फेंसिंग की पार, गड्ढे में छिपे रहे... पहलगाम हमले में कैसे मैसूर के शख्स ने बचाई जान

हम एक घंटे तक गड्ढे में रहे और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते रहे. हमें समझ में नहीं आ रहा था कि हमें उसी स्थान पर रुकना है या बचने के लिए किसी दिशा में भागना था. दोपहर 3.40 बजे एक हेलीकॉप्टर की आवाज सुनाई दी. शाम 4 बजे तक सेना के विशेष बलों ने क्षेत्र को सुरक्षित कर, बचे हुए लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया.

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बंदूकों की गोलियां अभी भी हमारे कानों में गूंजती हैं.

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम हमले में कर्नाटक के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर बाल-बाल बचे हैं. हमले में बचे प्रसन्ना कुमार भट ने एक्स के जरिए अपनी आपबीती साझा की और बताया कि कैसे वो आतंकवादियों से अपनी जान बचाने में सफल रहे. प्रसन्ना कुमार भट ने एक्स पर लिखा, उनका परिवार और 35-40 अन्य लोग 22 अप्रैल को हुए घातक आतंकवादी हमले में बाल-बाल बच गए. उनके भाई, जो एक वरिष्ठ भारतीय सेना अधिकारी हैं, उन्होंने लगभग 40 लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाकर उनकी जान बचाई. उन्होंने लिखा, "ईश्वर की कृपा, भाग्य और एक सैन्य अधिकारी की त्वरित सूझबूझ से न केवल हमारी बल्कि उस दिन 35-40 अन्य लोगों की जान बच गई."

भट ने बताया कि खराब मौसम के कारण दो दिन के लिए अपनी यात्रा स्थगित करने के बाद वे 22 अप्रैल की दोपहर को अपनी पत्नी, भाई और भाभी के साथ सुंदर बैसरन घाटी पहुंचे. वे लोग मौज-मस्ती कर रहे थे, तभी दोपहर करीब 2.25 बजे उन्होंने पहली दो गोलियां चलने की आवाज सुनी. उन्होंने याद करते हुए कहा, "इसके बाद एक मिनट के लिए सन्नाटा छा गया और हर कोई समझ रहा था कि क्या हुआ."

आतंकवादी पहले से ही इंतजार कर रहे थे

"कुछ ही क्षणों में उन्होंने और उनके परिवार ने दो शव पड़े देखे और उनके भाई को तुरंत पता चल गया कि यह एक आतंकवादी हमला है. तभी गोलियों की आवाजें आने लगीं और अराजकता फैल गई. भीड़ जोर-जोर से चिल्लाने लगी और जान बचाने के लिए भागने लगी. ये लोग गेट की तरफ भागने लगे, जहां आतंकवादी पहले से ही इंतजार कर रहे थे".

भट ने कहा, "हमने देखा कि एक आतंकवादी हमारी ओर आ रहा है, इसलिए हमने भागने का निर्णय लिया और सौभाग्य से हमें बाड़ के नीचे एक रास्ता मिल गया और छिपे हुए अधिकांश लोग बाड़ को पार कर दूसरी ओर भागने लगे."

उन्होंने बताया कि उनके भाई ने तुरंत स्थिति का आकलन किया और अपने परिवार तथा 35-40 पर्यटकों को विपरीत दिशा में भेज दिया. भट ने याद करते हुए लिखा, "उन्होंने लोगों को गोलीबारी वाली जगह से दूर नीचे की ओर भागने को कहा. यह एक ढलान थी, जहां पानी की धारा बह रही थी, इसलिए यहां सुरक्षा मिली. कीचड़ भरी ढलान पर दौड़ना बहुत फिसलन भरा था, लेकिन कई लोग फिसल गए, लेकिन जान बचाने में सफल रहे."

कानों में गूंजती है गोली की आवाज

हम एक घंटे तक गड्ढे में रहे और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते रहे. हमें समझ में नहीं आ रहा था कि हमें उसी स्थान पर रुकना है या बचने के लिए किसी दिशा में भागना है. दोपहर 3.40 बजे एक हेलीकॉप्टर की आवाज सुनाई दी.  शाम 4 बजे तक सेना के विशेष बलों ने क्षेत्र को सुरक्षित कर लिया तथा बचे हुए लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया. बंदूकों की गोलियां अभी भी हमारे कानों में गूंजती हैं और इस हमले ने मुझे अभी तक अंदर तक झकझोर रखा है.

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