. विपक्ष ने चाय पार्टी में शामिल होते समय भी यह बात कही. 

अमित शाह और प्रियंका ने खींचा ध्यान

वैसे विपक्ष कहता आया है कि सदन में गतिरोध और हंगामा भी संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा है. परंतु इस बार यह सुखद परिवर्तन दिखा कि संसद में सार्थक चर्चा भी हुई. कई नए सांसदों को पहली बार बोलने का मौका मिला. शून्य काल में अपने संसदीय क्षेत्रों के मुद्दों को उठाने का अवसर भी मिला. कांग्रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा के व्यवहार और वाकपटुता ने सबका ध्यान खींचा तो बुखार से तपने के बावजूद राहुल गांधी के आरोपों की एक-एक कर धज्जियां उड़ाते हुए अमित शाह को भी देश ने संसद के माध्यम से देखा. इस शीतकालीन सत्र ने यह बड़ा संदेश दिया है कि संसद में चर्चा और बहस ही लोकतंत्र को मजबूत कर सकती है. 

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