भारत की एकता और अखंडता के लिए हर किसी को करनी होगी कोशिश: RSS प्रमुख मोहन भागवत

मोहन भागवत ने कहा, "अब विदेशी तो यहां से चले गए, लेकिन इस्लाम की पूजा कहां सुरक्षित चलती है, यहीं सुरक्षित चलती है. कितने दिन हुए, कितने शतक हुए यह सह जीवन चल रहा है."

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मोहन भागवत ने संघ के मुख्यालय में स्वयंसेवकों के तीसरे वर्ष के प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह को संबोधित किया.

नागपुर:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh)के प्रमुख मोहन भागवत (RSS chief Mohan Bhagwat) ने गुरुवार को दावा किया कि भारत सदियों से मुसलमानों की परंपराओं और इबादत के तरीकों का संरक्षण करता आ रहा है. उन्होंने कहा कि हमारे अतीत का बोझ कुछ के अहंकार के साथ मिलकर हिंदू-मुस्लिम समुदायों को अपनी एकता दिखाने से रोक रहा था. ऐसे मामलों में बातचीत ही एकमात्र रास्ता था. सभी के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि अलग पहचान पर जोर न दें. राष्ट्रीय पहचान को एकीकृत तौर पर स्वीकार करें.

उन्होंने कहा, "सद्भाव के लिए संवाद महत्वपूर्ण है. एक होने के लिए सभी को कुछ न कुछ छोड़ना होगा. सद्भाव के लिए एकतरफा प्रयास काम नहीं करेंगे. सभी को त्याग करना होगा. त्याग की भावना आदत और संस्कारों से आती है." 

मोहन भागवत ने कहा, "अब विदेशी तो यहां से चले गए, लेकिन इस्लाम की पूजा कहां सुरक्षित चलती है, यहीं सुरक्षित चलती है. कितने दिन हुए, कितने शतक हुए यह सह जीवन चल रहा है. इसको न पहचानते हुए आपस के भेदों को ही बरकरार रखने वाली नीति चलाना, ऐसा करेंगे तो कैसे होगा."

भावनात्मक एकीकरण लाना जरूरी
मोहन भागवत गुरुवार को नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय में स्वयंसेवकों के तीसरे वर्ष के प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा, "देश में समुदायों का भावनात्मक एकीकरण केवल इस समझ के साथ आएगा कि हम मतभेदों के बावजूद सदियों से एक हैं."

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भारत की एकता सर्वोपरि
संघ प्रमुख ने कहा, "ऐसे समुदाय थे जो अन्य स्थानों से यहां आए थे. हम तब उनके साथ लड़े थे, लेकिन अब वे चले गए हैं. बाहरवाले सब चले गए, अब सब अंदरवाले हैं. यहां हर कोई हमारा हिस्सा है. अगर उनकी सोच में कोई अंतर है, तो हमें उनसे बात करनी चाहिए. भारत की एकता सर्वोपरि है. सभी को इसके लिए काम करना चाहिए. जोशीमठ की घटना हुई, उसका कारण क्या है, ये सिर्फ भारत भर में ही नहीं है, क्योंकि पर्यावरण को लेकर हम इतने सजग नहीं है. ये घटना बताती है कि हमको त्वरित कुछ करने की जरूरत है." 

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भागवत ने कहा, "हमारी अनूठी पहचान भारत में सबसे सुरक्षित है, ऐसा बाहर नहीं मिलेगा. हमारे देश के साथ हमारा संबंध लेनदेन का नहीं है. हम विविधता का जश्न मनाते हैं,. हम एक साथ रहने के तरीकों का पता लगाएंगे." 

हमारे पूर्वज इस देश के पूर्वज हैं
भागवत ने कहा, "हम अलग दिखते हैं इसलिए अलग हैं. इस विचार से देश नहीं टूटता है. सभी को समझना जरूरी है. यह हमारी मातृभूमि है. हमारी पूजाएं अलग-अलग हैं. ये भूलकर हमें यह सोचना चाहिए कि एक समाज के नाते हम इसी देश के हैं. हमारे पूर्वज इस देश के पूर्वज हैं.  इस सच्चाई को हम क्यों स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं."

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मोहन भागवत ने कहा, "आज हिंसक घटनाएं छोटे कारणों से हुईं, क्योंकि हम भूल गए हैं कि हम एक हैं. यह हमारी मातृभूमि है.  कुछ आक्रमणकारी आए और चले गए, और कई पीछे रह गए. कुछ को लगता है कि उनकी पहचान बन जाएगी. यह सच नहीं है."

जातिगत भेदभाव की समाज में नहीं होनी चाहिए जगह
भागवत ने यह भी कहा कि जातिगत भेदभाव की बुराइयों का भारतीय समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए. उन्होंने दावा किया कि हिंदू समाज अपने मूल्यों और आदर्शों को भूल गया. यही कारण है कि वह आक्रामकता का शिकार हो गया. हमने जाति के उत्पीड़न का अन्याय देखा है. हम अपने पूर्वजों के आभारी हैं, लेकिन हम उनका कर्ज भी चुकाएंगे."

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आरएसएस प्रमुख ने कहा कि जब राष्ट्रीय हित की बात आती है, तो राजनीति की सीमाएं होनी चाहिए. यह याद रखना चाहिए कि ऐसे लोग हैं जो देश के भीतर समूहों के बीच संघर्ष को हवा देते हैं.

राजनीति की होनी चाहिए एक सीमा
भागवत ने कहा, "यह एक लोकतंत्र है. राजनीतिक दलों के बीच हमेशा सत्ता की होड़ लगी रहती है. लेकिन राजनीति की एक सीमा होती है. वे एक-दूसरे की जितनी चाहें उतनी आलोचना कर सकते हैं, लेकिन उनके पास विवेक होना चाहिए कि वे उस प्रशंसक को न जाने दें."

मराठा सम्राट शिवाजी को किया याद
मराठा सम्राट शिवाजी के "हिंदवी स्वराज" को याद करते हुए मोहन भागवत ने कहा, "शिवाजी और संभाजी समेत सैकड़ों आम लोगों ने आत्म-शासन के लिए बलिदान दिया. उन्होंने अपना पूरा जीवन संघर्ष में लगा दिया. हमारे प्राचीन मूल्यों को फिर से जीवंत करना महत्वपूर्ण है. हिंदवी राज की उनकी दृष्टि को हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं."

उन्होंने कहा कि जैसे गर्मी में वर्षा की बौछारे सुखद लगती हैं, वैसे ही स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद इस प्रकार की सुखद भावनाओं का अनुभव हम जैसे कर रहे है, वैसे चिंतित करने वाला दृश्य भी हमें परिस्थिति मे मिल रहा है. इसी समय देश में कितने जगह कितने प्रकार के कलह मचे है, भाषा, पंथ, संप्रदायों, मिलने वाली सहुलियतों के लिये विवाद और केवल विवाद ही नहीं, बल्कि इसका इस हद तक बढ़ना कि हम आपस में ही हिंसा करने लगे. अपने देश कि सीमाओं पर, अपनी स्वतंत्रता पर बुरी नजर रखने वाले शत्रु बैठे हैं, उनको हमारा बल नहीं दिखा रहे, हम आपस में ही लड़ रहे हैं.

आरएसएस प्रमुख ने विशेष रूप से नई संसद में कलाकृतियों, मूर्तियों की प्रशंसा की और कहा कि वे भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं. भागवन ने कहा कि संसद में जो चित्र लगे हैं उनके वीडियो वायरल हो रहे हैं. उन्हें देखकर गौरव होता है लेकिन परेशान करने वाली बात भी देश में देखने को मिल रही है. देश में भाषा, पंथ-संप्रदाय और सहुलियतों को लेकर तमाम तरह के विवाद हो रहे हैं. 

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