झूठ का 'पुलिंदा' पाकिस्तान! पढ़ें करगिल से लेकर पुलवामा तक कब-कब बेपर्दा हुआ PAK

पाकिस्तान के हुकमरानों ने बीते कुछ वर्षों में समय-समय पर भारत के खिलाफ किए गए साजिशों को कबूला है. चाहे बात पुलवामा की हो या फिर मुंबई में हुए हमले की, पाकिस्तान ने साफ तौर पर माना है कि इसके पीछे उसका हाथ रहा है.

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नई दिल्ली:

भीतरघात करने वाले किसी पड़ोसी को अपना दोस्त मानने से ज्यादा अच्छा होता है कि आप उसे ताउम्र अपना दुश्मन मानकर चलें. पाकिस्तान का भी हाल कुछ ऐसा ही है. 1999 में हुए करगिल युद्ध को लेकर पाकिस्तान की सेना ने जो बात कबूली है वो इस बात को पुख्ता करती है कि अगर आपके पड़ोस में पाकिस्तान जैसा देश हो तो उससे दोस्ती करने से कहीं ज्यादा बेहतर होगा कि आप उससे ताउम्र दुश्मनी ही निभाएं.करगिल युद्ध में भारत ने अपने कई वीर सपूत खोए थे. उस दौरान जब भारत ने इस युद्ध के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया था तो पाकिस्तान ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से नकार दिया था. लेकिन अब जब इस युद्ध के हुए 25 साल बीत चुके हैं तो पाकिस्तानी सेना के बड़े अफसर ने पहली बार सार्वजनिक मंच पर ये माना है कि करगिल युद्ध में पाकिस्तानी आर्मी भी शामिल थी. 

पाकिस्तान सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) जनरल सैयद असीम मुनीर ने भारत के खिलाफ 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना की प्रत्यक्ष भूमिका को स्वीकार किया है. मुनीर ने शुक्रवार को अपने रक्षा दिवस भाषण में भारत के साथ तीन युद्धों के साथ-साथ कारगिल का भी जिक्र किया.भारत के खिलाफ पाकिस्तान द्वारा साजिश करने और उसे कबूलने का यह कोई पहला वाक्या नहीं है. चाहे बात करगलि की हो या फिर 26/11 में हुए मुंबई हमले की हो या फिर तालिबान को और ताकतवर करने की या फिर पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमले की. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर पाकिस्तान ने कब-कब भारत के खिलाफ अपनी साजिश को लेकर कबूला है. 

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जब अजमल कसाब का पता बताने पर नवाज शरीफ की हुई थी आलोचना

26/11 में हुए मुंबई हमले को लेकर पाकिस्तान के उस समय के गृह मंत्री शेख राशिद ने पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर बड़ा आरोप लगाया था. उन्होंने उस दौरान कहा था कि भारत को अजमल कसाब के परिवार और वो कहां से है इसका कभी पता नहीं चलता अगर नवाज शरीफ उन्हें उसका पता नहीं बताते. नवाज शरीफ ने ही भारत को अजमल कसाब का पता बताया था. शेख राशिद के इस बयान से भी ये साफ हो गया था कि अजमल कसाब मूल रूप से पाकिस्तान का ही रहने वाला था. आपको बता दें कि मुंबई हमले में कसाब ने अपने साथियों के साथ मिलकर मायानगरी में अलग-अलग जगहों पर हमला किया था. इन आतंकवादियों ने मुंबई के ताज होटल पर भी हमला किया था. बाद में कसाब को मुंबई पुलिस की टीम ने गिरफ्तार किया था.  

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तालिबान को बनाने में था बड़ा योगदान 

पाकिस्तान के मंत्री ने कुछ साल पहले ही तालिबान को स्थापित और ताकतवर करने में पाकिस्तान द्वारा की गई मदद का जिक्र भी किया था.उस दौरान पाकिस्तान सरकार खुद को तालिबान नेताओं का संरक्षक बताया था. साथ ही ये भी स्वीकार किया था कि इस्लामाबाद ने अपने देश में तालिबान विद्रोहियों को आश्रय दिया था और उनकी भरपूर मदद भी की थी. एक टीवी शो में, पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री शेख राशिद ने खुले तौर पर स्वीकार किया था कि इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान सरकार ने तालिबान नेताओं के लिए सब कुछ किया है, जो 20 साल बाद अफगानिस्तान की सत्ता में वापस आए हैं. राशिद ने कहा था कि हम तालिबान नेताओं के संरक्षक हैं. हमने लंबे समय तक उनकी देखभाल की है.  उन्हें पाकिस्तान में आश्रय, शिक्षा और घर मिली. हमने उनके लिए सब कुछ किया है.  

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पुलवामा हमले के पीछे भी था पाकिस्तान का हाथ 

पाकिस्तान अपनी धरती पर आतंकियों को पालने के आरोपों को भले ही साफ तौर पर खारिज करता रहा हो, लेकिन वर्ष 2020 में उसके मंत्री द्वारा दिए गए बयान ने उसकी सारी पोल खोलकर रख दी थी. उस दौरान पाकिस्तान के मंत्री रहे फवाद चौधरी ने संसद में बयान दिया था कि पुलवामा में हुआ हमला पाकिस्तान की कामयाबी है. चौधरी ने माना था कि पुलवामा में जो हमला हुआ था वो उस समय के प्रधानमंत्री इमरान खान के नेतृत्व में किया गया था. चौधरी ने कहा था कि पुलवामा पर हुआ सिर्फ उनकी सरकार की ही नहीं बल्कि पूरे देश की कामयाबी है. हमने भारत को घुसकर मारा है. 

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करगिल युद्ध को लेकर नवाज का बड़ा कबूलनामा 

पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ ने करगिल युद्ध को लेकर एक बड़ा खुलासा किया था. उन्होंने उस दौरान कहा था कि 28 मई 1998 को पाकिस्तान ने पांच परमाणु परीक्षण किए. उसके बाद वाजपेई साहब यहां आये और हमारे साथ समझौता किया. लेकिन हमने उस समझौते का उल्लंघन किया...यह हमारी गलती थी. 

आपको बता दें कि लाहौर डिक्लेरेशन, दो  पड़ोसियों के बीच 21 फरवरी, 1999 को हस्ताक्षरित एक शांति समझौता था, जिसमें अन्य कदमों के अलावा शांति और सुरक्षा बनाए रखने और लोगों से लोगों के बीच संपर्क को बढ़ावा देने का आह्वान किया गया था. हालांकि, कुछ महीनों बाद, जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में पाकिस्तानी घुसपैठ के कारण कारगिल युद्ध हुआ. 

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