अमृतपाल सिंह (Amritpal Singh) को वापस भारत भेजने के पीछे पाकिस्तान (Pakistan) की खुफिया एजेंसी आईएसआई का दिमाग है, जिसका उद्देश्य विदेशी सिख अलगाववादियों की मदद से पंजाब में एक बार फिर आतंकवाद को पुनर्जीवित करना है. अधिकारियों ने यह बात कही है. उन्होंने बताया कि करीब 30 साल का अमृतपाल सिंह दुबई में एक ट्रक ड्राइवर था, जिसके बाद आईएसआई ने भारत से बाहर स्थित खालिस्तान समर्थकों की मदद से उसे चरमपंथी बनाया ताकि वह पंजाब को फिर से आतंकवाद के काले दिनों में धकेल सके.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को धमकी देते हुए यह कट्टरपंथी सिख उपदेशक खुले आम भारत से अलगाव और खालिस्तान बनाने के बारे में बयान दे रहा था. साथ ही उसने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के बारे में बात की, जिनकी आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी.
इंदिरा गांधी को उनके ही सुरक्षाकर्मियों ने गोली मार दी थी, जबकि बेअंत सिंह की दिलावर सिंह ने हत्या कर दी थी, जिसने मानव बम के रूप में काम किया. कट्टरपंथी उपदेशक ने दावा किया कि पंजाब के मौजूदा परिदृश्य में कई दिलावर तैयार थे.
इस साल के गणतंत्र दिवस पर तरनतारन में रैली हो या मीडिया साक्षात्कार, उन्होंने अलगाववाद और खालिस्तान के गठन का खुलकर समर्थन किया.
अधिकारियों ने कहा कि उसने सिख युवकों को लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकारों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का सहारा लेने के लिए उकसाया, ताकि ‘खालिस्तान‘ के गठन के ‘अंतिम लक्ष्य‘ को हासिल करने के लिए कथित तौर पर भेदभावपूर्ण व्यवहार का विरोध किया जा सके.
इसके साथ ही मोगा जिले के रोड में एक समारोह के दौरान अमृतपाल सिंह ने कहा था कि गैर-सिखों द्वारा संचालित सरकारों को पंजाब के लोगों पर शासन करने का कोई अधिकार नहीं है और पंजाब के लोगों पर केवल सिखों का शासन होना चाहिए.
साथ ही अमृतपाल सिंह 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मारे गए आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले की तर्ज पर अपने पहनावे, तौर-तरीकों, सशस्त्र अंगरक्षक रखने और धर्म की ढाल लेकर खुद को पेश कर रहा है.
अमृतपाल सिंह फिलहाल फरार है. उस पर आरोप है कि उसके लखबीर सिंह रोडे के साथ संबंध हैं, जो इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन का प्रमुख हैं. रोडे भारत में हथियारों की तस्करी (आरडीएक्स विस्फोटक सहित), नई दिल्ली में नेताओं पर हमले और पंजाब में नफरत फैलाने के आरोप में वांछित है.
उसकी हरकतों पर नजर रखते हुए अधिकारियों ने कहा कि दुबई में रहने के दौरान अमृतपाल सिंह रोडे के भाई जसवंत के संपर्क में था. आईएसआई के कहने पर पंजाब लौटने के बाद सिंह ने अपना संगठन स्थापित करने के लिए अमृत संचार की मदद ली. उन्होंने कहा कि बाद में उसने ‘खालसा वहीर‘ नाम से एक अभियान की शुरुआत की और गांवों में जाकर अपने संगठन को मजबूत किया.
उसने पंजाब के मुद्दों को भड़काया और धर्म का हवाला देकर सिखों को सरकार के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया.
एक सूत्र ने कहा, ‘समाज के निचले तबके और लक्ष्यहीन युवा सिंह का आसान लक्ष्य बन गए और उन्होंने धर्म के नाम पर भावनाओं का शोषण शुरू कर दिया.‘
अधिकारियों ने आरोप लगाया कि सिख युवाओं को धर्म से जोड़ने के लिए अमृतपान समारोह आयोजित करने के नाम पर उसका प्रयास असंतुष्ट युवाओं की एक सेना बनाने का था, जो राज्य का मुकाबला करने के लिए तैयार थे.
उन्होंने कहा कि गुरुद्वारे जैसे पवित्र स्थानों की पवित्रता को ध्यान में नहीं रखते हुए, उनकी तथाकथित सेना ने बुजुर्गों और विकलांग लोगों के बैठने के लिए कुछ फर्नीचर रखने के लिए दो गुरुद्वारों में तोड़फोड़ की.
अधिकारियों के अनुसार, उसका मुख्य उद्देश्य पंजाब को उग्रवाद के काले दशकों की ओर धकेलना था, जिसे बड़ी कठिनाई और कई बलिदानों से दूर किया गया है.
अधिकारियों ने दावा किया कि सिंह के नेतृत्व वाले संगठन को पाकिस्तान से धन मिल रहा था.
कट्टरपंथी सिख उपदेशक ने अपने चाचा हरजीत सिंह की मदद से वारिस पंजाब दे के खातों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था, इस प्रकार यह एक परिवार द्वारा संचालित संगठन बन गया.
उन्होंने कहा कि तथाकथित उपदेशक अपने निजी हितों के लिए फरवरी के आंदोलन के दौरान श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का इस्तेमाल कर रहे थे और इसे एक तरह की ईशनिंदा माना जाता था.
सिंह के इस कृत्य की पूरे सिख समुदाय ने निंदा की और इस घटना के बाद श्री अकाल तख्त साहिब ने एक समिति गठित की और मामले की जांच के आदेश दिए.
अधिकारियों ने आरोप लगाया कि सिंह जत्थेदार अकाल तख्त गए और उन्हें चुप रहने की धमकी दी.
सिंह ने एक बयान में कहा था कि अजनाला की घटना ‘हिंसा नहीं‘ है और भविष्य में ‘असली हिंसा‘ करने की धमकी भी दी थी.
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